विकास की गति को दुनिया मे बढ़ाने में महिलाओं की भूमिका पुरुषों के साथ बराबर की रही है…पद्मश्री रविकान्त

अखिल भारतीय आयूर्विज्ञान संस्थान में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस अवसर पर संस्थान के विभिन्न विभागों में बेहतर कार्य करने वाली महिला चिकित्सकों व अन्य कार्मिकों को एम्स निदेशक रवि कांत ने संस्थान की ओर से स्मृति चिह्न भेंटकर सम्मानित किया। एम्स संस्थान में सोमवार को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर निदेशक एम्स पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने कहा कि दुनिया में विकास की गति को आगे बढ़ाने में महिलाओं की पुरुषों के साथ बराबर की भूमिका रही है। उन्होंने बताया कि खेल,संगीत, फिल्म, शिक्षा, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के समकक्ष कार्य कर रही हैं। इस अवसर पर निदेशक एम्स पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में बहुआयामी शिक्षा प्रणाली को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हम अपने विकास को देश की सीमाओं में नहीं बांध सकते, लिहाजा ग्लोबलाइजेशन के दौर में हमें आगे बढ़ने के लिए अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं का ज्ञान अर्जित करना होगा,यह वह समय है जब हमें बहुआयामी होना पड़ेगा। संस्थान की वरिष्ठ आचार्य व आईबीसीसी प्रमुख प्रो.बीना रवि ने महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर कैंसर को लेकर जागरूक किया,उन्होंने कहा कि किसी बीमारी के उपचार से जरूरी है उसकी रोकथाम, इसके लिए हमें जागरूक होना पड़ेगा। गाइनी विभाग की डा.अनुपमा बहादुर ने महिलाओं में पाए जाने वाले सर्वाइकल कैंसर के प्रति महिलाओं को जागरूक किया। कार्यक्रम में निदेशक प्रो.रवि कांत ने नर्सिंग ऑफिसर शीजा जनधाना, अन्विता शर्मा, सुरभि रावत, मीनाक्षी बिष्ट,हिमानी सिंह ,दीप्ति, जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर कामिनी डिमरी, अशीषा जांगिर, फरजाना याकूब, जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव असिस्टेंड प्रिया, टेक्निशियन शालिनी रौतेला, मेडिकल सोशल ऑफिसर विनीता भट्टी समेत 35 लोगों को सम्मानित किया। इस दौरान डीन एकेडमिक प्रो.मनोज गुप्ता , डा.गौरव चिकारा, डा.प्रतीक शारदा आदि मौजूद थे। उधर कॉलेज ऑफ नर्सिंग की ओर से आयोजित कार्यक्रम में छात्राओं को महिलाओं के अधिकार संबंधी जानकारियां दी गई। इस अवसर पर निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो. रवि कांत ने बताया कि प्रसव और शिशु के जन्म की प्रक्रिया को को शुरू करना, तेज करना, समाप्त करना, जारी रखना व शारिरिक प्रक्रिया की निगरानी करने की बढ़ती जानकारी के कारण इसमें चिकित्साकरण बढ़ा है। उन्होंने बताया कि महिलाओं,बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य के लिए संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक रणनीति यह सुनिश्चित करने का प्रयास करती है कि महिलाओं को प्रसव के दौरान किसी भी जटिलता का सामना करना पड़ा तो उन्हें न केवल उससे बचाया जा सके बल्कि पूरी क्षमता के साथ उनका जीवन स्वस्थ बनाया जाए,साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहती है कि महिलाएं ऐसे माहौल में शिशु को जन्म दे जो चिकित्सा के दृष्टिकोण से सुरक्षित होने के अलावा उनके निर्णय लेने की क्षमता और आत्मविश्वास को बढ़ाता है। सीनियर प्रोफेसर डा.बीना रवि द्वारा छात्राओं को समझाया गया कि एक महिला केंद्रित और एक मानवाधिकार आधारित दृष्टिकोण अपनाने से क ई विकल्पों के द्वार खुलते हैं। जैसे कि महिलाएं प्रसव और शिशु जन्म की प्राथमिक अवस्था में भी घूमने फिरने और अपनी स्थिति का स्वतंत्रता पूर्वक अधिकार चाहती है। प्रत्येक गर्भवती महिला को यह जानना आवश्यक है कि जन्म का उद्देश्य प्रक्रिया को आसान बनाना है। प्रो.बीना रवि ने बताया कि छह पद्धतियां माताओं व शिशुओं के जन्म को सुरक्षित बनाते हैं। प्राचार्य कॉलेज ऑफ नर्सिंग प्रो. सुरेश कुमार शर्मा ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार पूरे विश्व में हर वर्ष 140 मिलियन महिलाएं बच्चों को जन्म देती हैं। हालांकि हम शिशु के जन्म के नैदानिक प्रबंधन के बारे में बहुत कुछ जानते हैं इसके बावजूद नैदानिक व्यवधानों के अनुभवों को महिलाओं के लिए सुरक्षित, सुखद व सकारात्मक बनाने की आवश्यकता है। कार्यक्रम में कॉलेज ऑफ नर्सिंग की सहायक आचार्य प्रसूना जैली, नर्सिंग ट्यूटर डा.राखी गौड़,नवजीत कौर, मीनाक्षी शर्मा, लीजा,पूनम, रीजू आदि मौजूद थे।

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