प्रदेश में मदरसा बोर्ड समाप्त कर उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान विधेयक 2025 बनेगा,2026 के शैक्षणिक सत्र में होगा लागू

देहरादून

आज से भराड़ीसैंण,गैरसैण में मानसून सत्र शुरू होने जा रहा है जिसमें कई निर्णय लिये जाने हैं।उत्तराखंड की धामी सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए मदरसा बोर्ड को समाप्त करने का ऐलान किया है जिसको सत्र के दौरान चर्चा के लिए लाया जाना है। इसकी जगह राज्य में उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान विधेयक 2025 लागू किया जाएगा, जो वर्ष 2026 के शैक्षणिक सत्र से प्रभावी होगा। इस फैसले के बाद उत्तराखंड देश का एक ऐसा पहला राज्य बन जाएगा, जहां अलग से अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के लिए अधिनियम लागू होगा।

आइए जानने का प्रयास करते हैं कि क्या है यह नया अधिनियम…

उल्लेखनीय है कि इस विधेयक को हाल ही में कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है और इसे गैरसैंण विधानसभा के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा। विधेयक के लागू होते ही उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड (2016) और गैर-सरकारी अरबी-फारसी मदरसा अधिनियम (2019) दोनों समाप्त हो जाएंगे।

बताया जा रहा है कि इस नए कानून के तहत केवल मुस्लिम ही नहीं बल्कि ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी और सिख समुदाय के शैक्षिक संस्थान भी अल्पसंख्यक शिक्षा अधिनियम के दायरे में आ जाएंगे।

इस संबंध में प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि नए अधिनियम से शिक्षा की गुणवत्ता और पारदर्शिता दोनों ही बढ़ेंगी।

इससे अल्पसंख्यक समुदायों के संस्थानों को मान्यता लेने में आसानी होगी और शिक्षा में सुधार होगा। साथ ही गुरुमुखी और पाली भाषा भी पढ़ाई जाएगी। धार्मिक शिक्षा पर कोई रोक नहीं होगी।

इस फैसले को लेकर कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने सवाल खड़े किए हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने कहा कि सरकार का मकसद शिक्षा सुधार नहीं बल्कि राजनीति है।

भाजपा विकास करने के बजाय हिंदू-मुस्लिम का नैरेटिव गढ़ रही है। अगर शिक्षा उन्नयन ही मकसद था तो बोर्ड बनाने की जरूरत नहीं थी।

कांग्रेस प्रवक्ता सुजाता पॉल ने भी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि जब सरकारी स्कूलों में शिक्षक और सुविधाओं की भारी कमी है, तब इस तरह के नए कानून लाकर जनता को गुमराह किया जा रहा है।

इस्लामिक मामलों के जानकार खुर्शीद अहमद ने इसे संविधान के अनुच्छेद 30 (a) का उल्लंघन बताया। उनका कहना है कि पहले से ही देश में अल्पसंख्यक आयोग मौजूद है, इसलिए नया प्राधिकरण बनाना गैरजरूरी है।

वहीं, उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहते हैं कि धार्मिक शिक्षा पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।

बीजेपी विधायक भरत सिंह चौधरी ने कहा कि यह दूरगामी और सकारात्मक फैसला है, जिससे मुस्लिम समेत अन्य समुदायों की शिक्षा की दिशा बदल जाएगी।

उत्तराखंड सरकार का यह निर्णय एक ओर जहां शिक्षा में सुधार और पारदर्शिता का दावा कर रहा है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष और मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्ग इसे राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं। अब देखना होगा कि विधानसभा से विधेयक पास होने के बाद यह अधिनियम विवाद में फंस जाता है या फिर वास्तव में समाज के लिए कोई काम कर पाता है। फिलहाल तो इंतजार करना पड़ेगा।

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