जनकवि अतुल शर्मा ने उत्तराखंड राज्य बनने से पहले की कुछ यादें साझा की,कैसे आंदोलनकारी जाते थे राज्य की अलख जगाने जानिए उनके ही मुख से

देहरादून

उत्तराखंड राज्य बनने से पहले के कुछ यादगार पलो को जनकवि अतुल शर्मा ने संजोया और साझा किया। आज राज्य को बने 25 साल पूरे हो चुके हैं और हम रजत जयंती समारोह मना रहे हैं। इस कार्यक्रम में देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की मौजूदगी प्रदेश का गौरव बढ़ा रही हैं। आज हम सोच रहे हैं कि क्या खोया क्या पाया। राज्य की विधानसभा में प्रश्न पर प्रश्न उठ रहे हैं। हरेक व्यक्ति राज्य का कह रहा हे ये हुआ एचबी हुआ ये होना चाहिए था ये नहीं होना चाहिए था। लेकिन बात की जाए उन जज्बातों की गहराइयों को सोचने समझने का समय है जिसके लिए बलिदानियों ने अपनी जान तक का बलिदान दे दिया। ये अलग बात हो सकती है कि कुछ को ज्यादा कुछ को कम सम्मान मिल होगा या किसी को कुछ भी नहीं मिला होगा।

इस मौके पर याद करते हुए अतुल शर्मा बताते हैं कि जाड़े की सुबह और हड्डी जमा देने वाली ठंड मे उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलनकारियों द्वारा जनगीतों की गूँज से माहौल तरंगित हो जाता था। मै सन् चौरान्बे से प्रभात फेरियो में शामिल रहा करता था। देहरादून सहित पूरे उत्तराखण्ड मे इससे बड़ी जनजागृति आई ‌। देहरादून मे सांस्कृतिक मोर्चा का गठन किया गया। इसके संस्थापक सदस्य के रुप मे कार्य चलता रहा। नुक्कड़ नाटक मौहल्लों मे होते और जन गीत गूंज उठते। वीर सिह ठाकुर ने इसमे अग्रणी भूमिका निभाई और संयोजक बनाये गये दादा अशोक चक्रवर्ती। फरवरी सभी रंगकर्मी इसमें शामिल हो गए। सुरेन्द्र भंडारी के निर्देशन मे नुक्कड़ नाटक हुए। लेखक थे अवधेश। इसे हज़ारों जगह प्रभात फेरियो और पोस्टर प्रदर्शनी हुई। मशाल जुलूसो मे सांस्कृतिक मोर्चा सबसे आगे रहता ‌। जनगीतो मे लड़के लेगे उत्तराखंड, ले मशाले चल पड़े हैं, ततुक नी लगाऊ देख, उठा जाता उत्तराखंडियो,,, लड़ना है भाई आदि बहुत से जन गीत गाये जाते थे ‌। नरेंद्र सिह नेगी गिरीश तिवारी गिर्दा डख अतुल शर्मा ज़हूर आलम बल्ली सिह चीमा, निरंजन सुयाल आदि के जन गीत गाये जाते ‌‌‌‌‌‌‌

इसी तरह मै उत्तर काशी, चमोली, नैनीताल अल्मोड़ा, आदि मे प्रभात फेरियो मे निरंतर शामिल रहा ‌। फिर मशाल जुलूसो व अन्य प्रकार की गतिविधियों मे सांस्कृतिक मोर्चा शामिल रहता ‌।

क ई जन गीत पुस्तकों , कैसेटो व फिल्मों के माध्यम से आन्दोलन को गति मिली।

जब भी महौल की गति कम होती तो जन गीत उठते और माहौल बना देते। यहाँ तक कर्फ्यू को भी तोड़ा गया।

जहां हम रह रहे हैं यानी भगत सिह कालोनी वाणी विहार मे

वहां से भी हम आते थे ढपली बजाते हुए निकलते थे।

प्रभात फेरी निकालते ‌‌‌‌‌‌‌‌।

इसमे रणजीत सिह वर्मा सुशीला बलूनी वेद उनियाल रविन्द्र जुगरान आदि उपस्थित रहते ‌।

_ डा अतुल शर्मा

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