फट जा पंचधार एकल नाटक के मंचन में नजर आया रक्खी का किरदार निभा रही कुसुम का आत्मविश्ववास जिसने दर्शको के मन को झंझोड़ डाला

देहरादून

“फट जा पंचधार” लेखक विद्यासागर नौटियाल की कहानी की केन्द्रीय पात्र एक युवती ‘रक्खी’ किसका किरदार कुसुम मैंदोला ने शानदार तरीके से जिया है। नाताक में रक्खी का सम्पूर्ण जीवन, त्याग, प्यार, बलिदान, शोषण, उत्पीड़न, उपेक्षा, तिरस्कार, घृणा के अनेकों पड़ावों से गुजर एक अन्धी अन्धेरी गुफा के मुहाने के कगार पर आकर मार्मिक चीत्कार, झुझलांहट दहाड़ और आर्तनांद का रूप ले लेता है। रक्खी का प्रतिशोध ज्वालामुखी बनकर फूटता है, उस स्थान विशेष पर जिसे पंचधार के नाम से जाना जाता है। जहाँ पर आकर उन पांच गांवों की सीमाएं मिलती है जहाँ सदियों से दोहरे मापदण्ड, खोखली मानसिकता, गिरते जीवन मूल्यों, नारी दोहन, नारी-शोषण, दलित- उत्पीड़न की दुर्गन्धमय जलवायु वातावरण को प्रदूषित करती आ रही है। मानवीय संवेदनाओं के कपाट कभी खुलते ही नहीं ।

नाटक का दूसरा पात्र युवक वीर सिंह नामक एक कुलीन, जमीदार एक दलित तथा शुद्र युवती रक्खी

की सुन्दरता पर मुग्ध हो उसे अपने साथ रख लेता है वो भी दंबगता तथा अंहकार के आवरण में।

और रक्खी डरते-डरते, विधवा मां की इकलौती सन्तान, बिन ब्याह जमींदार की रखैल बन जाती है। रक्खी को बहु होने का झूठा सपना दिखाकर घर के समस्त काम कराये जाते, खेतों/डंगरों की देखभाल कराई जाती, शारीरिक यौनचार किया जाता, परन्तु गर्भवती होने पर उसकी सन्तान को स्वीकार करना पारिवारिक कंलक समझा जाता है,इसी बीच 2 बार उसे गर्भपात को मजबूर किया गया।

अब वृद्धा हो जाने पर पंचायत द्वारा उसे घर सम्पत्ति से बेदखल कर जमीदार दूसरी शादी एक सजातीय युवती से कर प्रायश्चित का ढोंग रचता है।

वहीं रक्खी विलाप करती गुस्से में एक ऐसे भूकम्प, प्राकृतिक आपदा का आह्वान करती है जिसने वह पुकार पुकार कर उन सड़ी-गली मान्यताओं को श्राप दे रही है कि ये “पंचधार” नांमक स्थान दुनियां के नक्शें से ही मिट जाये ताकि फिर किसी रक्खी का जीवन तबाह बर्बाद न हो। नारी जीवन के दर्शन की पड़ताल करता, ये एक दुखान्त चित्रण ही “फट- जा पंचधार” दर्शकों को सोचने पर मजबुर करता है दर्शक पुरे नाटक में शांत बैठकर रक्खी के किरदार में समा जाते हैं और कई दर्शक रक्खी पर हुए जुल्म को लेकर आंखो में आंसू लिये नजर आते हैं।नाटक खत्म होते ही खड़े होकर रक्खी की पात्र निभा रही कुसुम के लिए तालिया बजाते दिखते हैं।इस एकल नाटक के निर्देशक अभिषेक मेंदोला बताते हैं कि लेखक विद्यासागर की इस कहानी को पात्रो ने खुलकर जिया है और वास्तव में उस युग में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को अभिनीत करते हुए दर्शको को निकट दर्शन कराया है।

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