संस्कृतभारती का जनपद संस्कृत सम्मेलन सम्पन्न,सम्मेलन में वक्ताओं ने संस्कृत को भारत की आत्मा की भाषा, विश्व में एकता, समन्वय और शांति की भाषा बताया

देहरादून

नगर निगम टाउन हॉल में संस्कृत भारती द्वारा एक दिवसीय जनपद संस्कृत सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में संस्कृत भाषा में निहित ज्ञान, विज्ञान, कला, संस्कृति के सभी विषयों पर चर्चा की गयी।

सम्मेलन का उद्घाटन टपकेश्वर महादेव मन्दिर के महन्त स्वामी कृष्णा गिरि, आयुर्वेद विद्वान डा विनीश गुप्ता, पार्षद विमल गौड़ और संस्कृत भारती देहरादून के संरक्षक डा सूर्य मोहन भट्ट ने दीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर आर्ष कन्या गुरुकुल की विदुषियों एवं पौधां गुरुकुल के आचार्यों ने नें वेद पारायण किया। वक्ताओं ने संस्कृत भाषा में निहित ज्ञान परम्परा पर व्याख्यान दिये, वक्ताओं ने कहा कि संस्कृत ज्ञान परम्परा भारतीय चिन्तन की पराकाष्ठा है। सम्मेलन में संस्कृत भाषा के प्रोत्साहन के लिए रूपरेखा प्रस्तुत की गयी।

सम्मेलन में ज्ञान, विज्ञान, कला और संस्कृति पर विचार मंथन किया गया। इस अवसर पर संस्कृत विज्ञान प्रदर्शनी भी आयोजित की गयी। संस्कृत भाषा में निहित विज्ञान के मूल अवधारणाओं के विषय पर पर्दर्शिनी आयोजित की गयी। प्रदर्शिनी में गणित, भूगोल, खगोल, अंतरिक्ष, विज्ञान आदि विषयों पर उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान परिषद के समन्वय से आयोजित किया गया। तृतीय सत्र में भारतीय कलाओं का प्रदर्शन किया गया।

संस्कृत सत्र में भारतीय संस्कृति और परंपराओं के विषय में प्रस्तुतिकरण दिया गया। प्रतिभागियों नें भारतीय कलाओं पर आधारित गीत, नृत्य, नाटक आदि शास्त्रीय कलाओं का प्रदर्शन किया। सम्मेलन में देहरादून के विभिन्न संस्थाओं, विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों, महाविद्यालय से शिक्षाविद वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं ने भाग लिया। सम्मेलन में 450 प्रतिनिधियों ने आवेदन किया था । सम्मेलन में उत्तराखंड संस्कृत अकादमी हरिद्वार की ओर से संस्कृत व्याख्यान माला का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर वक्ताओं नें कहा कि संस्कृत भारत की आत्मा की भाषा, संस्कृत विश्व में एकता, समन्वय और शांति की भाषा है। यह भाषा भारत का गौरव उसकी संस्कृति और सभ्यता है और संस्कृति का मूल आधार संस्कृत है। यह भाषा वैज्ञानिक भाषा है। अन्य भाषाओं की जननी है। संस्कृत भाषा में सभी प्रकार के ज्ञान का भंडार है। संस्कृत भाषा की पठनीय व्याकरण सर्वमान्य है। वह संस्कृत भाषा ही नहीं, अपितु अन्य भाषा के लिए भी उपयोगी है। वक्ताओं ने कहा कि कई देशों में संस्कृत की उपयोगिता को महत्व दिया जा रहा है‌।

संस्कृत प्रदर्शिनी में गणित ज्यामिति, चिकित्सा, आयुर्वेद, पर्यावरण, संस्कार, प्रबंधन सहित ज्ञान विज्ञान पर फलक स्थापित किये गये। संस्कृत भाषा राष्ट्रीय एकता व संस्कृति के दिव्य दर्शन कराने वाली भाषा मानव समाज को जोड़ने का कार्य करती है। सम्मेलन में संस्कृत विषय को सभी विषयों के क्षेत्रों में शामिल करने पर बल दिया। भाषा के रूप में शिक्षा में शामिल करवाने, मेडिकल, टेक्निकल, विधि, विज्ञान केन्द्रीय विद्यालयों सी.बी.एस.सी. आदि शिक्षण संस्थानों में संस्कृत भाषा की शिक्षा अनिवार्य करवाने तथा संस्कृत विद्यालयों, महाविद्यालयों, इण्टर कालेजों और सभी शिक्षण संस्थानों में शीघ्र संस्कृत के पदों का सृजन तथा जो पद सृजित हैं, उन पर नियुक्ति की मांग की।

सम्मेलन में प्रतिभाग संस्कृत गीत पर नृत्य की प्रस्तुति दी। संस्कृत नाटक का मंचन भी किया गयि। इस अवसर पर मुख्य शिक्षा अधिकारी प्रदीप रावत, वैज्ञानिक डा ओम प्रकाश नौटियाल, वरिष्ठ सर्जन डा माधव मैठाणी, संस्कृत के प्राचार्य डा राम मभूषण विजल्वाण, संस्कृत भारती के प्रान्त संगठनमंत्री गौरव शास्त्री संजू प्रसाद ध्यानी, प्रदीप सेमवाल, नागेन्द्र व्यास आदि उपस्थित थे।

सञ्जुप्रसाद ध्यानी, प्रान्तगणसदस्यः, नागेन्द्रः व्यासः, विभागसंयोजकः, डॉ. नवीन जसोला, विभागसहसंयोजकः, डॉ. प्रदीप सेमवाल, जनपदमन्त्री, योगेशः कुकरेती, महानगरकोषाध्यक्षः, माधव पौडेलः, महानगरमन्त्री, डॉ आनन्द जोशी, खण्डसंयोजक: डोईवाला, डॉ. राजेश शर्मा, महानगरशिक्षणप्रमुखः, महेश उनियाल , नीतू बलूनी, अनुराधा ध्यानी डॉ. नीतू बलूनी, श्रीमती लक्ष्मी जोशी, शिवानी रमोला, ऋतु जसोला, श्रीमती वन्दना सेमवालः, सीमा कुकरेती, रिंकी पौडेलः, शिवा शर्मा, श्रीमती भुवनेश्वरी व्यासः, डॉ पवन मिश्रा, नीतीशः मैठाणी, संकेत कौशिकः,धीरज बिष्टः,विकास भट्टः, अजय नौटियाल, डॉ. मोहित बडोनी, सौरभ खण्डूड़ी आदि उपस्थित रहे।

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