“बांस एवं रिंगल का पांच दिवसीय हस्तशिल्प प्रशिक्षण कायर्क्रम के समापन अवसर पर बोली डॉ रेनू सिंह(IFS) बांस गरीबों का मित्र इसको हरा सोना भी कहा जाता है। – Latest News Today, Breaking News, Uttarakhand News in Hindi

“बांस एवं रिंगल का पांच दिवसीय हस्तशिल्प प्रशिक्षण कायर्क्रम के समापन अवसर पर बोली डॉ रेनू सिंह(IFS) बांस गरीबों का मित्र इसको हरा सोना भी कहा जाता है।

देहरादून

 

कैम्पा-विस्तार योजना के तहत विस्तार प्रभाग, वन अनुसंधान संस्थान देहरादून द्वारा 19 से 23 सितंबर, 2022 तक आयोजित पांच दिवसीय व्यावहारिक प्रशिक्षण कायर्क्रम का आज समापन हो गया।

 

कायर्क्रम के पहले दिन संस्था की निदेशक, डॉ. रेनू सिंह, आईएफएस, ने बांस और रिंगल के महत्व पर अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि बांस गरीबों का मित्र है और इसे हरा सोना भी कहा जाता है। उन्होंने रिंगल के बारे में भी बताया और कहा कि यह प्रजाति पहाड़ी क्षेत्रों में आजीविका सृजन में महत्वपूणर् भूमिका निभाती है। इस मौके पर ऋचा मिश्रा, प्रमुख, विस्तार प्रभाग ने भी प्रतिभागियों के साथ बातचीत की और प्रशिक्षण कायर्क्रम की संक्षिप्त रूपरेखा बताई।

तकनीकी सत्र की शुरुआत संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संतान बथर्वाल द्वारा दिए गए बांस और रिंगल पर एक परिचयात्मक व्याख्यान के साथ हुई। डॉ. बड़थवाल ने आजीविका सृजन के संबंध में बांस और रिंगाल के उपयोग के बारे में बताया। डॉ. शैलेंद्र कुमार, वैज्ञानिक और वन उत्पाद प्रभाग के डॉ. अखातो सुमी, वरिष्ठ टकिनीकी अधिकारी ने बांस के शुष्कन और परिरक्षण पर व्याख्यान दिया। प्रशिक्षुओं ने मास्टर ट्रेनर के मागर्दशर्न में बांस और रिंगल से हस्तशिल्प बनाना सीखा। उन्होंने टोकरी, लैंपशेड, थालियाँ और फ्लावर पॉट्स सहित कई शिल्प बनाए।

 

प्रशिक्षण कायर्क्रम के दौरान, प्रशिक्षुओं ने वन उत्पाद प्रभाग के सामान्य सुविधा केंद्र का भी दौरा किया और मशीनीकरण द्वारा बांस की सफाई तथा तीलियाँ बनाने के बारे में जाना।  कायर्क्रम के समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। कायर्क्रम में श्री ए डी डोभल तथा अन्य प्रतिभागियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए और प्रशिक्षण कायर्क्रम की सराहना की। ए डी डोभाल, अध्यक्ष, सरस्वती जन कल्याण एवं स्वराजगर, संस्थान, देहरादून ने प्रशिक्षण के लिए मास्टर ट्रेनर और प्रतिभागियों की व्यवस्था करने में महत्वपूणर् भूमिका निभाई। कायर्क्रम का संचालन डॉ. चरण सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक, विस्तार प्रभाग द्वारा किया गया।

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