ब्रेन स्ट्रोक
क्या हैं लक्षण, सावधानियां व बचाव के उपाय
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश के न्यूरोलॉजी विभाग ने लगातार बढ़ते ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में एडवाइजरी जारी की है। विभाग के विशेषज्ञों ने ब्रेन स्ट्रोक होने के कारणों, आवश्यक सावधानियों व बचाव के उपायों पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई है,जिससे आमजन को इस तरह की खतरनाक बीमारियों से बचाया जा सके। बताया गया कि बोलने या मुस्कुराने पर आपका चेहरा अचानक एक तरफ झुक जाए अथवा आपके शारीरिक अंगों में अचानक कमजोरी महसूस की जाती है तो आपको अति सावधान रहने की जरुरत है।
यह लक्षण ब्रेन स्ट्रोक के हो सकते हैं, और इन हालातों में आप कभी भी लकवा नामक बीमारी के शिकार हो सकते हैं। अनमोल जीवन के लिए यह बहुत ही घातक बीमारी है। ऐसे रोगियों के समुचित इलाज के लिए एम्स ऋषिकेश में एक ब्रेन स्ट्रोक यूनिट स्थापित की गई है, जिसमें इलाज के लिए यहां समय पर पहुंचने वाले रोगी को उपचार का सीधा लाभ मिलता है। अत्यधिक तनाव और अनियमित दिनचर्या की जीवनशैली ने वर्तमान दौर में आम व्यक्ति को भी बीमार कर दिया है। इन बीमारियों में मस्तिष्क में पड़ने वाला दौरा भी शामिल है। जानकारों के अनुसार यह जानलेवा खतरनाक बीमारी पिछले कुछ वर्षों से तेजी से उभर रही है। चिकित्सा विज्ञान की भाषा में इसे स्ट्रोक कहा जाता है। स्ट्रोक से व्यक्ति का दिमाग काम नहीं करता और मस्तिष्क चेतना शून्य हो जाता है। यह इतनी गंभीर किस्म की बीमारी है कि स्ट्रोक की वजह से कई बार व्यक्ति अपनी स्मरण शक्ति पूर्णरूप से खो देता है व उसकी मृत्य भी हो सकती है।
स्ट्रोक, जिसे मस्तिष्क का दौरा भी कहा जाता है, यह मस्तिष्क में रक्त संचार की आपूर्ति में अचानक रुकावट होने के कारण होता है। मस्तिष्क पर्याप्त रक्त की आपूर्ति के बिना कुछ सेकंड से अधिक समय तक अपनी कार्य क्षमता बनाए रखने में असमर्थ है। जिसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क की कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है। इस बीमारी का निदान और शरीर में आने वाली विकलांगता का स्तर, स्ट्रोक के प्रकार, प्रभावित मस्तिष्क के हिस्से और क्षतिग्रस्त क्षेत्र के आकार के अनुसार अलग-अलग होता है। ब्रेन स्ट्रोक सामान्य प्रकार के मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों की रुकावट शामिल है। जबकि दूसरे प्रकार के स्ट्रोक में धमनियों के टूटने के कारण मस्तिष्क के अंदर रक्तस्राव हो सकता है, यह दोनों मामले अति गंभीर हैं।
एम्स निदेशक पद्मश्री रवि कांत ने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों के उपचार के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में सभी तरह की सुविधाओं से युक्त बेहतर स्ट्रोक यूनिट स्थापित है। उन्होंने बताया कि धमनियों की रुकावट की वजह से होने वाले स्ट्रोक के उपचार के लिए पहले 4 से 5 घंटे अति महत्वपूर्ण होते हैं। यदि इस समयावधि के भीतर रोगी अस्पताल पहुंच जाता है तो इलाज के दौरान मस्तिष्क में जमा रक्त के थक्के-फोड़ने (थ्रोम्बोलाइटिक) वाली दवाओं का उपयोग किया जाता है। इससे मरीज को सीधा लाभ पहुंचता है। लेकिन इससे अधिक देरी से अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों का मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी विधि से ही उपचार किया जाता है। इस विधि में कैथेटर का उपयोग कर मस्तिष्क की धमनियों से थ्रोम्बस को हटा दिया जाता है। एम्स निदेशक पद्मश्री प्रो. रवि कांत ने बताया कि एम्स ऋषिकेश में बहुत जल्द स्ट्रोक के मरीजों के उपचार के लिए मैकेनिकल थोरम्बेक्टॉमी तकनीक की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी। निदेशक प्रो. रवि कांत ने कहा कि ऐसे मरीजों को लाभ देने के उद्देश्य से एम्स में एक वृहद स्तर के स्ट्रोक केंद्र, एक तंत्रिका विज्ञान केंद्र स्थापित करने की योजना पर भी कार्य चल रहा है। लिहाजा संस्थान में बहुत जल्दी यह यूनिट कार्य करना शुरू कर देगी।
एम्स के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष एडिशनल प्रोफेसर नीरज कुमार ने बताया कि कुछ समय पहले तक यह बीमारी ज्यादातर बुजुर्ग लोगों में हुआ करती थी, लेकिन अब अनियंत्रित मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अत्यधिक धूम्रपान और नशीली दवाओं के सेवन, मोटापे और हृदय संबंधी समस्याओं की वजह से युवा लोग भी इस स्ट्रोक नामक बीमारी के शिकार हो रहे हैं। इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के अनुसार, भारत में हर तीन सेकंड में एक व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक होता है जबकि प्रत्येक चार मिनट बाद मरीज की मौत हो जाती है। उन्होंने बताया कि इस बीमारी की तत्काल पहचान आवश्यक है क्योंकि ब्रेन स्ट्रोक के प्रत्येक मरीज में सेकेंड दर सेकेंड मस्तिष्क आघात का खतरा बढ़ जाता है और उससे मस्तिष्क की क्षति होने लगती है। चेहरा, भुजाएं, बोलचाल और लक्षणों पर समय रहते ध्यान देने से इस बीमारी का समुचित उपचार किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि स्ट्रोक से पूर्व लक्षण वाले व्यक्ति के मुस्कराने पर उसका चेहरा एक तरफ झुक सकता है। इसके अलावा दोनों हाथों को ऊपर उठाने पर उसका हाथ नीचे की ओर लटकने लगता है। सबसे गंभीर लक्षण यह है कि धारा प्रवाह बोलते समय ऐसे व्यक्ति की अपने शब्दों पर कमांड नहीं रहती और जुबान लड़खड़ाने लगती है। इससे उसकी भाषा समझ में नहीं आती। डा. नीरज कुमार ने कहा कि इस बीमारी में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण समय की गंभीरता है। इस प्रकार के लक्षण आते ही जितना जल्दी मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाए, उतना ही उसके ठीक होने की उम्मीदें बढ़ जाती हैं। स्ट्रोक की शिकायत मिलते ही मरीज के लिए एक-एक पल अति महत्वपूर्ण होता है। ब्रेन स्ट्रोक से ग्रसित मरीज का उपचार शुरू करने में जितना विलंब होगा, उतना ही मरीज के ठीक होने के अवसर खत्म होते जाएंगे।
एम्स के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डा. नीरज कुमार ने स्ट्रोक पर नियंत्रण करने के उपायों के बारे में बताया कि इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप स्वस्थ आहार लें। नियमित व्यायाम करें और धूम्रपान और अन्य व्यसनों से दूर रहें। तनावमुक्त जीवनशैली अपनाएं। उन्होंने बताया कि इस बीमारी से बचाव के लिए मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अन्य लक्षणों वाले व्यक्ति की नियमित चिकित्सा जांच और उन लक्षणों पर पर्याप्त नियंत्रण इस बीमारी को रोकने में सहायक होता है।