देहरादून
दुनिया के साथ भारत में भी प्रकृति ने अपनी अनमोल विरासत हमें मिली है और वनों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है।
प्राकृतिक रूप से वनों से न हमें ठंडक मिलती है, बल्कि जीवन को संतुलित रखने के लिए भी ये ज़रूरी है।
बात हो रही है वनों की तो वनों की रक्षा तो हमारे वन कर्मचारी ही तो करते हैं, जो दिन-रात कठिनाइयों का सामना करते हुए अपनी जान तक गंवा बैठते हैं।
ऐसे वनकर्मियों को वन शहीद कहा जाता है। और राष्ट्रीय वन शहीद दिवस, इन वन शहीदों को समर्पित है जो अपने जीवन की आहुति देकर हमारे वनों की रक्षा करने का काम करते हैं।
हनारे देश में हर साल 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस मनाया जाता है।
दरअसल 11 सितंबर को वन दिवस मनाए जाने के पीछे एक कहानी है।
जिसमे 11 सितंबर को सन 1730 में देश में पेड़ों को कटने से बचाने के लिए खेजड़ली नरसंहार हुआ ,जिसके बाद 2013 से 11 सितंबर को ये दिन मनाने का फैसला भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने द्वारा किया गया।
इस दिन देश भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें वन कर्मचारियों के योगदान को सार्थकता दी जाती है। अब पुरी कहानी कुछ यूं है जिसके पीछे पूरा इतिहास है।
भारत में 1 सितंबर 1730 को, एक ऐतिहासिक घटना घटी, जिसको याद करके आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
इसको घटना को खेजड़ली नरसंहार के नाम से जाना जाता है
इस दिन, जोधपुर किले के निर्माण के दौरान चूने के पत्थरों और लकड़ी की आवश्यकता थी, तो दीवान गिरधर दास भंडारी ने अपने सैनिकों को वनों से लकड़ियां लाने का आदेश दिया।
सैनिकों ने पेड़ काटने के लिए आगे कदम बढ़ाए, लेकिन वहां कुछ ग्रामीण, जिनके नेतृत्व में अमृता देवी बिश्नोई नाम की एक महिला भी थी, वह अपने पेड़ों की रक्षा करने के लिए उनके सामने खड़ी हो गईं। अमृता ने इस बात का समर्थन किया कि खेजड़ी के पेड़ उनके लिए पवित्र हैं इसलिए उनको काटने की अनुमति नहीं दी जा सकती । उन्होंने राजा के सैनिकों के सामने अपनी पेड़ो के प्रति आस्था के लिए इसका उल्लंघन किया और खुद का सिर कटवा लिया।
इस हादसे के बाद, सैनिकों ने गुस्से में आकर गांव के लोगों की हत्या कर दी, जिसमें अमृता के बच्चे समेत लगभग 350 से अधिक लोगों की जान गई। जब राजा को इस घटना की जानकारी मिली, तो उसने तुरंत अपने सैनिकों को वापस बुलवा लिया और उनके साथ विश्नोई समुदाय के लोगों से माफी मांगी।
इसके बाद, राजा महाराजा अभय सिंह ने घोषणा की कि बिश्नोई समुदाय के गांवों के आसपास के क्षेत्रों में आज के बाद पेड़ों की कटाई और जानवरों की हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया।