देहरादून
चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा करने के विरोध में विद्रोह दिवस की 64वीं वर्षगांठ पर तिब्बती महिला संघ से जुड़ी तिब्बती महिलाओं नेदू न की सड़को पर जुलूस निकाल प्रदर्शन किया।
इस मौके पर कहा गया कि 12 मार्च 1959 तिब्बती महिलाओं के इतिहास में बहुत महत्व रखता हैं। 64 वर्ष पूर्व आज के दिन बहुत भारी संख्या में तिब्बती महिलाएं पोटाला पैलेस’ ल्हासा के सामने देवू युल्के मैदान में, चीन के तिब्बत पर जबरन कब्जे के विरोध प्रर्दशन करने के लिए इक्ट्ठी हुई। महिलाओं के एक वर्ग पर खास कर शहीद पानो कुनसंग पर चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने देशद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार करके कद कर लिया। तिब्बती महिलाओं को निर्दयता से पीटा गया। उन्हें कैद करके तरह तरह से यातनाएं दी गई। आज हम तिब्बती महिला संघ महिलाओं द्वारा किए गए विशाल प्रदर्शन की 64वीं वर्षगांठ पर ‘विद्रोह दिवस’ का सम्मान करने हुए इन शहीदों के बलिदान के साथ खड़ी है ।
तिब्बती महिला संघ और क्षेत्रीय अध्याय 12 मार्च 1959 के ऐतिहासिक एवं महत्वपूर्ण दिवस को स्मरण करते हुए विश्वभर में सभी तिब्बती महिलाओं से अनुरोध करती हैं कि तिब्बत की धार्मिक स्वतंत्रता, तिब्बती संस्कृति व तिब्बत के लोगों की पहचान के लिए किए गए तिब्बती महिलाओं के बलिदान को स्मरण करें तथा उनका सम्मान करें।
परम पावन दलाई लामा के आर्शीवाद से 10 दिसम्बर 1984 को ‘तिब्बती महिला संघ व 12 शाखाओं को आधिकारिक रूप से बहाल किया गया।
आज ‘तिब्बती महिला संघ के 58 क्षेत्रीय अध्याय व 20,000 सदस्य है। महामहिम दलाई लामा का आर्शीवाद व तिब्बती महिला संघ के पूर्व सदस्यों द्वारा किए कठिन परिश्रम हमारा सदैव मार्गदर्शन करते रहेंगे। ‘तिब्बती महिला संघ’ सबसे बडी गैर सरकारी संगठन है और हम महिला सशक्तिकरण और मानवाधिकारों की समर्थक है।
हम इस ऐतिहासिक दिवस पर उन शहीदों के प्रति अपनी कृतज्ञता ‘व सम्मान प्रकट करते हुए वर्तमान और भावी पीढी को संघर्ष की कठिन राह पर चलने का आहवान करती हैं उन बहादुर तिब्बती महिलाओं ने तिब्बती लोगों पर हो रहे चीन सरकार द्वारा किए गए अत्याचारों के विरोध में संघर्ष किया और चीन की सरकार के दमनकारी नीतियों को विश्वभर में बेनकाब किया।
‘तिब्बती महिला संघ महामहिम दलाई लामा की ‘मध्यमार्ग नीति की सर्मथक हैं और उनका अनुसरण करती हैं। हमारी संस्था निर्वासन में चीन सरकार के तिब्बती लोगों पर किए जा रहे अत्याचार, उत्पीडन और कूर नीतियों का शांतिपूर्वक विरोध करती है। चीन की सरकार विभिन्न तरीकों से तिब्बत की संस्कृति को नष्ट करने में प्रयासरत है। 64 वर्ष से चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया हुआ है। ‘जीरो कोबिड’ नीति के तहत ट्रकों में भरकर तिब्बती लोगों को कैम्पों में रखा गया। कैम्पों में सफाई की कोई व्यवस्था नहीं थी। उन्हें बासी खाना दिया गया था और बिना कोबिड टैस्ट के सभी को इक्ट्ठा रखा गया। कई तिब्बती लोगों ने इसका विरोध करते हुए इमारतों से कूद कर अपनी जान गंवा दी।
2022 की रिपोर्ट के आधार पर नजर रखने की नीयत से 12 लाख तिब्बती लोगों के डी०एन०ए० नमूने जबरदस्ती लिए गए। ऐसा ही मुस्लिम अल्पसंख्यक उग्योर लोगों के साथ किया जा रहा है।
हम ‘तिब्बती महिला संघ’ ‘संयुक्त राष्ट्र संघ सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों, पार्लियामेंट के सदस्यों और स्वतंत्र मानवाधिकार संगठनों से निवेदन करते हुए कहा गया कि
👉चीनी सरकार पर दवाब डालें कि महामहिम दलाई लामा द्वारा मनोनीत सदस्यों और चीन सरकार के बीच चीन तिब्बत वार्तालाप अतिशीघ्र दुबारा शुरू करें।
👉11वें पंचेन लामा तेन्जिंग येशी त्रिनले सांगपो और अन्य तिब्बती राजनैतिक कैदियों को अति शीघ्र रिहा करें।
👉हम संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त से अनुरोध करते हैं कि चीनी सरकार औपनिवेशिक बोर्डिग स्कूल नीति तत्काल बन्द करे।
👉तिब्बती लोगों को तिब्बत में कहीं भी जाने की स्वतंत्रता हो और ‘मार्क कैस्पर सी०ई०ओ० से अनुरोध करती हैं कि चीनी सरकार को ‘थरमो फिशर’ किट्स बेचना तुरन्त बन्द कर दें।
इस अवसर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष जी एस नेगी (बीटीएसएस) डॉ उपाध्याय (BTS), कारके डोलमा डीगन प्रेसिडेंट रीजनल तिब्बतन विमेन असोसिएशन, डीलेन, तेनजिंग डोल्मा, डीलेन योनडॉन,टी जोमो और एन गोवांग सहित सैकड़ों की संख्या में तिब्बती महिलाए मौजूद थी।