कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा सोनिया ने 5 राज्यो के अध्यक्षों से मांगे इस्तीफे,गणेश गोदियाल पहले ही दे चुके इस्तीफा

देहरादून

उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में कांग्रेस की हार से हाईकमान ने फरमान जारी किया है जिसमें हाथ से निकलने पांचों राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा एवं मणिपुर के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्षो से सोनिया गांधी ने त्याग पत्र मांगा है।

हालांकि उत्तराखंड काग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल तो पहले ही त्याग पत्र दे ही चुके हैं, जबकि शेष चार राज्य अध्यक्षों को अब ईस्तीफा देना ही होगा।

उत्तराखंड में कांग्रेस को मात्र 19 सीटें मिली हैं जबकि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने 48 सीटे जीतने का दावा किया था।

हालांकि मुख्यमंत्री हरीश रावत खुद अपनी सीट भी हार गए एवं प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल भी अपनी सीट नहीं निकाल पाए। इस हार से काग्रेस को गहरा आधात लगा है और अब पार्टी में बड़े बदलाव की तैयारी शुरू कर दी गयी है। राष्ट्रीय अध्यक्षा सोनिया गांधी ने हारे गए पांचों राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों से इस्तीफा मांगा है। उत्तराखंड के अलावा उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय लल्लू विधानसभा सीट पर तीसरे नंबर पर रहे और अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए।

पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अमृतसर पूर्वी सीट से चुनाव हार गए। उन्हें आप की जीवन ज्योत कौर ने हराया। मणिपुर कांग्रेस अध्यक्ष एन लोकेन सिंह नंबोल विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। उन्हें भाजपा के टी बसंत कुमार सिंह ने हराया। वहीं गोवा के पार्टी अध्यक्ष गिरीश राया चोडनकर ने चुनाव परिणाम के बाद ही इस्तीफे की पेशकश कर दी थी। चूंकि लोकसभा चुनाव दो साल बाद होने हैं तो कांग्रेस अध्यक्षा ने 2024 को ध्यान में रखते हुए अब पार्टी में बदलाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं।

पांच राज्यों में प्रदेश अघ्यक्षों को बदला जाना अब तय है, लेकिन लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस कैसे लोकसभा चुनावों के लिए खुद को तैयार करेगी यह एक बड़ा सवाल हालांकि भविष्य के गर्भ में जरूर है।

पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने कांग्रेेस को हाशिए पर खड़ा कर दिया है और जनता भी अब कांग्रेस की नीतियों को सिरे से खारिज कर चुकी है। कांग्रेेस को यदि मैदान में टिके रहना है तो जनता के मिजाज को भांपना होगा। एक खास वर्ग की राजनीति से अब किसी भी पार्टी का भला होने वाला नहीं है। समय के साथ राजनीति की चाल भी बदलनी चाहिए, जिसे शायद कहीं न कहीं सोनिया गांधी अब भांप चुकी हैं। जरूरी भी है कि ध्रूवीकरण की राजनीति को छोड़ कर देश एवं समाज के विकास की राजनीति की ओर बढ़ते हुए कुछ बात क्यों न की जाए।

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