विश्व रंगमंच दिवस पर आयोजित गोष्ठी में बिखरे कई सांस्कृतिक रंग,याद किए गए उत्तराखंड राज्य बनने से पूर्व के आंदोलन के दिन

देहरादून

विश्व रंगमंच दिवस के उपलक्ष्य मे धरातल संस्था द्वारा बंजारा वाला मोनाल एन्क्लेव स्थित जनकवि डा अतुल शर्मा के निवास पर एक विचार गोष्ठी का सफल आयोजन किया गया।

गोष्ठी मे जनकवि डा अतुल शर्मा ने बताया कि आज विश्व रंगमंच दिवस पर आयोजित गोष्ठी का विषय था उत्तराखंड आन्दोलन मे जयगीतों और नाटको की भूमिका।

उन्होंने इस अवसर पर अपना वह जन गीत सुनाया जो उत्तराखंड आन्दोलन मे सर्वाधिक गाया गया पर्वतों के गांव से आवाज उठ रही संभल, औरतों की मुट्ठियाँ मशाल बन गयी संभल, लड़ के लेगे छीन के लेगे उत्तराखंड।

इस मौके पर डा.अतुल शर्मा ने बताया कि यह जन गीत आन्दोलन मे हर नुक्कड़ नाटक के साथ गाया गया था। देहरादून मे सांस्कृतिक मोर्चा द्वारा सैकड़ों जगह नुक्कड़ नाटक और जन गीत प्रभात फेरियां निकालीं गई । इसमे अधिकांश रंगकर्मी, साहित्यकार शामिल रहे। उत्तराखंड आन्दोलन मे रंगमंच और जन गीत की पूरे उत्तराखंड मे धूम रही।

वरिष्ठ राज्य आन्दोलन कारी व भाजपा प्रवक्ता रविन्द्र जुगरान ने बताया कि आन्दोलन के पूरे दौर मे रंगमंच और गीतो ने अलख जगाई थी। मशाल जूससो मे सबसे आगे संस्कृति कर्मी रहते थे और राजनीति से ऊपर उठकर आन्दोलन के प्रति लोगों का समर्पण रहा।

पूरा जन समुदाय सांस्कृतिक मोर्चे के पीछे चलता था। यह एक अद्भुत दृष्य था।आज भी रंगमंच की जरूरत है।

उत्तराखंड राज्य आन्दोलन कारी मंच के अध्यक्ष जगमोहन सिंह नेगी ने बताया कि उस समय देहरादून सहित पूरे उत्तराखंड मे नाटको की अहम भूमिका रही है ।यहां नाटक हुआ था केन्द्र से छुड़ा ना है। उस दौरान जनकवि डा अतुल शर्मा, गिर्दा , नरेंद्र सिंह नेगी, बल्लीसिह चीमा, जहूर आलम आदि के लिखे जन गीतो ने अपनी भूमिका निभाई थी।

गोष्ठी मे वरिष्ठ राज्य आन्दोलन कारी प्रदीप कुकरेती ने रंगमंच दिवस पर सबक़ बधाई दी और कहा कि उस समय रंगमंच ने जो जनजागृति पैदा की वह इतिहास रचा गयी।

वरिष्ठ कवयित्री रंजना शर्मा ने बताया कि आन्दोलन के दौर मे जन गीतो के कैसेट बने ,उनको कापी करके हमने मुफ्त वितरित किया था। उस कैसेट का नाम था” दो सही का साथ ” यह जनकवि डा अतुल शर्मा का जन गीत था।

धरातल की अध्यक्षा कहानी कार रेखा शर्मा ने उस समय लिखी अपनी कहानी पढी।

प्रसिद्ध रंगकर्मी सुशील यादव ने इस अवसर पर ढपली की थाप पर जन गीत गा कर आन्दोलन की याद ताजा कर दी।

उन्होंने जनकवि डा अतुल शर्मा का लिखा जन गीत प्रस्तुत करके समा बांध दिया, एक उठता हुआ बस चरण चाहिए, जन गीतो का वातावरण चाहिए, भूख से एक दिन रोटियों ने कहा, जलता चूल्हा हमे जानेमन चाहिए।

रंगमंच दिवस पर आयोजित इस गोष्ठी मे उत्तराखंड आन्दोलन मे रंगमंच की महत्वपूर्ण भूमिका पर बहुत से लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये जिनमे राज्य आन्दोलन कारी रविंद्र जुगरान,प्रदीप कुकरेती,सुरेश नेगी, पुष्प लता मंहगाई पुष्प, देवेन्द्र कांडपाल आदि उपस्थित रहे।

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