देहरादून/ऋषिकेश
परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि विगत कुछ महिनों से पूरा विश्व कोरोना वायरस के कारण अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है। लोग कोरोना वायरस का नाम सुनते ही तनावग्रस्त हो जाते हैं और जो स्थिति सर्वप्रथम उभरकर सामने आती है वह है ‘क्वारंटाइन अर्थात, अपनी गतिविधियों को स्वयं तक सीमित करना या आइसोलेशन।
उन्होंने कहा कि यह आइसोलेशन केवल व्यक्तियों या समाज तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह राष्ट्रों, देशों की सीमाओं तक फैला हुआ है। जिससे कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही इससे अर्थव्यवस्था पर बहुत गहरा असर पड़ा हैै।
स्वामी जी ने कहा कि एक अदृश्य वायरस के कारण जो लोग जिन दूरियों का सामना कर रहे हैं उससे उबरने के लिये करुणा, दया, प्रेम, संवेदना और सहानुभूति जैसे मानवीय गुणों की जरूरत है। इस समय एकदूसरें की तकलीफों और दुखों को समझने के साथ ही उन्हें उस दुख या तकलीफ से निकालने के लिये प्रयत्न करने की जरूरत है। कहा कि भारतीय दर्शन में तो करुणा और दयालुता को मनुष्य का पहला और अन्तिम गुण बताया गया है। करुणा रूपी दिव्य गुण से एक-दूसरे से जुड़ने और दूसरों को समझने में सहायता होती है। करुणा, एक ऐसा दिव्य गुण है जो किसी मनुष्य को उसकी चेतना के सामान्य स्तर से ऊपर उठाकर उसे सेवा कार्य करने को प्रेरित करता है।
स्वामी चिदानन्द ने कहा कि यह समय दूसरों की पीड़ा को महसूस करने और मदद करने का है। कोरोना दुनिया को एक संदेश देने आया है, वास्तव में देखा जाये तो वह एक ऐेसा दूत बनकर आया है जो लोगों को मानवता से रहना सिखा रहा है। कोरोना से करूणा की ओर बढ़ना सिखा रहा है। हम जो संस्कृति भूल गये थे, अभिवादन के तरीके भूल गये थे वह हमें एक अद्श्य वायरस सिखा रहा है। लोग दुनियादारी के चक्कर में स्वयं को भूल गये थे, परिवार को समय नहीं दे पा रहे थे, मानवीय मूल्यों और मूल से भटक गये थे आज कोरोना ने वापस सभी को उसी संस्कृति के पास लाकर खड़ा कर दिया।क्यों न एक बार फिर से अपने मूल्यों, मूल और जड़ों से जुड़ें।