देहरादून/ऋषिकेश
भारत देश के साथ पूरी दुनिया में भी बहुत से लोग नशे की बीमारी से ग्रसित हैं। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष-2019 में किए गए एक शोध में यह पाया गया कि उत्तराखंड में तम्बाकू के अलावा सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले नशे के प्रकारों में शराब, कैनाबिस उत्पाद (भांग/गांजा/चरस), ओपिऑइड्स (स्मैक/हेरोइन/कोकेन/ डोडा आदि ) व इन्हेलन्ट्स भी प्रमुखरूप से शामिल है।
इस सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तराखंड में विभिन्न प्रकार का नशा करने वाले मौजूदा पुरुष उपभोगकर्ताओं की संख्या शराब से 38.1 प्रतिशत, कैनाबिस उत्पाद से 1.4 प्रतिशत, ओपिऑइड्स से 0.8 प्रतिशत और इन्हेलन्ट्स का इस्तेमाल करने वाले 10 से 17 वर्ष तक के बच्चों की संख्या 1.7 फीसदी है। देशभर में हर पांच में से एक व्यक्ति शराब और हर 11 में से एक व्यक्ति कैनाबिस नशे का रोगी है, जिन्हें तत्काल उपचार की नितांत आवश्यकता है। इसके अलावा लगभग 77 लाख भारतियों को ओपिऑइड्स नशे के लिए शीघ्र इलाज शुरू करने की जरुरत है। आजकल देखा गया है कि वयस्क लोग ही नहीं बल्कि बच्चे भी नशे के रोगी बनते जा रहे हैं।
इसकी एक अहम वजह है लोगों के जीवन में स्ट्रेस बहुत बढ़ गया है। कोरोना पान्डेमिक के चलते भी इस स्ट्रेस में बहुत बड़ा इजाफा हुआ है। ऐसे लोगों में आम धारणा बन गई है कि नशा करना स्ट्रेस से जूझने और निपटने का एक आसान तरीका है, मगर यह स्ट्रेस को कम अथवा समाप्त करने का सबसे गलत तरीका है। नशे की शुरुआत आमतौर पर खुद व्यक्ति की इच्छा से, प्रयोग करने की उत्सुकता, दोस्तों के दबाव, पारिवारिक परेशानियों, काम का स्ट्रेस व अन्य परेशानियों से होने की वजह से होती है। मगर एक बार इससे ग्रसित होने पर यह नशे का रोग बन जाता है। नशे की बीमारी केवल एक आदत, इच्छाशक्ति में कमी या कमज़ोरी का कम होना नहीं बल्कि एक काम्प्लेक्स तरीके की दिमागी बीमारी है।
नशे से व्यक्ति के दिमाग में अस्थायी एवं स्थायी बायोकैमिकल बदलाव आते हैं, जिसके लिए इलाज की जरुरत पड़ती है। नशा ग्रस्त व्यक्ति का दिमाग उसका साथ नहीं दे पाता अथवा वह इस नशे की बीमारी से अपने आप कभी भी बाहर नहीं आ पाता। नशे के रोग से बहुत से लोगों का घर- परिवार खराब हो जाता है और प्रतिवर्ष लाखों लोग अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं। इसके साथ ही पीड़ित व्यक्ति के आर्थिक, सामाजिक जीवन व रोजमर्रा की जिंदगी पर भी इसका बहुत हद तक दुष्प्रभाव पड़ता है। एम्स संस्थान में निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी के निर्देशन में शुरू की गई एटीएफ सर्विस ऐसे लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती है और वह फिर से मुख्यधारा से जुड़कर अपने अमूल्य जीवन को संवार सकते हैं।
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि रोगियों को नशे की समस्याओं से दूर करने के लिए एम्स ऋषिकेश ने एडिक्शन ट्रीटमेंट फैसिलिटी (ए.टी.एफ.) की शुरुआत की है, जिसमें नशावृत्ति के शिकार रोगियों को परामर्श व उपचार की सभी प्रकार उच्चस्तरीय सुविधाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाएंगी। उन्होंने बताया कि संस्थान में इस सुविधा को ए.टी.एफ. एन. डी. डी.टी.सी. एम्स दिल्ली द्वारा समन्वित तथा भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की सहायता से शुरू किया गया है।
इस सेवा के शुरू किए जाने का उद्देश्य प्रदेश में नशे से ग्रस्त रोगियों को मुफ्त एवं उच्चस्तरीय उपचार मुहैय्या कराना है। संस्थान के मनोचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं ए.टी.एफ. के नोडल ऑफिसर डा. विशाल धीमान ने बताया कि एम्स में संचालित ए.टी.एफ के तहत, ओपीडी OPD और एडमिशन (IPD) दोनों तरह से इलाज की सुविधाएं उपलब्ध हैं। अस्पताल में सभी मरीजों के लिए बिस्तर की सुविधा, सभी प्रकार की आवश्यक दवाएं, अत्याधुनिक उपचार प्रणाली निशुल्क उपलब्ध कराने के साथ ही रोगियों की काउंसलिंग भी की जाएगी। जिसमें उन्हें नशे की तलब को कंट्रोल करने की अलग-अलग तकनीकें बताई जाएंगी, साथ ही रोगियों की मोटिवेशनल इंटरव्यूइंग भी की जाएगी।
संस्थान के मनोचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं ए.टी.एफ. के नोडल ऑफिसर डा. विशाल धीमान ने बताया कि नशा छोड़ने के इच्छुक लोगों के लिए एम्स के मनोचिकित्सा विभाग द्वारा हेल्पलाइन नंबर 7456897874 (टेली-एडिक्शन सर्विस) भी जारी किया गया है, जिसमें सोमवार प्रातः 9 बजे से शुक्रवार शाम 4 बजे तक और शनिवार सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक चिकित्सकीय परामर्श लिया जा सकता है। ए.टी.एफ प्रोजेक्ट का उद्देश्य उत्तराखंड और इसके आसपास के क्षेत्रों को नशखोरी के विरुद्ध लोगों को जागरुक करना और इससे ग्रसित रोगियों को मुफ्त इलाज उपलब्ध कराना है, जिससे वह समाज की मुख्यधारा से जुड़कर अपनी उन्नति के साथ सामान्य जीवन जी सकें।