भालू के हमले के पत्नी की जान बचाते हुए पति ने दे दी जान,चमोली के दूरस्थ गांव से हेलिसेवा की बदौलत गंभीर घायल पत्नी को पहुंचाया एम्स

देहरादून/चमोली

उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली के जोशीमठ ब्लॉक के दुर्गम डुमक गांव से गुरुवार की सुबह आई महिला की चीत्कार ने पहाड़ के लोगो को भीतर तक झकझोर डाला। एक भालू के हमले ने एक परिवार के मुखिया को छीन लिया और उसकी पत्नि एम्स में मौत से झुकाने को मजबूर हो गई है।

प्रदेश के पहाड़ों में आज भी कुछ अत्यंत दुर्गम ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां सुविधाओं का पहुंचना आज के दौर में भी असंभव सी बात है। वहां तक आमजन का पहुंचना जीवन और मौत के बीच फर्क तय करता है।

डूमक गांव के सुंदर सिंह और उनकी पत्नी लीला देवी हररोज़ की भांति ही सुबह सुबह जंगल में घास काटने निकल गए थे। अभी जंगल में पहुंचे भी नहीं थे कि अचानक झाड़ियों में छुपे एक जंगली भालू ने लीला देवी पर झपट्टा मारा और हमला कर दिया। पत्नी लीला की चीख सुन सुंदर सिंह उस खूंखार भालू से भिड़ गए। लेकिन भालू से हुए पति पत्नी के संघर्ष के बीच सुंदर सिंह ने अपनी पत्नी की जान बचाते हुए मौत को गले लगा लिया। कुछ ही पलों में वह लहूलुहान होकर ज़मीन पर गिर पड़े हालांकि लीला देवी भी गंभीर रूप से घायल तो हुई लेकिन जान बच गईं।

चीखने चिल्लाने की आवाज सुन गांव वाले दौड़े दौड़े जंगल में पहुंचे तो देखा कि लीला देवी की हालत गंभीर थी और सुंदर सिंह की जान जा चुकी थी। गांव वाले उन्हें किसी तरह घाटियों और पथरीले रास्तों से होते हुए गांव तक तो ले आए।

परन्तु बिना एंबुलेंस बिना सड़क पगडंडियों से हिम्मत के भरोसे चार लोग कंधे पर उठाकर कई किलोमीटर तक उन्हें ले गए। प्रशासन को सूचना मिली, तो हेलीकॉप्टर पहुंचा और ऋषिकेश एम्स तक पहुंचाया गया परन्तु इसमें भी घंटों जाया हो गए। बताया जाता है कि जब तक एम्स तक पहुंचने की खबर नहीं पहुंची तब तक पूरा गांव में मंदिर के बाहर प्रार्थना में खड़ा था।

डूमक के ग्रामीणों का कहना है, सुंदर सिंह की मौत भालू से ज़्यादा उस बेबस व्यवस्था की वजह से हुई, जो हमारे गांव तक अब तक नहीं पहुंच पाई है।

वन विभाग और प्रशासन की टीम मौके पर पहुंची है, लेकिन लोगों की मांग सिर्फ जांच या मुआवज़े तक सीमित नहीं वे चाहते हैं कि डुमक को किसी तरह से सड़क आदि की सुविधा मिल जाए।

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