एम्स की मेहनत से तीन दशक बाद देख सकेगा रंगीन दुनिया हरियाणा का 73 वर्षीय बुजुर्ग

देहरादून/ऋषिकेश
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स ऋषिकेश) में 30 साल पहले अपनी नेत्र ज्योति खो चुके एक बुजुर्ग की नेत्र ज्योति लौटाई है, लिहाजा यह बुजुर्ग अब ईश्वर की बनाई हुई रंगबिरंगी दुनिया को फिर से देख सकेंगे। एम्स के नेत्र विभाग की टीम ने इस असंभव कार्य को संभव कर दिखाया है। संस्थान के चिकित्सकों की इस उपलब्धि पर एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने नेत्र विभाग की टीम की प्रशंसा की है। साथ ही उन्होंने संस्थान में मरीजों को विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने की बात कही है।
हरियाणा के भिवानी जिला निवासी एक 73 वर्षीय बुजुर्ग को बिल्कुल भी यह उम्मीद नहीं थी, कि वह फिर से देख सकेंगे। तीन दशक पूर्व यानि वर्ष 1990 में इस बुजुर्ग की दोनों आंखों में संक्रमण होने से एक के बाद दूसरी आंख की भी ज्योति चली गई और उनका जीवन पूरी तरह से परिवार के दूसरे सदस्यों पर निर्भर हो गया, नेत्र ज्योति चली जाने के बाद उनकी दुनिया उनके कमरे व आंगन के बीच सिमट गई थी। बुजुर्ग ने कुछ साल पहले रोहतक के एक अस्पताल में अपनी एक आंख का ऑपरेशन भी कराया, मगर नेत्र ज्योति फिर भी नहीं लौटी।
दुनिया को दोबारा देख पाने की उम्मीद लगाए बुजुर्ग ने मन से हार नहीं मानी और किसी ने उन्हें एम्स ऋषिकेश में अपनी आंखों का परीक्षण कराने का सुझाव दिया। संस्थान में उपचार के बाद बुजुर्ग 73 वर्ष की अवस्था में फिर से देखने लगे हैं।
एम्स के निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि हमें अपने चिकित्सकों के अनुभव पर पूरा भरोसा है। विश्वस्तरीय उपचार विधि,अनुभवी चिकित्सकों और सकारात्मक प्रयासों से एम्स ने कई लोगों को जीवनदान दिया है। उन्होंने बताया कि नेत्र विभाग द्वारा बुजुर्ग को उपचार के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है, उन्हें संस्थान के चिकित्सकों की अथक कोशिश से 30 साल बाद फिर से दिखाई देने लगा है। निदेशक एम्स ने कहा कि जिन उद्देश्यों को लेकर उत्तराखंड में एम्स संस्थान की स्थापना की गई है, उसे प्रतिबद्धता के साथ साकार रूप दिया जाएगा। संस्थान के नेत्र विभागाध्यक्ष डा. एस.के. मित्तल ने बताया कि हरियाणा निवासी 73 वर्षीय बुजुर्ग की दोनों आंखों की ज्योति करीब 30 वर्ष पहले समाप्त हो गई थी। जांच के बाद पाया गया कि उनकी दाईं आंख में यदि काॅर्निया प्रत्यारोपित कर दिया जाए तो उनकी नेत्र ज्योति लौट सकती है। लिहाजा इस प्रयोग को किया गया जो कि सफल रहा।
संस्थान की काॅर्निया विशेषज्ञ डा. नीति गुप्ता ने बताया कि उच्चस्तरीय तकनीक से किए गए प्रत्यारोपण के बाद यह सफलता प्राप्त की गई और अब बुजुर्ग को सामान्यतौर पर दिखाई देने लगा है। उन्होंने बताया कि उनका कॉर्निया खराब होने के साथ ही मोतियाबिंद भी था। लिहाजा उनके तीन ऑपरेशन एकसाथ किए गए, जिसमें बुजुर्ग को कॉर्निया प्रत्यारोपण किया गया और साथ ही मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया गया और आंख में लैंस डाला गया। टीम का प्रयोग सफल रहा जिससे हमें खुशी है। डा. नीति गुप्ता ने बताया कि इससे पूर्व संस्थान में हल्द्वानी की एक 8 वर्षीय बालिका की भी दाईं आंख की काॅर्निया का सफल प्रत्यारोपण किया जा चुका है। उसकी भी दोनों आंखें पूरी तरह से खराब थीं,मगर प्रत्यारोपण के बाद उसे अब एक आंख से दिखाई देने लगा है। उन्होंने बताया कि एम्स में बीते 5 महीने के अंतराल में 62 लोगों को सफलतापूर्वक काॅर्निया प्रत्यारोपित किए जा चुके।

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