देहरादून/मुंबई
सुरीली आवाज की मलिका जिसने देश-दुनिया पर दशकों तक राज किया ऐसी सुर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया।
‘भारत रत्न’ से सम्मानित वेटरन गायिका ने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 92 वर्ष की थीं। ‘भारत की नाइटिंगेल’ के नाम से दुनियाभर में मशहूर लता मंगेशकर ने करीब पांच दशक तक हिंदी सिनेमा में फीमेल प्लेबैक सिंगिंग में एकछत्र राज किया। भारतीय सिनेमा की बेहतरीन गायिकाओं में शुमार लता मंगेशकर ने 1942 में महज 13 साल की उम्र में अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने कई भारतीय भाषाओं में अब तक 30 हजार से ज्यादा गाने गाए हैं। लता को भारत की ‘सुर साम्राज्ञी’ के नाम से जाना जाता है। उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
काफी दिनों से खराब थी तबीयत
जनवरी में कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद उन्हें मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बाद में वह न्यूमोनिया से पीड़ित हो गईं। हालत बिगड़ने के बाद उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। उनकी हालत में सुधार के बाद वेंटिलेटर सपोर्ट भी हट गया था। लेकिन 5 फरवरी को उनकी स्थिति बिगड़ने लगी और उन्हें फिर से वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया। आखिरकार, 6 फरवरी को ‘स्वर कोकिला’ ने आखिरी सांस ली।
‘ऐ मेरे वतन के लोगो…’ गाने से लता ने कर दिया था इनकार
लता मंगेशकर के गाए सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक है ‘ऐ मेरे वतन के लोगो…’। पहले लता ने कवि प्रदीप के लिखे इस गीत को गाने से इनकार कर दिया था, क्योंकि वह रिहर्सल के लिए वक्त नहीं निकाल पा रही थीं। कवि प्रदीप ने किसी तरह उन्हें इसे गाने के लिए मना लिया। इस गीत की पहली प्रस्तुति दिल्ली में 1963 में गणतंत्र दिवस समारोह पर हुई। लता इसे अपनी बहन आशा भोसले के साथ गाना चाहती थीं। दोनों साथ में इसकी रिहर्सल कर भी चुकी थीं। मगर इसे गाने के लिए दिल्ली जाने से एक दिन पहले आशा ने जाने से इनकार कर दिया। तब लता मंगेशकर ने अकेले ही इस गीत को आवाज दी और यह अमर हो गया।
स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर जिन्हें किसी परिचय की जरूरत नहीं है। संगीतकार पंडित दीनानाथ मंगेशकर के घर 29 दिसंबर 1929 को बेटी का जन्म हुआ, जिनका नाम हेमा मंगेशकर रखा गया, 5 साल बाद पिता ने बेटी का नाम बदलकर लता रख दिया। लता मंगेशकर के 1 भाई और 4 बहनें मीना, आशा, ऊषा और हृदयनाथ मंगेशकर हैं।
लता मंगेशकर के पिता नाटक कंपनी चलाते थे जिन्होंने बाद में एक फिल्म कंपनी भी बनाई। 5 साल की उम्र में लता मंगेशकर ने एक नाटक में अभिनय भी किया था लेकिन लता की रुचि बचपन से ही संगीत में थी और उन्होंने संगीत पर ही फोकस किया। 13 साल की उम्र में लता मंगेशकर के सिर से पिता का साया उठ गया, इससे परिवार की मुश्किलें बढ़ गईं और घर की जिम्मेदारी बड़ी बेटी लता पर आ गई।
लता मंगेशकर का बचपन चुनौतियों से भरा हुआ था। घर चलाने और बहन-भाईयों को संभालने के चलते लता मंगेशकर कभी स्कूल नहीं जा पाईं। 13 साल की लता का जीवन ऐसे कई संघर्षों से भरा था। जहां एक तरफ पिता का कामधंधा ढीला होने लगा था तो वहीं उनका छोटा भाई बीमार पड़ गया। घर की इकलौती उम्मीद लता भी बीमार पड़ गईं।
पहला गाना जिसे फिल्म से हटा दिया गया था।
लता मंगेशकर के लिए संगीत खुद की खुशी से ज्यादा जिम्मेदारी बन गया था। जैसे तैसे लता मंगेशकर को साल 1942 में मराठी फिल्म ‘किती हासिल’ में गाने का मौका मिला। इस फिल्म के लिए उन्होंने गाना तो गाया लेकिन कुछ कारणों की वजह से इस गाने को फिल्म से हटा दिया गया। लता मंगेशकर ने संगीत सीखना कभी नहीं छोड़ा। लता के पहले गुरु उनके पिता थे और पिता के जाने के बाद उन्होंने उस्ताद अमान अली खान और अमानत खान से संगीत सीखा।
लता मंगेशकर के गुरु
साल 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद उस्ताद अमानत अली पाकिस्तान चले गए। फिर उन्होंने उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, पंडित तुलसीदास शर्मा से लेकर कई बड़े संगीत जानकारों से शिक्षा हासिल की।
जब पतली आवाज के चलते हुईं रिजेक्ट हुई थी।
आज के समय में ‘लता ही संगीत और संगीत ही लता’ कहा जाता है। स्वर कोकिला नाम से मशहूर लता मंगेशकर ने वो जमाना भी देखा है जब उन्हें कई बार पतली आवाज के चलते ही रिजेक्ट कर दिया गया था। लेकिन लता समय के साथ साथ खुद को साबित करती गईं और उन्होंने संगीत की दुनिया में वो काम कर दिया जो इससे पहले कोई नहीं कर पाया था।
लता दीदी को ढेरों सम्मानमिल चुके हैं। जिनमे भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से लेकर लता मंगेशकर को फिल्मी दुनिया के सबसे बड़े सम्मान ‘दादा साहब फाल्के अवॉर्ड’ से सम्मानित किया जा चुका है। बचपन में घर संभालने के चलते लता मंगेश्कर कभी स्कूल नहीं जा पाई थीं लेकिन दुनियाभर में कई नामी यूनिवर्सिटी उन्हें मानक उपाधि से नवाज चुकी है।