देहरादून
उत्तराखंड में लगातार बढ़ रही वनाग्नि की घटनाओं को लेकर शुक्रवार को देहरादून में विभिन्न जन संगठनों एवं जन आंदोलन के साथियों की एकदिवसीय बैठक का आयोजन किया गया।
बैठक में उत्तराखंड में बढ़ती जंगलों की आग से होने वाले प्रभाव एवं उससे निपटने के उपायों पर विस्तार से चर्चा की गई। बैठक में 2024 के दौरान लगी भीषण जंगलों की आग से मारे गए उन 11 लोगों को श्रद्धांजलि दी गई जो अलग-अलग जगह पर जंगल की आग से काल कलवित हो गए।बैठक में उत्तराखंड भर के विभिन्न जनपदों से पहुंचे हुए तमाम जन संगठनों के प्रतिनिधि, जन आंदोलन के साथी, उत्तराखंड सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि सब ने मिलकर जंगलों की आग से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान परिस्थितिकीय नुकसान एवं सामाजिक तथा आर्थिक नुकसान को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की सभी उपस्थित प्रतिभागियों ने जंगलों की आग तथा उसके प्रभाव से निपटने के लिए सरकार के प्रयासों को नाकाफी पाया।
तय किया गया कि उत्तराखंड जो कि मूलतः रूप से बनवासी और वनों से घिरा हुआ प्रदेश है जहां की संपूर्ण ग्रामीण अर्थव्यवस्था वनों पर आधारित है।
ग्रामीण जनजीवन की आजीविका का मुख्य आधार यहां के वनों की उपज हुई है। उसको बचाए रखने के लिए एक दीर्घ कालीन योजना बनाने पर जोर दिया गया। सभी ने मिलकर वन भूमि जनमंच का गठन किया। यह मंच आने वाले दिनों में पूरे प्रदेश में वनों पर आधारित जीवन जीने वाले ग्रामीण तथा जनजातियों से संवाद करेगा और एक प्रदेश स्तर की सहमति बनाएगा की सरकार को उत्तराखंड के लिए एक अलग से वन नीति का निर्माण करना चाहिए जो वन नीति बदलते मौसम में मौसम परिवर्तन तथा ग्लोबल वार्मिंग के समय में वनों पर आधारित लोगों की आजीविका उनका जीवन तथा उनके सामाजिक सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करने के साथ ही वनों पर निर्भर पशु नदियों वृक्षों एवं तमाम गैर मानवीय जनजीवन की सुरक्षा तथा संवर्धन किया जा सके। आगामी दिनों में एक प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम तय किया गया है जिसमें प्रदेश के समस्त जिलों में एक वृहद संवाद कार्यक्रम तथा 1 से 15 दिसंबर के बीच में कौसानी में प्रदेश स्तरीय एक संवाद आयोजित किया जाएगा जिस संवाद में प्रदेश में वनाग्नि एवं वन अधिकारों को लेकर व्यापक संवाद आयोजित किया जाएगा।
बैठक के दौरान वरिष्ठ पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा, डा.बृज मोहन शर्मा,विनीत शाह, अजय जोशी, रेनू ठाकुर, द्वारिका प्रसाद सेमवाल, नंदनी आर्य, हीरा जनपंगी ,मुन्नी बिष्ट, ईशान अग्रवाल, अमरेंद्र बिष्ट, अनिल मैठाणी, अरुण सरकार, भुवन पाठक, देवांश बलूनी, कृष समेत कई प्रयावरणविदों ने अपनी भागीदारी निभाई।