विश्व रंगमंच दिवस.. उत्कृष्ट अभिनय के लिए हर रंगकर्मी को कुछ न कुछ प्रशिक्षण अवश्य लेना चाहिए… डॉ.वीके डोभाल – Latest News Today, Breaking News, Uttarakhand News in Hindi

विश्व रंगमंच दिवस.. उत्कृष्ट अभिनय के लिए हर रंगकर्मी को कुछ न कुछ प्रशिक्षण अवश्य लेना चाहिए… डॉ.वीके डोभाल

देहरादून

दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्रकी ओर से आज शाम को केंद्र के सभागार में विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

इसमें नाट्य मंचन और कहानी वाचन की कई शानदार प्रस्तुतियाँ दी गयीं.इसमें मुख्यतः तीन नाटक प्रस्तुत किये गए. इनमें सुरेन्द्र वर्मा का लघु नाटक मरणोपरांत जिसे अभिनय कल्चरल सोसायटी ने मंचित किया उसकी अवधि 30 मिनट की रही, जबकि सूरज भैय्या,लघु नाटक आई त्रिशंकु स्याही कलेक्टिव की प्रस्तुति रही यह नाटक 23 मिनटतक चला।

वहीं ज्ञान की आंधी , लघु नाटक संजय कुंदन द्वारा लिखित, इप्टा और जन संवाद समिति ने प्रदर्शित किया और इसकी अवधि 27 मिनट की रही।

नाटकों की प्रस्तुति से पूर्व डॉ. वी.के. डोभाल,अध्यक्ष,इप्टा, उत्तराखंड ने अपने संक्षिप्त संबोधन में कहा कि उत्कृष्ट अभिनय के लिए हर रंगकर्मी को कहीं न कहीं से कुछ प्रशिक्षण ज़रूर लेना चाहिए । विश्व रंगमंच एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस है जो कला के महत्व को इंगित करता है. यह दिन रंगमंच कला के सार, सौंदर्य-महत्व, मनोरंजन में रंगमंच कलाकारों की महत्वपूर्ण भूमिका और जीवन पर रंगमंच के प्रभाव को प्रदर्शित करता है।

डॉ. डोभाल ने आगे कहा इस अवसर को चिह्नित करने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

संजय कुंदन द्वार लिखित नाटक ज्ञान की आंधी में व्यंग्यात्मक तरीके से समाज को सतयुग में ले जाने का आहवान किया गया है।

रोचक संवाद के माध्यम से इस नाटक के संवादों ने दर्शकों को हँसने और तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। यह नाटक अज्ञानता और अंधविश्वास पर व्यंग्यात्मक रूप से प्रहार करने में अच्छे से सफल रहा । इस नाटक में डॉ वी के डोभाल, सतीश धौलाखंडी, विनीता, अमित बहुखण्डी,मेघा एन विल्सन, गर्विता डोभाल और गौरी ने शानदार रूप से नाट्यपाठ किया।

दूसरा नाटक मरणोपरांत स्त्री-पुरूष एवं प्रेमी के त्रिकोणीय संबंधों पर एक कड़ी टिप्पणी करता हुआ दीखता है। स्त्री को अपनी संपूर्णता की तलाश में किसी अन्य पुरुष के साथ जुड़ जाना, बाद में उसके मरणोपरांत पति को प्रेमी के दिये कुछ निशानियों से पूरे प्रकरण का पता चल जाना नाटक का मुख्य रोमांच है।

इस नाटक में निर्देशक ने अत्यधिक प्रयोगात्मकत्ता और बौद्धिकता के माध्यम से परिवार समाज के आंतरिक संघर्षों को शानदार तरीके से उजागर करने का प्रयास किया है।

उक्त नाटक में निर्देशक ने अत्यधिक प्रयोगात्मक और बौद्धिक विषयगत डिजाइन के माध्यम से आंतरिक संघर्षों को उजागर किया है।

सूरज भैय्या एक सुंदर लघु नाटक की प्रस्तुति रही. इस नाटक की थीम मुख्य रूप से सामाजिक परिवेश पर केंद्रित थी।

इस नाटक की सजीव प्रस्तुति दी गयी. कार्यक्रम के आरम्भ में सभागार में मौजूद सभी लोगों और नाटक के कलाक़ारों का स्वागत किया गया और विश्व रंगमंच पर शुभकामनायें दीं.

इस अवसर पर निकोलस हॉफलैंड ने विश्व रंगमंच के आलोक पर प्रकाश डाला व नाटकों का परिचय दिया. सभागार में इस दौरान डॉ. अतुल शर्मा,शैलेन्द्र नौटियाल , सुंदर सिंह बिष्ट, आलोक सरीन, देवेंद्र कांडपाल, दर्द गढ़वाली, जगदीश बाबला, राजीव अग्रवाल , सुंदर श्याम कुकरेती, हिमांशु आहूजा, हरिओम पाली, पंकज कुमार पांडे, छवि मिश्रा,सहित अनेक रंगकर्मी, प्रबुद्ध लोग, लेखक, साहित्यकार, नाटक प्रेमी और दून पुस्तकालय के पाठक आदि उपस्थित थे।

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