देहरादून
दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर (DLRC) और स्पेक्स (SPECS) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित द देहरादून डायलॉग (TDD) के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसका विषय था: “खाद्य मिलावट को जानें और पहचानें”।*
कार्यक्रम का शुभारंभ दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर (DLRC) के डॉ. चन्द्रशेखर तिवारी के स्वागत भाषण से हुआ। उन्होंने डॉ बृज मोहन शर्मा को इस महत्त्वपूर्ण और सामयिक विषय पर तकनीकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद दिया।
इसके पश्चात् “दि देहरादून डायलॉग” (TDD) की ओर से हरि राज सिंह ने डॉ बृज मोहन शर्मा का परिचय दिया गया।
इस कार्यक्रम में श्री देव सुमन विश्वविद्यालय, उत्तरांचल विश्वविद्यालय, समय साक्ष्य और स्पीकिंग क्यूब भी सहयोगी की भूमिका में रहे।
इस अवसर पर देश के जाने-माने पर्यावरण वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. बृज मोहन शर्मा ने छात्र-छात्राओं, शिक्षकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों को संबोधित किया।
डॉ. शर्मा ने अपने व्याख्यान की शुरुआत मिलावट के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से की। उन्होंने बताया कि मिलावट कोई नई समस्या नहीं है, यह इतिहास में सदियों से समाज के सामने मौजूद रही है, परंतु आधुनिक दौर में यह समस्या अत्यंत गंभीर और व्यापक बन गई है।
दैनिक जीवन में मिलावट की भयावह सच्चाई….
डॉ. शर्मा ने विस्तारपूर्वक बताया कि किस प्रकार आज हमारी दैनिक उपभोग की लगभग सभी वस्तुएं—चाहे वे रसोई की हों, बाजार से लाई गई हों या त्योहारों में प्रयोग की जाने वाली—रासायनिक या भौतिक मिलावट का शिकार हो रही हैं। उन्होंने कहा कि दूध में सामान्यतः यूरिया, स्टार्च, डिटरजेंट और ड्राय मिल्क पाउडर मिलाया जाता है, जिससे वह गाढ़ा और असली दिखे। इसी तरह पनीर में ड्राय मिल्क, कृत्रिम तेल और स्टार्च मिलाकर उसे बाजार में ताज़ा और सस्ता बताया जाता है। घी में वनीस्पति तेल, डिटरजेंट और कृत्रिम सुगंध मिलाकर उसकी गुणवत्ता को झूठा दर्शाया जाता है।
उन्होंने बताया कि मसालों जैसे हल्दी में क्रोमियम येलो, मिर्च में लाल ऑक्साइड और धनिया पाउडर में सांवले रंग का बुरादा मिलाया जाता है। दालों में रंग और पॉलिशिंग के लिए कृत्रिम रसायनों का उपयोग होता है। सरसों, मूंगफली और सोयाबीन तेल में खनिज तेल और सिंथेटिक पदार्थ मिलाए जाते हैं। आटा और विशेष रूप से कुट्टू का आटा में चूना, सस्ते अनाज और स्टार्च मिलाकर उसकी शुद्धता को प्रभावित किया जाता है।
चीनी में चॉक पाउडर और साबुन पाउडर, तथा नमक में सफेद मिट्टी और पाउडर पत्थर की मिलावट आम हो गई है। कॉर्न सिरप जैसे मीठे उत्पादों में हाई फ्रक्टोज़ और रासायनिक स्वीटनर्स का अत्यधिक प्रयोग किया जाता है। फल और सब्जियों को कार्बाइड, वैक्स और सिंथेटिक रंगों से चमकाया जाता है, ताकि वे अधिक आकर्षक दिखें, भले ही उनके भीतर ज़हर ही क्यों न छुपा हो।
डॉ. शर्मा ने यह भी कहा कि पूजन सामग्री, जैसे अगरबत्ती, रंग, और भस्म आदि में भी संवेदनशील रसायनों और जहरीले तत्वों की मिलावट होती है। वहीं मिठाइयों में सिंथेटिक रंग, मिलावटी सिल्वर फॉयल (जो कि एल्युमिनियम की होती है) और सस्ते तेलों व कृत्रिम शुगर सिरप का प्रयोग किया जाता है, जिससे वे दिखने में आकर्षक लगें लेकिन शरीर में ज़हर फैलाएं।
उन्होंने चेताया कि इस प्रकार की मिलावट केवल उपभोक्ता को धोखा नहीं देती, बल्कि यह धीरे-धीरे शरीर को बीमारियों का घर बना देती है। कैंसर, किडनी रोग, हार्मोन असंतुलन, पाचन विकार और बच्चों में मानसिक व शारीरिक विकास की रुकावट—इन सभी का एक बड़ा कारण मिलावटी खाद्य पदार्थों का लगातार सेवन है। अतः समाज को इस दिशा में सजग और संगठित प्रयास करने की आवश्यकता है।
उन्होंने वैज्ञानिक तथ्यों और उदाहरणों के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि इन मिलावटी पदार्थों का सेवन किस प्रकार हमारी सेहत के लिए घातक बीमारियों जैसे कैंसर, लीवर खराबी, किडनी फेलियर, हॉर्मोनल असंतुलन, और बच्चों में मानसिक विकास की कमी आदि का कारण बन रहा है।
घरेलू परीक्षण: जागरूकता की दिशा में पहला कदम…
डॉ. शर्मा ने अपने व्याख्यान में यह महत्वपूर्ण तथ्य साझा किया कि मिलावट की पहचान केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि घर पर ही कुछ सरल वैज्ञानिक परीक्षणों के माध्यम से भी यह संभव है। उन्होंने बताया कि ये प्रयोग न केवल उपभोक्ता को सजग बनाते हैं, बल्कि समाज में विज्ञान-आधारित उपभोक्ता जागरूकता को भी बल देते हैं। उन्होंने इन परीक्षणों का मंच पर प्रत्यक्ष प्रदर्शन करते हुए दर्शाया कि आमजन भी थोड़े से ज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मिलावट की पहचान कर सकते हैं।
• पहला परीक्षण दूध में पानी की मिलावट की पहचान से जुड़ा था। डॉ. शर्मा ने बताया कि दूध की घनता पानी से अधिक होती है, इसलिए यदि दूध में पानी मिलाया गया हो, तो वह चिकनी सतह पर तेजी से फैल जाता है। एक बूंद दूध को टाइल या काँच की प्लेट पर गिराकर देखा जा सकता है—शुद्ध दूध धीरे फैलेगा, जबकि मिलावटी दूध पानी जैसा फैल जाएगा।
• हल्दी में कृत्रिम रंग की मिलावट की पहचान के लिए उन्होंने बताया कि प्राकृतिक हल्दी पानी में पूरी तरह नहीं घुलती और उसका रंग हल्का होता है, जबकि मिलावटी हल्दी (जिसमें मेथेनिल येलो या क्रोमियम येलो जैसे रंग मिलाए जाते हैं) पानी में घुलकर गहरा रंग छोड़ती है। एक चुटकी हल्दी को गर्म पानी में डालने पर यदि पानी गहरा नारंगी हो जाए, तो वह मिलावटी है।
• चीनी में चॉक पाउडर की मिलावट की पहचान के लिए उन्होंने बताया कि चॉक (कैल्शियम कार्बोनेट) पानी में नहीं घुलता, जबकि चीनी पूरी तरह घुल जाती है। एक गिलास पानी में थोड़ी चीनी मिलाकर यदि तल में सफेद अवशेष रह जाए, तो वह चॉक की मिलावट का संकेत है।
• इसी तरह चाय की पत्तियों में कृत्रिम रंग की मिलावट को भी आसानी से पहचाना जा सकता है। प्राकृतिक चाय की पत्तियाँ धीरे-धीरे हल्का रंग छोड़ती हैं, जबकि मिलावटी चाय (जिसमें रंग मिलाया गया हो) तुरंत गहरा भूरा या काला रंग छोड़ देती है। यह परीक्षण एक कप गर्म पानी में चाय की पत्तियाँ डालकर किया जा सकता है।
• आटे में मैदा या चूना की मिलावट की पहचान के लिए उन्होंने दो परीक्षण सुझाए। पहला – एक चम्मच आटे में नींबू का रस डालें; यदि झाग उठे, तो उसमें चूना हो सकता है। दूसरा – आटे को पानी में घोलकर उसकी बनावट महसूस करें; मैदा चिकना और लसलसा होगा, जबकि शुद्ध गेहूं का आटा अपेक्षाकृत दानेदार होगा।
• डॉ. शर्मा ने विशेष रूप से सब्जियों और फलों को ताज़ा दिखाने के लिए उपयोग किए जा रहे रसायनों के बारे में चेताया।
उन्होंने बताया कि कई दुकानदार और आपूर्तिकर्ता सब्जियों को कृत्रिम ताज़ा और चमकदार दिखाने के लिए वेक्सिंग एजेंट्स, रासायनिक कोटिंग और पॉलिशिंग पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं। यहाँ तक कि कई बार एथिलीन या कैल्शियम कार्बाइड गैस का उपयोग अधपके फलों को तेजी से पकाने के लिए किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। उन्होंने कहा कि ऐसी सब्ज़ियों और फलों की सतह अधिक चिकनी और अस्वाभाविक रूप से चमकदार होती है, जिनसे सावधान रहना चाहिए।
• नमक में मिलावट के संदर्भ में डॉ. शर्मा ने बताया कि आमतौर पर नमक में सफेद मिट्टी, टैल्क पाउडर या पाउडर पत्थर की मिलावट की जाती है। इसे पहचानने के लिए नमक को पानी में घोलकर कुछ समय के लिए रखा जाए—यदि कोई सफेद अवशेष तल में बैठ जाए, तो वह मिलावट का संकेत है। इसके अलावा, अशुद्ध नमक अक्सर जल्दी नमी खींचता है और जम जाता है, जबकि शुद्ध आयोडीनयुक्त नमक हल्का और दानेदार रहता है।
• दालों में मिलावट की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि दालों को चमकदार और नया दिखाने के लिए उनमें पॉलिशिंग एजेंट्स और कृत्रिम रंग मिलाए जाते हैं। विशेष रूप से चना, अरहर और मसूर की दालों में यह अधिक देखा गया है। इन्हें पहचानने के लिए दालों को पानी में भिगोया जाए—यदि पानी रंगीन हो जाए या दाल की सतह से कोई परत उतरने लगे, तो समझना चाहिए कि उसमें पॉलिशिंग या रंग की मिलावट है।
• अंत में, डॉ. शर्मा ने सभी उपस्थित छात्रों, शिक्षकों और नागरिकों से आग्रह किया कि वे इन घरेलू परीक्षणों को अपने जीवन में अपनाएं और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें। उन्होंने कहा कि एक जागरूक उपभोक्ता ही मिलावट के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार है, और जब विज्ञान, अनुभव और सामूहिक चेतना एक साथ आएँ, तो कोई भी मिलावटखोर समाज को धोखा नहीं दे सकता।
उन्होंने यह भी बताया कि SPECS संस्था ने वर्ष 1999 में मिलावट के विरुद्ध एक संगठित जन-अभियान की शुरुआत की थी, जो आज भी सक्रिय रूप से जारी है। इसके अंतर्गत छात्रों, शिक्षकों और आम नागरिकों के लिए कार्यशालाएं, परीक्षण शिविर, और जन-जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
“रसोई कसौटी” और राष्ट्रीय प्रभाव*
डॉ. शर्मा ने बताया कि वर्ष 2004 में स्पेक्स ने एक नवाचार _“रसोई कसौटी”_ नामक किट विकसित की, जिससे घर पर ही खाद्य वस्तुओं की शुद्धता जांची जा सकती है। यह किट भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त है और इसका उपयोग देशभर के सभी राज्यों और जिलों में किया गया है। यह भारत के विज्ञान क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान के रूप में स्थापित हुआ है।
चारधाम यात्रा के दौरान “मिलावट से मुक्ति अभियान”..
स्पेक्स द्वारा चलाया गया “चारधाम मिलावट से मुक्ति अभियान” उत्तराखंड में विशेष रूप से चर्चित रहा है, जिसके अंतर्गत तीर्थयात्रियों, दुकानदारों और आम जनता को मिलावटी खाद्य पदार्थों की पहचान और उनके दुष्परिणामों की जानकारी दी गई। इस अभियान को सरकार और मीडिया से भी व्यापक समर्थन मिला।
समाधान: मिलावट की समस्या पर समग्र दृष्टिकोण….
डॉ. शर्मा ने मिलावट की समस्या को केवल सरकार या उपभोक्ता तक सीमित न मानते हुए, समाज के प्रत्येक वर्ग की जिम्मेदारी को रेखांकित किया। उन्होंने “मिलावट की समस्या और समाधान: घर, विद्यालय, समाज, व्यापार, सरकार और बुजुर्गों की भूमिका” शीर्षक से एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
घर/परिवार स्तर पर समाधान…
• हर सदस्य को सजग उपभोक्ता बनने की आवश्यकता है।
• खरीदारी करते समय बिल लेना और गुणवत्ता चिह्न (FSSAI, ISI, AGMARK) देखना अनिवार्य हो।
• घर पर छोटे-छोटे परीक्षण सिखाए जाएं – जैसे दूध, हल्दी, शक्कर, नमक आदि में मिलावट की पहचान।
• स्वावलंबन को बढ़ावा दें – जैसे छत पर सब्जी उगाना, घर में अचार-मसाले बनाना।
• बुजुर्गों के अनुभवों को साझा किया जाए – वे गंध, स्वाद और बनावट से खाद्य की शुद्धता पहचान सकते हैं।
विद्यालय स्तर पर समाधान…
• विद्यालयों में “मिलावट को जानें और पहचानें” को सिलेबस का हिस्सा बनाया जाए।
• बच्चों को प्रयोगात्मक रूप से खाद्य पदार्थों की शुद्धता की जांच सिखाई जाए।
• फ़ूड सेफ्टी क्लब की स्थापना की जाए।
• बुजुर्गों को विद्यालयों में बुलाकर “अनुभव साझा कार्यक्रम” कराए जाएं।
• मिड-डे मील और कैंटीन की गुणवत्ता की नियमित जांच स्टूडेंट कमिटीज द्वारा की जाए।
समाजिंक स्तर पर समाधान…
• नुक्कड़ नाटक, रैली, पोस्टर प्रतियोगिता जैसे जन-जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
• ग्राम सभाओं, RWA मीटिंग में मिलावट को चर्चा का विषय बनाया जाए।
• फूड टेस्टिंग कैंप्स लगाए जाएं – जहाँ लोग अपने खाद्य पदार्थों की जांच करवा सकें।
• वर्षों से शुद्ध व्यापार करने वाले दुकानदारों को “शुद्ध आहार सम्मान” से सम्मानित किया जाए।
व्यापार स्तर पर समाधान…
• व्यापारियों को सेल्फ सर्टिफिकेशन प्रणाली अपनानी चाहिए।
• उत्पादों पर क्यू आर कोड ट्रेसबिलिटी लागू हो जिससे ग्राहक उत्पाद की उत्पत्ति जान सके।
• कोल्ड स्टोरेज और सप्लाई चेन की गुणवत्ता सुधारी जाए।
• सी एस आर (CSR) के अंतर्गत कंपनियाँ “मिलावट जागरूकता अभियान” चलाएं।
सरकारी स्तर पर समाधान….
• कड़े कानून और फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनें, जिससे मिलावट करने वालों को शीघ्र सजा मिले।
• मोबाइल टेस्टिंग वैन को गांव-कस्बों तक पहुँचाया जाए।
• रिसर्च एंड डेवलपमेंट में निवेश किया जाए जिससे हर किसी को सस्ती, पोर्टेबल मिलावट जांच किट मिल सके।
• व्हिसलब्लोअर नीति लाई जाए – मिलावट की सूचना देने वाले को सम्मान और पुरस्कार मिले।
• शुद्ध भारत आंदोलन को मीडिया और सोशल मीडिया पर जोर- शोर से चलाया जाए।
बुजुर्गों की भूमिका…
• बुजुर्गों का अनुभव अद्वितीय है – वे पारंपरिक तरीकों से मिलावट की पहचान करते हैं।
• विद्यालयों, समाजिक कार्यक्रमों, और परिवारों में बुजुर्गों की कार्यशालाएं करवाई जाएं।
• इस ज्ञान को डॉक्यूमेंट कर पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए।
डॉ. शर्मा ने खाद्य वस्तुओं में उपयोग किए जा रहे प्रिज़र्वेटिव्स और सिंथेटिक रसायनों की बढ़ती मात्रा को गंभीर चिंता का विषय बताया और निम्नलिखित सुझाव दिए:
• प्रिज़र्वेटिव्स के उपयोग पर कड़े नियम और मानक लागू हों।
• उनकी मात्रा और प्रकार की नियमित और सख्त जांच हो।
• हर खाद्य उत्पाद का लैब टेस्टिंग अनिवार्य किया जाए।
• हानिकारक और गैर-अनुमोदित रसायनों के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए।
• खाद्य सुरक्षा विभाग की टीमों को प्रशिक्षित और आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया जाए।
• उपभोक्ताओं के बीच प्रिज़र्वेटिव्स के दुष्प्रभावों को लेकर जन-जागरूकता अभियान चलाया जाए।
• उल्लंघनकर्ताओं पर कड़ी कार्यवाही और छापेमारी की जाए।
• एफएसएसएआई और राज्य एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाया जाए।
• पारदर्शिता हेतु प्रिज़र्वेटिव्स की जानकारी सार्वजनिक की जाए
व्याख्यान में सनराइज अकादमी, उत्तरांचल विश्वविद्यालय, डीबीएस कॉलेज के विद्यार्थियों सहित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, संयुक्त नागरिक संगठन, सिविल डिफेंस आदि संस्थानों के शोधार्थियों ने संवादात्मक सत्र में सहभागिता की।डॉ. चंद्रशेखर तिवारी, डॉ. यश पाल सिंह, डॉ. दिनेश सती, रानू बिष्ट, हरि राज सिंह, डॉ. विनोद कुमार भट्ट, बालेंदु जोशी, डॉ. विजय गंभीर, हिमांशु आहूजा, विजय भट्ट, आर. के. मुखर्जी, राम तिरथ मोर्या और अशोक कुमार जैसे विशेषज्ञों और समाजसेवियों ने प्रतिभाग किया।