सुप्रीम कोर्ट से मिली जमीन मामले में 22 महीने से जेल में बंद सुधीर विंडलास को जमानत,3 बार हाइकोर्ट ने की थी जमानत अर्जी खारिज

देहरादून

जमीन फर्जीवाड़ा प्रकरण में उत्तराखंड के चर्चित उद्योगपति सुधीर विंडलास को आखिरकार सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है। करीब 22 महीने से जेल में बंद विंडलास को सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत दे दी है। इस फैसले के बाद उनके जेल से बाहर आने का रास्ता फिलहाल साफ हो गया है।

उद्योगपति सुधीर विंडलास की इससे पहले जुलाई 2025 में नैनीताल हाईकोर्ट ने उनकी तीसरी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट से राहत न मिलने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

सीबीआई ने 21 दिसंबर 2023 को सुधीर विंडलास को उनके सहयोगियों के साथ गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने देहरादून के राजपुर-जौहड़ी क्षेत्र में सरकारी जमीन पर फर्जी दस्तावेज तैयार कर कब्जा किया और बाद में उसे निजी व्यक्तियों को बेच दिया था।

जांच में सामने आया था कि जिल्द, खतौनी और खसरा रिकॉर्ड आदि राजस्व अभिलेखों में हेरफेर कर भूमि के क्षेत्रफल में बदलाव किया गया था ताकि सरकारी भूमि को निजी संपत्ति की तरह दिखाया जा सके।

हालांकि इस घोटाले की जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी कर रहा है और ईडी ने सुधीर विंडलास और उनके सहयोगी गोपाल गोयनका की लगभग 2.20 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति अटैच कर दी थी। ईडी की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी रिकार्ड में बदलाव कर लगभग दो हेक्टेयर भूमि को बेच दिया गया था।

सुधीर विंडलास के खिलाफ जमीन फर्जीवाड़े से जुड़े चार अलग-अलग मुकदमे दर्ज हैं। ये सभी मामले अब राज्य पुलिस से सीबीआई को ट्रांसफर किए जा चुके हैं। कुल 20 आरोपियों में से कई की गिरफ्तारी भी हो चुकी है।

प्रमुख मामले जानिए,..

👉🏽पहला मामला (2018) – राजपुर निवासी दुर्गेश गौतम की शिकायत पर दर्ज। आरोपः सरकारी जमीन पर कब्जा।

👉🏽दूसरा मामला (9 जनवरी 2022) – संजय सिंह चौधरी, संचालक दून पैरामेडिकल कॉलेज, ने अपनी जमीन फर्जी दस्तावेजों से बेचने की शिकायत दी।

👉🏽तीसरा मामला (13 जनवरी 2022) लेफ्टिनेंट कर्नल सोबन सिंह दानू (रिटायर्ड) ने सरकारी आवंटित भूमि पर कब्जे की शिकायत दर्ज कराई।

👉🏽चौथा मामला (25 जनवरी 2022) फिर से चौधरी की शिकायत पर दर्ज, एक अन्य भूखंड की फर्जी बिक्री का मामला।

देहरादून जैसे संवेदनशील और तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्र में सरकारी जमीन की इस तरह की फर्जीवाड़े करके और बिक्री करने से प्रशासनिक तंत्र की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि राजस्व विभाग की मिलीभगत के बिना इस स्तर का घोटाला संभव नहीं। अभिलेखों में फेरबदल और फर्जी रजिस्ट्री तैयार करने के लिए कई स्तरों की मंजूरी आवश्यक होती है।

सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बावजूद सुधीर विंडलास की मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई हैं। सीबीआई और ईडी दोनों एजेंसियां इस मामले की जांच आगे बढ़ा रही हैं। सूत्रों के अनुसार, अब फोकस यह पता लगाने पर होगा कि राजस्व अधिकारियों और निजी दलालों की मिलीभगत किस हद तक थी और किसे इसका वास्तविक लाभ मिला।

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