13 साल और 18 किलो की किशोरी की छाती से निकाला ढाई किलो का ट्यूमर, जोखिम उठाकर एम्स के चिकित्सकों ने बचाई जान

देहरादून/ ऋषिकेश

13 साल की खुशनुमा जब पहली बार एम्स,ऋषिकेश आई तो उसके जीवन की सांसें थमने को थी और बैठे-बैठे ही उसकी सांस फूलने लगी थी। आस-पास के अस्पतालों ने परिजनों को बताया था कि खुशनुमा के फेफड़ों के ऊपर एक ढाई किलोग्राम का बड़ा ट्यूमर बन चुका है, जिसका इलाज संभव नहीं। इस बीच उन्हें पता चला कि एम्स ऋषिकेश में बच्चों की सभी बीमारियों का बेहतर इलाज होता है। बस इसी अंतिम उम्मीद को लिए खुशनुमा को लेकर परिजन एम्स पहुंच गए। खुशनुमा की हिम्मत और एम्स के अनुभवी चिकित्सकों की मेहनत का परिणाम यह रहा कि बेहद जटिल सर्जरी द्वारा किशोरी की छाती से ढाई किलोग्राम का ट्यूमर सफलतापूर्वक निकाल दिया गया। वह अब पूरी तरह से स्वस्थ है और उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।

कहते हैं कि बीमारी बोलकर नहीं आती। लेकिन यदि समय पर उचित इलाज मिल जाए तो जीवन के अतिम क्षणों में खड़े बीमार व्यक्ति के जीवन को भी बचाया जा सकता है। ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले की रहने वाली 13 वर्षीया किशोरी खुशुनमा का है। लगभग एक वर्ष पहले एक दिन खुशनुमा की छाती में अचानक तेज दर्द होने लगा। परिजनों ने आस-पास के अस्पतालों से लेकर मेरठ और दिल्ली तक के कई निजी अस्पतालों की दौड़ लगाई। बताया गया कि उसकी छाती में ट्यूमर बन गया है। वजन कम होने और किशोरी की दुबली-पतली काया के कारण ट्यूमर निकाला नहीं जा सकता है।

एम्स पहुंचने पर परिजनों ने चिकित्सकों को पूरी बात बताई। सीटी स्कैन की रिपोर्ट देखी गई तो ज्ञात हुआ कि ट्यूमर हार्ट के ऊपर से शुरू होकर दाएं फेफड़े को भी पूरी तरह दबा चुका है और बाएं फेफड़े का भी लगभग आधा अंश फूला हुआ बचा है। इन हालातों में मरीज की सांस का उखड़ना और उसके दिल पर दबाव पड़ना स्वभाविक था। बायोप्सी की जांच रिपोर्ट के आधार पर पेशेंट का कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से इलाज करना भी संभव नहीं था। ऐसी स्थिति में ऑपरेशन से ट्यूमर निकालना ही एकमात्र विकल्प बचा था। लेकिन चिकित्सकों की चिंता यह थी कि छाती में बन चुके ट्यूमर के विशाल आकार और बच्ची का वजन बहुत कम होने की वजह से यह कार्य बेहद जोखिम भरा था और इससे बच्ची की जान भी जा सकती थी।

बावजूद इसके संस्थान के सीटीवीएस विभाग के पीडियाट्रिक हार्ट सर्जन डॉक्टर अनीश गुप्ता ने किशोरी की छाती की सर्जरी कर हाई रिस्क ट्यूमर निकालने का जोखिम भरा निर्णय लिया और तकरीबन 2 घंटे की मेहनत के बाद इस ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। सर्जरी के बाबत जानकारी देते हुए डॉ. अनीश गुप्ता ने बताया कि सर्जरी द्वारा मरीज की छाती खोलकर एक ही बार में पूरा ट्यूमर निकाल दिया गया। लेकिन क्रिटिकल कंडीशन की वजह से सर्जरी के बाद किशोरी को 2 बार वेंटिलेटर सपोर्ट की आवश्यकता पड़ी। कुछ दिन चिकित्सीय निगरानी में रखने के बाद उसे बीते दिनों 29 सितंबर को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। सर्जरी करने वाली चिकित्सकीय टीम में सीटीवीएस विभाग के डॉक्टर अनीश गुप्ता और एनेस्थिसिया के डॉक्टर प्रवीण तलवार के अलावा डॉ. प्रदीप कुमार, डॉ. ईशान, शुभम, अभिशो, मंगेश, पूजा, जूपी, धरम, चांद, केशव, गौरव, प्रियंका, अमित, गीता आदि शामिल रहे।

बच्चों के लिए भी बन रहा स्पेशल आईसीयू…

एम्स ऋषिकेश की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह इससे पहले पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ में पीडियाट्रिक पल्मोनोलॉजी की विभागाध्यक्ष भी रह चुकी हैं।

एम्स ऋषिकेश में भी श्वास रोग से ग्रसित बच्चों के इलाज के लिए प्रो. मीनू सिंह की पहल पर एक विशेष विभाग बनाया गया है। बिजनौर की 13 वर्षीय खुशनुमा के इलाज के मामले में भी प्रो. मीनू सिंह ने व्यक्तिगत रूचि ली और चिकित्सकों का मार्गदर्शन किया। ऑपरेशन के उपरांत खुशनुमा की रिकवरी के लिए संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर मीनू सिंह की टीम की सदस्य डॉक्टर खुशबू का अहम योगदान रहा। प्रो. मीनू सिंह ने सर्जरी करने वाली चिकित्सकों की टीम की प्रशंसा की और कहा कि एम्स ऋषिकेश बच्चों के हार्ट से जुड़ी सभी बीमारियों का इलाज करने में सक्षम है। उन्होंने बताया कि विभिन्न बीमारियों से ग्रसित छोटे बच्चों की इलाज की समस्या को देखते हुए एम्स में 42 बेड का एक आईसीयू निर्माणाधीन है। एम्स का प्रयास है कि इलाज के अभाव में कोई भी मरीज अस्पताल से वापस नहीं लौटे। लिहाजा संस्थान में खासतौर से छोटे बच्चों के इलाज के लिए सभी प्रकार की आधुनिक मेडिकल सुविधाओं को विकसित किया जा रहा है।

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