क्लाइमेट चेंज को रोकने में इको टास्क फोर्स ओर बटालियनो की अहम भूमिका …डॉ अरुण सिंह

देहरादून

भारत की टेरिटोरियल सेना की इको टास्क फोर्स-इको बटालियनों के कार्मिकों के लिए ’वन संवर्धन और वानिकी‘ पर प्रशिक्षण
वन अनुसंधान संस्थान देहरादून में वन संवर्धन एवं प्रबंधन प्रभाग द्वारा टेरिटोरियल सेना की इको बटालियन के कार्मिकों के लिए ’वन संवर्धन और वानिकी‘ पर दिनांक 18 से 22 नवम्बर, 2019 तक एक सप्ताह का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह प्रशिक्षण पाठ्यक्रम व.अ.सं. देहरादून तथा 127 इन्फेन्ट्री बटालियन इकोलोजिकेल (टीए) गढ़वाल राइफल्स, देहरादून के संयुक्त सहयोग द्वारा आयोजित किया गया था जिसमें में देश के कई क्षेत्रों जैसे दिल्ली, राजस्थान, सांबा (जम्मू), इलाहाबाद (प्रयागराज), महाराष्ट्र और उत्तरांखड से आए टेरिटोरियल सेना की 08 इको बटालियन के 23 अधिकारियों, जेसीओ और जवानों ने भाग लिया।
प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के उद्घाटन सत्र के दौरान, श्री अरुण सिंह रावत, निदेशक, व.अ.सं. ने कहा कि टेरिटोरियल सेना की इको बटालियनें निम्नीकृत और दुस्साध्य स्थलों के वनीकरण और गंगा नदी की सफाई और उसके पुनुरुद्धार के लिए कई सराहनीय कार्य कर रहे हैं और यह प्रशिक्षण वन संवर्धन के विभिन्न पहलुओं जैसे बीज संग्रह, गुणवत्ता मूल्यांकन, नर्सरी की स्थापना और रोपणीय पौधों की स्थापना और बीमारी/कीट प्रबंधन, फाइटोरेमेडिएशन आदि विषयों पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण द्वारा उनका ज्ञान वर्धन करेगा। उन्होंने कहा कि इको टास्क फोर्स द्वारा तैयार किए गये विभिन्न प्रजातियों के रोपण के दौरान वन अनुसंधान संस्थान जैव उर्वरक, जैव कीटनाशक आदि पर प्रयोगात्मक परीक्षण कर सकता है। कर्नल वैद्य, कमांडिंग अधिकारी, 127 ईटीएफ गढ़वाल ने ईकाई द्वारा किए जा रहे वृक्षारोपण परियोजनाओं के बारे में जानकारी दी जो जलवायु परिवर्तन की समस्याओं से निपटने के लिए भी कारगर हैं। श्रीमती आरती चौधरी, प्रमुख, वन संवर्धन एवं प्रबंधन प्रभाग ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और कहा कि इस प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में व्याखान के अतिरिक्त नर्सरी, प्रयोगशालाओं और प्रायोगिक स्थलों का दौरा भी शामिल किया गया था। इसके बाद, डॉ. मनीषा थपलियाल, पाठ्यक्रम समन्वयक ने पाठ्यक्रम के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान की और बताया कि प्रशिक्षण के दौरान बीज के रखरखाव, नर्सरी स्थापना, प्रबंधन और वृक्षारोपण पर व्यावहारिक ज्ञान देने पर अधिक जोर दिया गया। प्रशिक्षण मॉडयूल में बीज प्रसुप्तता पूर्व उपचार, बीज भंडारण, बांस के क्लोनल वंश-वृद्धि, औषणीय पौधों के प्रसार के तकनीकों तथा राजस्थान, उत्तरांखड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और जम्मू और कश्मीर की महत्वपूर्ण पेड़ प्रजातियों की नर्सरी तकनीक पर व्याख्यान शामिल किया गया था। उन्होंने अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि व्याख्यान श्रृंखला में नर्सरी और बागानों में मिट्टी की उर्वरता प्रबंधन, दुस्साध्य स्थलों में वनीकरण, रेगिस्तानों में पुनुरुद्धार गतिविधियां, खनन क्षेत्रों में वृक्षारोपण तकनीक, नर्सरी और वृक्षारोपण में फफूंद और कीट-व्याधियों का प्रबंधन आदि विषयों सहित बांस के प्रसंस्करण और उपचार के लिए सामान्य सुविधा केन्द्र, बीज प्रसंस्करण इकाई, वनस्पति उद्यान, बांस वाटिका आदि का दौरा भी शामिल किया गया था। वन संर्वधन/वानिकी और अन्य विज्ञानों के इतिहास पर ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रतिभागियों ने वन अनुसंधान संस्थान के विभिन्न संग्रहालयों का भी दर्शन किया। सभी प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण के बारे में सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि पाठ्यक्रम में भाग लेने से उन्हें वानिकी प्रजातियों, उनके महत्व और नर्सरी तथा वृक्षारोपण तकनीकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बारे में बेहतर समझ और ज्ञान प्राप्त हुआ है।

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