देहरादून
रोपवे परियोजना से सुरक्षित और सहज होने जा रही पवित्र धाम केदारनाथ व हेमकुंड साहिब यात्रा में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। इन परियोजनाओं में देश में पहली बार सबसे सुरक्षित व उन्नत ट्राई-केबल डिटैचेबल गोंडोला रोपवे तकनीक (3एस) का प्रयोग होगा।
प्रदेश के मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन,बताते हैं कि एंटी-आइसिंग तकनीक से बर्फबारी में भी निर्बाध और शोर-कंपन रहित आरामदायक सफर सुनिश्चित होगा।
सोनप्रयाग-केदारनाथ व गोविंदघाट-हेमकुंड साहिब रोपवे परियोजना के लिए वर्क आर्डर इश्यू कर दिया गया है, जल्द ही काम शुरू कर दिया जाएगा। रोपवे बनने से केदारनाथ और हेमकुंड साहिब जाने में यात्रा का समय काफी कम हो जाएगा।
बताते चलें कि अभी 3- एस तकनीक का प्रयोग विश्व के चुनिंदा देशों में ही किया जा रहा है। इस तकनीक में सौ किलोमीटर प्रति घंटे की गति से भी तेज हवा में रोपवे का सुरक्षित संचालन किया जा सकेगा।
इस तकनीक में दो स्थिर ट्रैक रोप पर गोंडोला केबिन पूरी तरह संतुलित रहते हैं। इससे केबिन के हवा में डगमगाने की संभावना नहीं रहती।
उत्तराखंड में महत्वाकांक्षी सोनप्रयाग-केदारनाथ व गोविंदघाट-हेमकुंड साहिब रोपवे परियोजनाओं में सबसे पहले प्रयोग होने जा रही ट्राई-केबल डिटैचेबल गोंडोला रोपवे तकनीक (3एस) तकनीक की सबसे बड़ी खासियत तेज हवा व विषम मौसम में गोंडोला केबिन की स्थिरता है।
इस तकनीक में रोपवे संचालन के लिए तीन अलग-अलग स्टील के तारों का उपयोग किया जाता है। इनमें से दो स्थिर केबल (ट्रैक रोप) केबिन के पूरे भार को संभालते हैं, जबकि एक चलायमान केबल (हाल रोप) केबिन को आगे-पीछे खींचता है।
यह तकनीक सामान्य रोपवे प्रणालियों से अलग है। सामान्य रोपवे में एक या दो केबल पर ही पूरा भार और गति निर्भर होती है, 3-एस सिस्टम में भार और गति अलग-अलग केबलों पर होने से सुरक्षा कई गुना बढ़ जाती है।
यह विश्वस्तरीय तकनीक अभी तक स्विट्जरलैंड, आस्ट्रिया, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा और चीन में उपयोग में लाई जा रही है।
3-एस तकनीक में एआइ आधारित स्मार्ट तकनीक काम करती है। सेंसर और कैमरों से मिलने वाले रीयल-टाइम डेटा का एआइ विश्लेषण कर केबल, ब्रेक और ड्राइव सिस्टम में संभावित खराबी का पूर्वानुमान लगा लेता है। इससे दुर्घटनाओं की आशंका कम होती है।
3-एस रोपवे की प्रमुख विशेषताएं
प्रत्येक केबिन बंद, वातानुकूलित व मौसम-रोधी होगा, इससे हर मौसम में सुरक्षित व आरामदायक यात्रा संभव होगी।
वजन संतुलन के लिए सेंसर और मल्टी-लेयर ब्रेक सिस्टम से रोपवे का संचालन और अधिक सुरक्षित रहेगा।
इस प्रणाली में कम टावर प्रयोग होंगे, एक टावर से दूसरे टावर के बीच लंबी दूरी होगी, जिससे निर्माण कम होगा और पर्यावरण को न्यूनतम नुकसान पहुंचेगा।
डिटैचेबल ग्रिप सिस्टम से स्टेशन पर गति कम और लाइन पर तेज रहेगी, इससे यात्रा समय में कमी आएगी।
आधुनिक केबिन डिजाइन में 16 से 20 या उससे अधिक यात्रियों का एक साथ सुरक्षित परिवहन संभव होगा।
उत्तराखंड केदारनाथ रोपवे के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग करने वाला देश का पहला राज्य होगा। यह रोपवे 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाओं में भी संचालित हो सकेगा, जिससे केदारनाथ यात्रा सुगम होगी।
इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य यात्रा को सुरक्षित बनाना है। यह परियोजना उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा देने में भी मददगार साबित होगी।