थिएटर विभाग दून विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय थिएटर इन एजुकेशन कार्यशाला संपन्न

देहरादून

दून विश्वविद्यालय के थिएटर विभाग द्वारा दिनांक 13-15 अक्टूबर तक आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला का केंद्रीय विषय डेवलपमेंटल थिएटर व सोशल–इमोशनल लर्निंग (SEL) था। इस कार्यशाला का संचालन और नेतृत्व ला पो ला थिएटर इन एजुकेशन इंडिया के संस्थापक निदेशक वॉल्टर पीटर द्वारा किया गया।

कार्यशाला में पचास से अधिक जेनरिक एलकटिव कोर्स और एमए थिएटर के विद्यार्थियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।

वॉल्टर पीटर व कार्यशाला टीम ने अनेक थियेटर–इन–एजुकेशन (TIE) विधियाँ और गेम्स परिचालित किए, जिनमें प्रमुख रूप से शामिल थे…

वॉयस मोड्यूलेशन (आवाज में उतार-चढ़ाव) बोलने के स्वर, लय और एक्सप्रेशन का प्रशिक्षण।

मूवमेंट व फिजिकल एक्सप्रेशन (गति / क्रिया-प्रतिक्रिया) शरीर के माध्यम से भाव प्रकट करना।

सर्किल इम्प्रोवाइजेशन (circle improvisation) सामूहिक इम्प्रोवाइजेशन से सहकार्य और ध्यान केंद्रित करना।

ऑन-द-स्पॉट एक्टिविटीज त्वरित प्रतिक्रिया एवं रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने वाले खेल।

थिएटर गेम्स व टीम-बिल्डिंग एक्सरसाइज़ समूह में भरोसा और सहभागिता की भावना विकसित करने के लिए।

व्यक्तित्व विकास क्रियाएँ आत्म-अभिव्यक्ति, आत्मविश्वास व सार्वजनिक बोलचाल की प्रैक्टिस।

इन गतिविधियों के माध्यम से विद्यार्थियों ने न सिर्फ अभिनय के तकनीकी पक्षों को समझा, बल्कि अपने अंदर छुपे कलाकार और व्यक्तित्व के पहलुओं को बाहर आने का अवसर प्राप्त किया। खेल-आधारित अभ्यासों में विद्यार्थियों ने समूह के महत्व तथा व्यक्तिगत हिस्सेदारी की गहराई से समझ बनाई।

प्रो. सुरेखा डंगवाल ने इस तरह की कार्यशालाओं को विश्वविद्यालयी शिक्षा का अनिवार्य अंग बताया। उनका मानना था कि थियेटर-इन-एजुकेशन विद्यार्थियों को न केवल तकनीकी निपुणता देता है, बल्कि संवेदनशीलता, सहानुभूति और समावेशी सोच विकसित करने में भी मददगार है।

प्रो.एच.सी. पुरोहित निदेशक आईक्यूएसी ने कार्यशाला के नाट्य कला एजुकेशन के महत्व पर बल दिया। विश्वविद्यालय में इस तरह की गतिविधियों के स्थाई आयोजन की आवश्यकता बतलाई।

वॉल्टर पीटर (फाउंडर-डायरेक्टर, La Po La TIE India) ने अपने 35-वर्षीय अनुभव का उल्लेख करते हुए कहा कि थिएटर-इन-एजुकेशन न केवल कलात्मक अभ्यास है। उनके अनुसार, TIE एक ऐसी विधा है जो कक्षा को सुरक्षित, सहभागी और क्रियाशील बनाकर सीखने के अनुभव को समृद्ध करती है।

विद्यार्थियों का अनुभव और लाभ

छात्रों ने “Me to We” कॉन्सेप्ट को अनुभव के माध्यम से समझा — यानी अपने व्यक्तिगत अनुभवों को समूह के संदर्भ में पिरोकर सहानुभूति व सहयोग को अंगीकार किया। विद्यार्थियों ने कहा कि- उनके भीतर आत्मविश्वास और सार्वजनिक अभिव्यक्ति का सुधार हुआ। रचनात्मकता को खेलने-खेल में समझने का अवसर मिला। समूह-गत गतिविधियों से नेतृत्व कौशल तथा सहभागिता की भावना मजबूत हुई। नई-नई अभिनय तकनीकों (आवाज़, गति, सुधार ) के प्रयोग से व्यक्तित्व के नए पहलू उभरे।

इस अवसर पर प्रतिभागी अंजेस कुमार, वैशाली नेगी, राजेश भारद्वाज, सरिता भट्ट, सरिता बहुगुणा, हमांशु, समृद्धि बधानी, राशि, दिव्यता, तमन्ना, अनुष्का, वैचली, रिया, आदित्य, वैभवी, आकाशदीप, अमीशी, मार्सी, ज्योति, रिद्धिवे, अनुपमे, आकृति, प्राची नौटियाल, मार्शिता, शगुन, जानवी गुसाईं, ज्योति सिंह, शैलजा तथा अन्य कई विद्यार्थी जिन्होंने इस कार्यशाला में भाग लिया।

कार्यशाला में डॉ. अजीत पंवार और श्री कैलाश कंडवाल उपस्थित थे और उन्होंने विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी की सराहना की।

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