रक्षाबन्धन…राखी 11 को बंधेगी या 12 अगस्त को? क्या उचित समय होगा? आइए जानने का प्रयास करते है कि आखिर भद्रा है क्या जिसकी वजह से ये संशय पैदा हुआ है…

देहरादून

इस बार रक्षाबंधन पर बड़ा संशय बना हुआ शास्त्र सम्मत सभी के राय अनुसार रक्षाबंधन पर्व कब मनाया जाये इसको लेकर कुछ विद्वानों की राय ली गयी आइए आप भी जाने कि क्यों कब कैसे मनाया जांना है रक्षाबन्धन…

उतराखंड विद्वत् सभा उतराखंड के प्रवक्ता आचार्य बिजेन्द्र प्रसाद ममगांई बताते हैं
(भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा )
भद्रा में किसी भी शुभ कार्य करना माना गया है।
11 अगस्त को भद्रा सुबह 10:41 से शुरू हो जायेगी रात 8:53 तक
सुबह 10:41 से पूर्णिमा भी शुरू होगी 12 अगस्त की सुबह 7:07 तक
सांयकाल में भद्रा पुछकाल 5:17 से 6:20 तक है
कार्यत्वावशयके विष्टे मुखमात्रं परित्यजेत
लेकिन सायंकाल रक्षाबंधन पर्व भद्रा काल उचित नहीं है
12 ता को सुबह उदय कालिन पूर्णिमा है निसंदेह इस दिन रक्षाबंधन पर्व मनाया जा सकता है।
12 अगस्त को प्रातः पूर्णिमा
1 सुबह से 2 बजे तक आष्युमान योग
2 – दिन में 11:37 से 12:29 तक अभिजित मुहूर्त
3- दिन में 2 :14 से 3:07 मिनट तक विजय मुहूर्त है
दिन में 2 बजे से सौभाग्य योग प्रारंभ होगा
इसलिए 12 अगस्त सबसे शुभ मुहूर्त में बहिनों को अपने भाई को रक्षाबंधन( रक्षासूत्र ) बांधकर दीर्घायु का आशीर्वाद देती है तो अधिक फलदायी होगा 12 की सुबह रवियोग भी है
इसलिए इस दिन पर्व मनाना सभी तरह से मंगलकारी रहेगा।

वही उनकी बात को बल देते हुए आचार्य श्रित सुरेंद्र प्रसाद सुन्दरियाल ने बताया है की रक्षाबंधन का पावन त्यौहार 11 अगस्त को मनाना उपयुक्त रहेगा किसी भी प्रकार की शंका न रख मन में हर्ष और उल्लास के साथ मनाएं। रक्षाबंधन का पावन त्यौहार सनातन धर्म की सभ्यता एवं संस्कारों का प्रतीक है। रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन को प्रेम और विश्वाश के सूत्र में बांधना है इस त्यौहार का संकल्प।


सावन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त को सुबह 10 बजकर 38 मिनट पर शुरू हो रही है, जो 12 अगस्त को शुक्रवार सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक रहेगी। लेकिन सावन पूर्णिमा शुरू होते ही पाताल लोक की भद्रा भी लग रही है 11 अगस्त को रात 8 बजकर 35 मिनट तक रहेगी पाताल लोक की भद्रा होने पर कोई दोष नहीं है। रक्षाबंधन पर भद्रा का होना स्वाभाविक है। सबसे पहले इस बात पर चर्चा करते हैं की भद्रा क्या है जब सूर्य और चंद्रमा के बीच 12 अंश का अन्तर बढ़ता है तब एक तिथि घटित होती है। और जब चंद्रमा और सूर्य के बीच 6 अंश का अंतर बढ़ता है तब एक करण का काल मानना चाहिए कुल 11 करण होते हैं जिनमे 7 चर करण है बव, बालव, कौलव, तैतिल गर ,वणिज, विष्टि नाम है इन सात मे (एक ) चरण है विष्टि जिसे भद्रा कहते हैं जिसको अशुभ माना गया है इन 7 करणों की आवृत्ति एक मास में 56 बार होती है अर्थात एक करण 8 बार आता है।

इसी आधार पर भद्रा भी 8 ही बार आती है। और भद्रा का मान 25 से 30 घटी तक हो सकता है भद्रा की आवृत्ति निश्चित तिथियों पर उनके पूर्वार्ध और उत्तरार्ध के अनुसार होती है ..
श्रावण पुर्णिमा को भद्रा पूर्वाद्ध में ही लगती है। किंतु तिथि के प्रारंभ होने के आधार पर ही भद्रा का प्रभाव काल तय होता है
भद्रा के विषय में प्रथम श्लोक –
*न कुर्यान्मंगलम विष्टयाम जीवितार्थी कदाचन अर्थात जीवन की इच्छा रखने वाले को भद्रा में कोई मंगल कार्य नहीं करना चाहिए।
श्लोक का प्रमाण दिया है की भद्रा में कोई भी मंगल कार्य न करे
श्लोक में यह तो कहा गया है की भद्रा में कोई शुभ कार्य न करे

लेकिन यह नही कहा गया की भद्रा के वास का विचार न करे। और कोई परिहार न माने।
एक परिहार है 🚩यत्र भद्रा तत्र फलम’अर्थात भद्रा जिस लोक में होगी वही उसका प्रभाव होगा।
1/शुक्ल पक्ष की भद्रा के मुख को
वृश्चकी कहा जाता है
2/कृष्ण पक्ष की भद्रा के मुख को सर्पिणी कहा गया है
कृष्ण पक्ष की भद्रा का मुख और शुक्ल पक्ष की भद्रा का पुच्छ भाग अशुभ माना गया है मुहुर्त चिंतामणी ने तो सर्वथा भद्रा के पुच्छ भाग को ग्राह्यय बताया है इस प्रकार भद्रा के भिन्न भिन्न तिथियों के समय पर घटित होने पर भद्रा को उसके प्रभाव के आधार पर अलग अलग नाम दिए गए हैं।
भद्रा वास -कर्क,सिंह, कुंभ मीन का चद्रमा हो तो #पृथ्वी #लोकपर वास होता है ll
मेष, वृष, मिथुन, वृश्चिक का चंद्रमा हो तो #स्वर्ग# लोक में भद्रा का वास होता हैll
कन्या, तुला, धनु मकर राशी का चंद्र हो तो #पाताल # लोक में भद्रा का वास होता है**ll **जो इस बार 11 अगस्त को भद्रा मकर राशि चन्द्रमा होने पर #पाताल# लोक में वास करेंगी जो भद्रा शुभ है।
पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त 2022 को भद्रा का वास पृथ्वी लोक में नही है।
जब कोई परिहार न निकल रहा हो तब प्रदोष काल के उत्तरार्द्ध में ही रक्षा बंधन का त्योहार प्रसन्नता के साथ मनाएं। **मुहुर्त चिंतामणी में भद्रा के उपरोक्त परिहार दिए गए हैं धरती पर नहीं रहेगा भद्रा का वास : मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार भद्रा का वास मृत्युलोक में है तो मांगलिक कार्य नहीं करते हैं लेकिन 11 अगस्त को भद्रा का वास पाताल लोक में रहेगा। भद्रा जिस लोक में निवास करती है, वहीं उसका असर होता है इसलिए भद्रा का असर पृथ्‍वी वासियों पर नहीं होगा।
आइए जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर ये भद्रा कौन है एवं धर्म शास्त्र में इसका क्या प्रभाव है ?
!! उत्तर। !! किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है। क्योंकि भद्रा काल में मंगल-उत्सव की अशुभ माने है। अत: भद्रा काल की अशुभता को मानकर कोई भी आस्थावान व्यक्ति शुभ कार्य नहीं करता। इसलिए जानते हैं कि आखिर क्या होती है भद्रा और क्यों इसे अशुभ माना जाता है।

पोराणिक कथा के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य और माता छाया की पुत्री है. इस दृष्टिकोण से भद्रा शनि देव की बहन हुईं. कहा जाता है कि जब भद्रा का जन्म हुआ तो वह समस्त सृष्टि को निगलने वाली थी साथ ही वे हवन, यज्ञ और पूजा-पाठ अनुष्ठान इत्यादि मांगलिक कार्यों में विघ्न उत्पन्न कर रही थीं शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी प्रबल बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दिया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया। किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनैतिक चुनाव कार्यों सुफल देने वाले माने गए हैं यूं तो भद्रा का शाब्दिक अर्थ है कल्याण करने वाली लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टी करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है।जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या या उनका नाश करने वाली मानी गई है।
जब चंन्द्रमा, कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टी करण का योग होता है, तब भद्रा (पृथ्वीलोक) में रहती है।
इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते है।
ऐसा माना जाता है कि दैत्यों को मारने के लिए भद्रा गर्दभ (गधा) के मुख और लंबे पुंछ और तीन पैर युक्त उत्पन्न हुई।

भद्रा, काले वर्ण, लंबे केश, बड़े दांत वाली तथा भयंकर रूप वाली कन्या है। जन्म लेते ही भद्रा यज्ञों में विघ्न-बाधा पहुंचाने लगी और मंगल-कार्यों में उपद्रव करने लगी तथा सारे जगत को पीड़ा पहुंचाने लगी। उसके दुष्ट स्वभाव को देख कर सूर्य देव को उसके विवाह की चिंता होने लगी और वे सोचने लगे कि इस दुष्टा कुरूपा कन्या का विवाह कैसे होगा? सभी ने सूर्य देव के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। तब सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से उचित परामर्श मांगा।
ब्रह्मा जी ने तब विष्टि से कहा कि -भद्रे, बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में तुम निवास करो तथा जो व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश तथा अन्य मांगलिक कार्य करे तो तुम उन्ही में विघ्न डालो, जो तुम्हारा आदर न करे, उनका कार्य तुम बिगाड़ देना। इस प्रकार उपदेश देकर भगवान श्री बृह्मा जी अपने ब्रह्मलोक चले गए।
तब से भद्रा अपने समय में ही देव-दानव-मानव समस्त प्राणियों को कष्ट देती हुई घूमने लगी। इस प्रकार भद्रा की उत्पत्ति हुई।
भद्रा का दूसरा नाम विष्टि करण है। कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी और शुक्ल पक्ष की चर्तुथी, एकादशी के उत्तरार्ध में एवं कृष्णपक्ष की सप्तमी-चतुर्दशी, शुक्लपक्ष की अष्टमी-पूर्णमासी के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है।

जिस भद्रा के समय चन्द्रमा मेष, वृष, मिथुन, वृश्चिक राशि में स्थित तो भद्रा निवास (स्वर्ग )में होता है। यदि चन्द्रमा कन्या, तुला, धनु, मकर राशि में हो तो भद्रा (पाताल ) में निवास करती है
और कर्क, सिंह, कुंभ, मीन राशि का चन्द्रमा हो तो भद्रा का (भू-लोक) पर निवास रहता है शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी लोक की भद्रा सबसे अधिक अशुभ मानी जाती है। तिथि के पूर्वार्ध की दिन की भद्रा कहलाती है। तिथि के उत्तरार्ध की भद्रा को रात की भद्रा कहते हैं। यदि दिन की भद्रा रात के समय और रात्रि की भद्रा दिन के समय आ जाए तो भद्रा को शुभ मानते हैं ।
यदि भद्रा के समय कोई अति आवश्यक कार्य करना हो तो भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी जो भद्रा का मुख होती है, अवश्य त्याग देना चाहिए।
भद्रा 5 घटी मुख में, 2 घटी कंठ में, 11 घटी ह्रदय में और 4 घटी पुच्छ में स्थित रहती है।

🔱 भद्रा के प्रमुख दोष 🔱

🚩जब भद्रा मुख में रहती है तो कार्य का नाश होता है।
🔯 जब भद्रा कंठ में रहती है तो धन का नाश होता है।
🚩जब भद्रा हृदय में रहती है तो प्राण का नाश होता है।
🔯 जब भद्रा पुच्छ में होती है, तो विजय की प्राप्ति एवं कार्य सिद्ध होते हैं।
भद्रा के दुष्प्रभावों से बचने का आसान उपाय है भद्रा के 12 नामों का जप करना-
धन्या दधमुखी भद्रा महामारी खरानना।
कालारात्रिर्महारुद्रा विष्टिश्च कुल पुत्रिका।
भैरवी च महाकाली असुराणां क्षयन्करी।
द्वादश्चैव तु नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्।
न च व्याधिर्भवैत तस्य रोगी रोगात्प्रमुच्यते।
गृह्यः सर्वेनुकूला: स्यर्नु च विघ्रादि जायते।
आचार्य श्रित सुन्दरियाल जी महाराज बताते हैं कि रक्षा बंधन 11 अगस्त को सुबह 10:39 से रात्रि 8:52
तक उत्तम समय रहेगा
इसमें प्रदोष काल के साथ-साथ श्रेष्ठ चौघड़िया भी विद्यामान रहेंगे. चार की चौघड़िया में भी बहनें अपने भाइयों को राखी बांध सकेंगी. भद्रा चार की चौघड़िया रात्री 8:52 से 9:48 बजे तक होगी.12 अगस्त को पूर्णिमा तीन मुहूर्त से कम समय रहने के कारण रक्षाबंधन का त्योहार 11 अगस्त रात्रि को भी मनाया जाएगा
ऐसे में अगले दिन यानी 12 जुलाई को उदय तिथि के अनुसार पूरे दिन पूर्णिमा तिथि का मान रहेगा इसलिए 12 अगस्त को विशेष कारणवश आप लोग रक्षाबंधन का पवित्र त्यौहार प्रातः काल 7:06 तक ही मना सकते है l ❄️ शुभ मुहूर्त 11 अगस्त को
सुबह 11 बजकर 37 मिनट से 12 बजकर 29 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा.
❄️इसके बाद दोपहर 02 बजकर 14 मिनट से 03 बजकर 07 मिनट तक विजय मुहूर्त होगा.
रक्षाबंधन के दिन प्रदोष काल का मुहूर्त 11 अगस्त 2022 को रात के 08 बजकर 52 मिनट से रात्रि 09 बजकर 14 मिनट तक रहेगा।

बहन भाई की दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांधे और फिर चंदन व रोली का तिलक लगाएं ll
राखी के अभाव में मोली /कलावे का धागा भी बांधना है उपयुक्त ll
तिलक लगाने के बाद अक्षत अवश्य लगाएं और आशीर्वाद के रूप में भाई के ऊपर कुछ अक्षत , पुष्प भी अर्पित करें ll बहन अपने ईष्ट देव से भाई की दीर्घायु की कामना करें एवं सदैव अपनी रक्षा का संकल्प ले ll
भाई अपनी बहन को उसके सुख और दुख में सदैव साथ खड़े होने का वचन दे ll
राखी बंधवाने के लिए भाई को हमेशा पूर्व दिशा और बहन को पश्चिम दिशा की ओर मुख करना चाहिए ll
राखी बंधवाते समय भाइयों को सिर पर रुमाल या कोई स्वच्छ वस्त्र होना चाहिए।
बहन भाई की दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांधे
इसके बाद आरती उतारकर बहन भाई एक-दूसरे को मिष्ठान खिलाकर मुंह मीठा कराएं।
चंदन लगाने का मंत्र :-
“सिन्दूरं सौभाग्य वर्धनम,
पवित्रम् पाप नाशनम्।
आपदं हरते नित्यं,
लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥
मंगलम भगवान विष्णु
मंगलम गरुड़ ध्वजा
मंगलम पुंडरीकाक्ष
मंगलम तनो हरिll

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