देहरादून
उत्तराखंड की राजधानी के प्रतिष्ठित दून क्लब लिमिटेड अचानक अपने कायदे कानूनो को लेकर चर्चा में गया है।
क्लब के कायदे कानूनों को लेकर नौ बार देहरादून बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे एडवोकेट मनमोहन कंडवाल ने कवायद छेड़ दी है।
उनका कहना है कि भारतीय परंपरा से जुड़े परिधान पहनने वालों को जिस संस्था में प्रवेश न मिले तो लगता है कि वास्तव में हम आज भी अंग्रेजो और अंग्रेजियत के गुलाम हैं और उसी मानसिकता में जी रहे हैं। जब भारत चांद पे कदम रख रहा है तब भी हम इस क्लब में प्रवेश करने के लिए जेंटलमैन वाले कपड़े पहनने होंगे।
वरिष्ठ अधिवक्ता मनमोहन कंडवाल शनिवार सुबह जब भारतीय परंपरा के अनुसार धोती-कुर्ता में गए तो उनको के ऑफिस में प्रवेश अवश्य दिया गया परंतु क्लब में प्रवेश को मनाही कर दी गई। उन्होंने clb ki सदस्यता के लिए फॉर्म मांगा तो
नहीं दिया गया और क्लब की नियम शर्ते गिनाते हुए फॉर्म देने से मना कर दिया। इससे कंडवाल नाराज हो गए और कहा कि सोमनाथ के मंदिर से चल रहे नियम भारतीय परंपरा के खिलाफ हैं। ऐसे नियमो को अब समाप्त किया जाना चाहिए।
बताते चले कि दरअसल, द दून क्लब लिमिटेड का संचालन इसके स्थापना काल 1902 से ही काफी हद तक ब्रिटिशकाल के कायदे कानूनों के साथ किया जाता रहा है। यहां की सदस्यता लेना भी कतई आसान नहीं है। ऐसे में जब राजधानी के बार एसोसिएशन में 9 बार अध्यक्ष रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मनमोहन कंडवाल भारतीय परिधान धोती–कुर्ता और चप्पलों में सदस्यता फॉर्म लेने जा पहुंचे तो क्लब के पदाधिकारी हैरान थे। इस दौरान द दून क्लब के सभी पदाधिकारियों ने उनको क्लब की सदस्यता के अलावा ड्रेस कोड की जानकारी दी तो वह नाराज हो गए और कहा कि यह भारतीय परंपरा के खिलाफ है।
इस दौरान मीडिया से बातचीत में बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष मनमोहन कंडवाल ने कहा कि 1901 से बने इस अंग्रेज़ी कानून को दून क्लब ने अभी तक लागू किया हुआ है। जबकि धोती–कुर्ता भारतीय परंपराओं और सनातन धर्म की वेशभूषा का हिस्सा हैं।
वहीं दून क्लब लिमिटेड के अध्यक्ष सुनीत मेहरा ने सफाई में कहा है कि दून क्लब के नियमों में समय की आवश्यकता के अनुरूप बदलाव होते रहे हैं ऐसे में क्लब के ड्रेस कोड को लेकर पहली बार किसी ने अपनी आपत्ति जताई है इसको लेकर दून क्लब हाउस की बैठक में ये मुद्दा प्रमुखता से उठाकर अवश्य इस पर विचार किया जाएगा।
जिसके बाद ही हम कुछ बताने की स्थिति में होंगे।