देहरादून/रुद्रप्रयाग
उत्तराखंड वन विभाग में सरकारी धन के गबन को लेकर आईएफएस अफसर द्वारा मुकदमा दर्ज करवाया गया है।
प्राथमिक जांच में भी कूट रचित अभिलेखों के जरिए सरकारी धन के गबन की बात सही पाई गई है। जिसके बाद वन संरक्षक आकाश वर्मा की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर ली गई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार मामला रुद्रप्रयाग वन प्रभाग क्षेत्र में वानिकी कार्यों हेतु 10 वर्षीय कार्य योजना गठन की कार्रवाई के बाद का है। जिसमें वन क्षेत्र के सर्वे के लिए वन विभाग की टीम ने काम किया। इस दौरान टीम के साथ ढुलान जैसे कार्यों के लिए 5 श्रमिकों को भेजा जाना था।
इसके लिए श्रमिक ठेकेदार का चयन किया गया जिसके द्वारा ही टीम के साथ जाने वाले श्रमिकों का भुगतान किया जाना था। वन विभाग द्वारा श्रमिक ठेकेदारों को डीबीटी के माध्यम से भुगतान होना था। वर्किंग प्लान के भुगतान की जांच के दौरान पाया गया कि दो श्रमिकों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भुगतान करवाया गया था।
इन दोनों श्रमिकों द्वारा अगस्त 2023 तक क्षेत्र में गई टीम के साथ काम किया गया था। जिसके बाद यह दोनों श्रमिक हरिद्वार में एक निजी कंपनी में काम करने लगे थे लेकिन इसके बावजूद इन दोनों श्रमिकों के नाम पर सितंबर से फरवरी 2024 तक अतिरिक्त भुगतान लिया गया।
जिसके बाद गढ़वाल वृत्त के वन संरक्षक आकाश वर्मा ने इसकी शिकायत बाकायदा पुलिस में लिखित रूप से की। प्राप्त शिकायत के आधार पर पुलिस ने इसकी प्राथमिक जांच की और जांच में मामला सही पाए जाने पर रुद्रप्रयाग थाने में एफआईआर दर्ज की गई। हालांकि इसमें वन विभाग के कर्मियों की मिलीभगत को भी नहीं नकारा जा सकता।
बताया गया कि वन विभाग में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर इस तरह के भुगतान के दूसरे भी कई मामले हैं। हालांकि वर्किंग प्लान के अंतर्गत पहली बार इस तरह फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सरकारी धन के गबन को लेकर कानूनी कार्रवाई की गई है। चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट(CCF) वर्किंग प्लान संजीव चतुर्वेदी के निर्देश पर वन संरक्षक आकाश वर्मा द्वारा पुलिस में लिखित शिकायत के बाद श्रमिक ठेकेदार सतीश भट्ट, अजय पंवार पर एफआईआर दर्ज कर दी गई है। यहां देखना होगा कि क्या ठेकेदार के साथ वन विभाग के कर्मचारियों पर भी कार्यवाही होती है या नहीं।क्यों की उनकी मिली भगत के बिना यह संभव नहीं लगता।