एक युवा की तरह ही उत्तराखंड अब अपने 20वें स्थापना दिवस पर उत्साह से भरपूर, नए विचारों से ओतप्रोत, नई चुनौतियों का सामना करने को तैयार राज्य में तब्दील होने की तैयारी में है। 19 साल के सफर में उत्तराखंड ने सफलता के कई मुकाम हासिल किए। कई चुनौतियों का सामना किया। कुछ में सफलता हाथ लगी और कुछ में जूझने, संघर्ष करने, नई राह तलाश करने का दौर जारी है।
राज्य आंदोलन की आग में तपकर नौ नवंबर, 2000 को राज्य का जन्म हुआ था। इस आंदोलन ने राज्य गठन की भूमिका तैयार की, सपने देखने की मासूम सी इच्छा को जन्म दिया और इन सपनों को हकीकत में बदलने का उत्साह और साहस दिया। यह आंदोलन ही था, जिसमेें राज्य ने अपनी मातृ शक्ति की ताकत का अहसास किया और युवाओं के उत्साह को स्वीकार किया।
वर्ष 2000 से शुरू हुई यह यात्रा अब 19 साल का सफर पूरा कर चुकी है। इस सफर में उत्तराखंड कभी तनकर खड़ा हुआ और कभी टूट-बिखर कर फिर उठ खड़ा हुआ। राज्य ने वर्ष 2000 में 14.5 हजार करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था से 2.5 लाख करोड़ रुपये तक की अर्थव्यवस्था तक छलांग लगाई। शून्य से शुरू होकर उद्योगों का 50 हजार करोड़ रुपये का साम्राज्य खड़ा किया। मात्र 50 हजार युवाओं को रोजगार देने की क्षमता वाला राज्य इन 19 सालों में तीन लाख से अधिक युवाओं को सिर्फ उद्योगों में रोजगार देने वाला राज्य बना। अब 1.24 लाख करोड़ का निवेश प्रस्तावित है और तीन लाख युवाओं के लिए रोजगार का दावा है।
इस बीच चुनौतियां भी सामने आईं। सरकाराें ने पांच सालों का कार्यकाल पूरा किया। लेकिन बार-बार नेतृत्व परिवर्तन के बीच, राष्ट्रपति शासन का सामना भी किया। पलायन का दंश पहले जितना था, उससे कहीं अधिक पहुंच गया। 2013 की केदारनाथ आपदा का दंश सहा और उससे उबरा। अब चुनौती है भूतहा गांवों को फिर बसाने की, युवाओं को अधिक सक्षम बनाने की और उनके मजबूत हाथों को काम सौंपने की, मातृ शक्ति की ताकत को पहचाने और उसके सही दिशा में उपयोग की।