दून नगर निगम में फिर से आया बिना सड़क बनाए कागजों में बनी सड़क की पेमेंट का मामला,ठेकेदार को रिसीवरी नोटिस जारी – Latest News Today, Breaking News, Uttarakhand News in Hindi

दून नगर निगम में फिर से आया बिना सड़क बनाए कागजों में बनी सड़क की पेमेंट का मामला,ठेकेदार को रिसीवरी नोटिस जारी

देहरादून

दून नगर निगम में पहले भी कई तरह के घुले सामने आते रहे हैं।इस बार सड़क निर्माण को लेकर बड़ी लापरवाही का मामला सामने आया है। इंदिरापुरम वार्ड स्थित राज एन्क्लेव साईंलोक कॉलोनी में जिस सड़क को पिछले बोर्ड के कार्यकाल में नया बनाया जाना था, वह जमीन पर बनी ही नहीं, लेकिन कागज़ों में सड़क भी बन गई और भुगतान भी पूरा हो गया। इतना ही नहीं, सड़क का बोर्ड भी लगवा दिया गया, जिसमें कार्य पूरा होने की तारीख 2024–2025 दर्शाई गई है।

नगर आयुक्त नमामी बंसल ने इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए संबंधित ठेकेदार को रिकवरी नोटिस जारी किया है। उन्हें संतोषजनक स्पष्टीकरण न देने पर ब्लैकलिस्ट करने की चेतावनी भी दी गई है।

सूत्रों के अनुसार, वार्ड 41 राज एन्क्लेव साईंलोक कॉलोनी में

125 मीटर सड़क, और 175 मीटर सड़क का काम प्रस्तावित दिखाया गया।

शिकायत में दावा किया गया है कि

125 मीटर की जगह 140 मीटर सड़क दिखा दी गई, जबकि 175 मीटर वाली सड़क बनाई ही नहीं गई।

इसके बावजूद कागज़ों पर दोनों सड़कों को पूरा बताकर करीब 20 लाख रुपये का भुगतान भी करा दिया गया। यह खुलासा तब हुआ जब क्षेत्रवासियों और नए पार्षद ने निगम के लोक निर्माण अनुभाग से सड़क न बनने की शिकायत की। इसके बाद विभाग से विस्तृत जांच रिपोर्ट मांगी गई है।

नियमों के अनुसार, किसी भी भुगतान से पहले संबंधित इंजीनियरों द्वारा साइट का निरीक्षण किया जाना अनिवार्य है। ऐसे में सड़क न बनने के बावजूद भुगतान होना कई गंभीर सवाल खड़े करता है। साइट विजिट ,निरीक्षण रिपोर्ट के बाद ही निगम कर्मचारियों की मिलीभगत से ही भुगतान संभव हुआ होगा।

नगर आयुक्त ने कहा है कि यदि किसी अधिकारी की लापरवाही पाई गई तो विभागीय कार्रवाई तय है।

नियम विरुद्ध भुगतान पर नगर निगम ने ठेकेदार को ₹5.5 लाख की रिकवरी नोटिस जारी किया है। संतोषजनक जवाब न मिलने पर ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है।

पूर्व नगर आयुक्त आईएएस मनुज गोयल ने भी अपने कार्यकाल में ऐसे कई फर्जी टेंडर निरस्त किए थे। कुछ सड़कों पर विधायक निधि से काम पहले ही हो चुका था, लेकिन निगम में दोबारा टेंडर डाल दिया गया था। यदि उस समय ऐसे मामलों की जांच न होती तो बिना काम किए ही लाखों रुपये का भुगतान हो जाता।

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