लघु उद्यमी युवती मालती ने धार्मिक मान्यताओं को दरकिनार कर किया दून मेडिकल कॉलेज को अपना देहदान ताकि उनकी मृत्यु के बाद उनका शरीर चिकित्सा विज्ञान के काम आ सके

देहरादून /श्रीनगर

जानकारी के अभाव और धार्मिक मान्यताओं की वजह से हम देहदान के लिए आगे ही नहीं आते हैं। लेकिन जागरूकता के चलते कई लोग खुद ही अपनी देहदान आज भी करते हैं।

दरअसल चिकित्सा विज्ञान के लिए देहदान अत्याधिक महत्वपूर्ण है। देहदान की बात करे तो उसका सीधा सा अर्थ है कि व्यक्ति यह घोषणा करे कि देहावसान के उपरांत उसकी देह किसी चिकित्सा संस्थान को सौंप दी जाये और ऐसे में देह का उपयोग चिकित्सा शिक्षा और शोध के लिए किया जाता है।

परंतु जानकारी के अभाव और धार्मिक मान्यताओं के चलते हमारे समाज में देहदान के लिए नाममात्र के लोग सामने आते हैं।

और ऐसी ही एक पहल गढवाल विवि श्रीनगर की पूर्व छात्रा मालती हालदार ने की है।

मालती काफी वर्षों तक एनजीओ सेक्टर में काम करती रही हैं और आजकल देहरादून में मालकुई नाम से अपना होम किचन संचालित कर रही हैं। उन्होंने सभी प्रक्रियाओं को पूरा कर देहदान की स्वीकृति प्रदान करने वाला फॉर्म दून मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग को सौंप भी दिया है।

देहदान की घोषणा करते हुए अपने फेसबुक पोस्ट में मालती ने लिखा मैंने अपना देह दान कर दिया। मेरे बाद देहरादून मेडिकल कॉलेज मेरे शरीर पर किसी भी तरह का प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र है, मेडिकल साइंस के लिए मेरा यही योगदान होगा। मालती आगे कहती हैं कि जीते- जी हम अपने समाज के काम आयें और मरने के बाद भी हमारी देह का उपयोग मनुष्यता की बेहतरी के लिए हो। इससे अच्छा और क्या हो सकता है। यदि हमारे न रहने के बाद हमारी देह से चिकित्सा के क्षेत्र में अंश भर भी सहयोग हो सके तो समझिए कि जीवन ही नहीं, मृत्यु भी सफल हो गयी। उनके अनुसार चूंकि धार्मिक रीति-रिवाजों और मृत्यु के पश्चात किए जाने वाले कर्मकांडों पर उनका कतई विश्वास नहीं है। इसलिए भी उन्होंने देहदान का विकल्प चुना है। एक युवा लघुउद्यमी युवती द्वारा देहदान जैसा साहसिक निर्णय वास्तव में सराहनीय है। उनकी यह पहल कुछ और लोगों को प्रेरित करेगी और मील का पत्थर साबित होगी।

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