देहरादून/पौड़ी
आज से पहले भी कई बार श्रद्धालुओं को मौखिक रूप से कम कपड़े पहनकर मंदिरों के अंदर प्रवेश को लेकर बाते होती रही हैं। इस बार पौड़ी जिले के कोटद्वार स्थित श्री सिद्धबली मंदिर समिति द्वारा दर्शन के लिए आने वाले भक्तों से मर्यादित वस्त्र पहनकर आने की अपील जारी की गई है। इसको लेकर मंदिर परिसर में स्थान स्थान पर चेतावनी लिखे बोर्ड भी लगाए गए हैं।
इससे पूर्व बीते शुक्रवार को ही हरिद्वार में महानिर्वाणी अखाड़े के तीन बड़े मंदिरों में छोटे कपड़े पहनकर आने वाले श्रद्धालुओं पर रोक लगाई जा चुकी है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने श्रद्धालुओं का शरीर 80 प्रतिशत ढका होने की भी बात कही थी।
इन मंदिरों में प्रमुख रूप से हरिद्वार का दक्ष प्रजापति मंदिर, ऋषिकेश का नीलकंठ महादेव मंदिर और देहरादून का टपकेश्वर महादेव मंदिर शामिल है।
जानकारी के अनुसार कोटद्वार में खोह नदी के तट पर स्थित श्री सिद्धबली मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की अटूट आस्था जग जाहिर है। जिसके कारण मंदिर में अगले 10 वर्षों तक भंडारा कराने के लिए मंगलवार व रविवार को कोई तिथि ही उपलब्ध नहीं है। यहां गौरतलब है कि मंदिर समिति प्रतिक्षा समय में कमी लाने के लिए ही मंदिर परिसर में दो-दो स्थानों पर भंडारा आयोजित करने की अनुमति प्रदान कर रही है।
प्राचीन मान्यता है कि बजरंग बली को समर्पित इस मंदिर में श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण अवश्य होती है।
इसी के मद्देनजर श्रद्धालू यहां भंडारा आयोजित करते रहे हैं। मंदिर में पौड़ी,कोटद्वार के आसपास के उत्तराखंड्, यूपी दिल्ली के कई जिलों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते रहते हैं। मंदिर की लोकप्रियता के चलते बढ़ती श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए मंदिर समिति द्वारा मंदिर की मर्यादा बनाए रखने की बात हुई है। श्री सिद्धबली मंदिर समिति के प्रबंधक शैलेश जोशी ने कहा कि चाहे कोई भी मंदिर हो, मर्यादित वस्त्रों में ही भगवान के दर्शनों के लिए जाना चाहिए। और यह मंदिर में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने आचरण को शालीन रखे। साथ ही उसके पहनावे में भी शालीनता झलकनी चाहिए। मंदिर से जुड़े कुछ श्रद्धालुओं के आग्रह पर ही मंदिर समिति द्वारा यह निर्णय लिया गया है। मंदिर समिति के अध्यक्ष डॉ. जेपी ध्यानी ने कहा कि श्रद्धालु जो भी कपड़े पहनकर आएं, लेकिन शरीर पूरा ढका होना चाहिए।
विदित हो कि सिद्धबली मंदिर के बारे में मान्यता है कि कलयुग में शिव का अवतार माने जाने वाले गुरू गोरखनाथ को इसी स्थान पर सिद्धि प्राप्त हुई थी, जिस कारण उन्हें सिद्धबाबा कहा जाता है। गोरख पुराण के अनुसार, गुरू गोरखनाथ के गुरू मछेंद्रनाथ पवनसुत बजरंग बली की आज्ञा से त्रिया राज्य की शासिका रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ आश्रम रहे थे।
जब गुरू गोरखनाथ को इस बात का पता चला तो वे अपने गुरू को त्रिया राज्य के मुक्त कराने को चल पड़े। मान्यता है कि इसी स्थान पर बजरंग बली ने रूप बदल कर गुरू गोरखनाथ का मार्ग रोक लिया, जिसके बाद दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। दोनों में से कोई भी एक-दूसरे को परास्त नहीं कर पाया, जिसके बाद बजरंग बली अपने वास्तविक रूप में आ गए व गुरू गोरखनाथ के तपो-बल से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा।
गुरू गोरखनाथ ने बजरंग बली श्री हनुमान से इसी स्थान पर उनके प्रहरी के रूप में रहने की गुजारिश की। गुरू गोरखनाथ व बजरंग बली हनुमान के कारण ही इस स्थान का नाम ”सिद्धबली” पड़ा व आज भी यहां पवनपुत्र हनुमान प्रहरी के रूप में भक्तों की मदद को साक्षात रूप में विराजमान रहते हैं।