युद्ध और प्रेम को लेकर वक्त के हिसाब से फिलवक्त जनकवि अतुल शर्मा की युद्ध के परिदृश्य को लेकर लिखी कविता पढ़िए,सुनिए और गुनगुनाइए

देहरादून….

इन दिनों हो रही डायरेक्ट इनडायरेक्ट युद्ध को लेकर बने ऊहापोह के बीच जनकवि डॉ.अतुल शर्मा ने लिख डाली एक और कविता,हालांकि उनका परिचय देना सूरज को रोशनी दिखाने के बराबर होगा। क्योंकि उनका तो साहित्य को लेकर बहुत ही व्यापक संसार है। इतना ही काफी है कि आपने अब तक 40 से ज्यादा किताबें लिख दी हैं। भले ही उनकी विधा अलग अलग हो सकती है। जिसमें कविता,कहानी,उपन्यास,उत्तराखंड आंदोलन के दौरान लिखे उनके जोशीले जनगीत तब भी गाके आंदोलनकारियों में जोश आ जाता था। हालांकि उन गीतों को आज भी अनेक मंचों पर गाया जाता है। लीजिए बिन शीर्षक की उनकी छोटी सी मगर समयानुसार लिखी गई ये कविता …..पढ़िए भी गुनगुनाइए भी और इस मधुर आवाज में सुनिए भी

 

युद्ध और प्रेम

हो ही जाता है

होता है तो देर तक गूंजता है

प्रेम की भी वजह होती है और युद्ध की भी

आग और पानी की तरह है

युद्ध और प्रेम का स्वभाव

बस एक मे सिखाना होता है सबक

एक मे सीखना होता है

शांति के खिलाफ और शांति के समर्थन मे

होता है युद्ध और प्रेम

कुछ जो नही समझते प्रेम से

वे युद्ध से समझते हैं

प्रेम से समझ जाना ही है युद्ध के

खिलाफ सबसे बड़ा हथियार

 

प्रेम हमेशा छोड़ जाता है निशान

युद्ध भी

युद्ध पर जाते हुए जब मां चूमती बेटे का माथा तो वो

चूमती है फौजी का हौसला

और अपना धैर्य

 

प्रेम पलता रहता है मन और देह की दुनिया मे

युद्ध भी

 

हम

प्रेम मे है

या युद्ध मे

 

प्रेम के लिए

युद्धों की ज़रूरत पड़ती है

ज़रा सोचिए,,,,

 

बहादुर है प्रेमी भी

और योद्धा भी

 

द्वार पर खड़ा है

शांति के लिए

युद्ध

 

जीत की प्रतीक्षा करता है

प्रेम

और युद्ध भी

 

प्रेम और युद्ध

हो ही जाता है

 

_ डा अतुल शर्मा

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