131 फूट का रावण इस दशहरे में पहली बार होगा दहन परेड ग्राउंड में,जो बनाया है 5 बार के लिम्का बुक एवार्डी तेजेंद्र चौहान ने

उत्तराखंड की राजधानी में जलने वाला रावण का विशालकाय 131 फूट का पुतला बनेगा आकर्षण का बड़ा केंद्र…

देहरादून

प्रदेश की राजधानी देहरादून में बन्नू बिरादरी दशहरा कमेटी लगातार 75 वर्षों से परेड ग्राउंड में रावण के पुतले का दहन होता रहा है।

बन्नू बिरादरी के पहले प्रधान रहे लक्ष्मण दास विरमानी द्वारा शुरू की गई परंपरा आज भी कायम है।

बन्नू बिरादरी के वर्तमान प्रधान हरीश विरमानी ने बताया कि आज बन्नू बिरादरी ने परेड ग्राउंड में 75 साल पहले इसकी शुरुआत दशहरे पर रावण जलाने की परंपरा से हुई थी। 76 वें रावण के पुतले को दहन करने की तैयारी की जा रही है।

दशहरा कमेटी के प्रधान संतोख नागपाल ने बताया कि इस बार के रावण को हमने अनोखे अंदाज में बनवाया है। जो कि 131 फीट ऊंचा होगा। जिसके लिए हरियाणा से अंबाला के रावण मेकर भाई तेजेंद्र चौहान को बुलाया गया है। 8 लाख की लागा से बनने वाला 76 वा रावण का पुतला दहन किया जाएगा।

संरक्षक अशोक वर्मा ने बताया कि परेड ग्राउंड में रावण के पुतले को जलता देखने के लिए भारी तादाद में जनता निकलती रही है।हालांकि पिछले वर्ष बरसात के चलते थोड़ी दिक्कत जरूर हुई थी। इस दशहरे में बारिश के अलावा सारी दिक्कतों को दूर करने का प्रयास किया गया है। प्रशासन ने हमेशा सहयोग किया।

रावण मेकर तेजेंद्र चौहान ने बताया कि उन्होंने चंडीगढ़ में 221 फूट के रावण के पुतले को बड़ी क्रेनों की मदद से खड़ा किया गया था जो कि 5 महीने में बनकर तैयार हुआ था। इस पुतले को देखने के लिए दशहरे से पहले दूर-दूर से लोग पहुंचे थे।

उन्होंने पुतले के निर्माण की कहानी भी बताई बोले कि हम पिछले करीब 31 सालों से इसी तरह रावण का पुतला बनाते आ रहे हैं। उनके परिवार ने हमेशा उनका साथ दिया है. उनकी भावनाओं को समझा है। राणा बताते हैं कि उनका पुतला देखकर लोगों को जो खुशी मिलती है वहीं उनकी असली तेजेंद्र चौहान के परिवार ने भी उनके जुनून को कबूल कर लिया।

उनका सपना है कि वो कुतुब मीनार से भी ऊंचा रावण का पुतला बनाये ।

हालांकि उनके नाम दुनिया के सबसे ऊंचे रावण का रिकॉर्ड लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में 5 बार दर्ज हो चुका है। बुक में 2011 में पहली बार ये रिकॉर्ड 2009 में बने पुतले के लिए दर्ज हुआ था। तब से लगातार पुतले की ऊंचाई बढ़ती गई, इस वजह से 2013, 2014, 2015, 2016 में भी इसे लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में एंट्री मिली।

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