पतंजलि पर लगभग 6,92,00,000/- लाख की पेनल्टी,गीतांजली रेजीडेंसी निवासियों की शिकायत पर HRDA की कार्यवाही

देहरादून

दिल्ली-हरिद्वार नेशनल हाईवे पर बहादराबाद के पास गीतांजलि रेजीडेंसी नाम की एक कॉलोनी है। इसे देहरादून के संजय घई, सुरेंदर घई और सुभाष घई की कम्पनी आकाशगंगा डेवलपर्स ने साल 2001 में विकसित किया था। इस कॉलोनी की दीवार पतंजलि योगपीठ से बिल्कुल सटी हुई थी। एक समय में गीतांजली सोसाइटी के लोग इसे अपनी पहचान के तौर पर देखते थे लेकिन अब यही पतंजलि योगपीठ इनके लिए दुस्वप्न बन चुकी है।इस सोसाइटी में 200 हज़ार वर्ग गज के इलाके में करीब 150 मकान, पार्क, मंदिर, क्‍लब हाउस, पक्‍की सडकें, हरे भरे पेड़ इत्‍यादि बनाए गए थे।

साल 2016 तक 18 मकान बिक चुके थे। उसी साल दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट और आकाशगंगा डेवलपर्स के बीच सौदा हुआ जिसमें आकाशगंगा डेवलपर्स ने बची ज़मीन और सभी सुविधाएं जैसे क्लब, मंदिर, पूल इत्यादि का क्षेत्र दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट को 13 करोड़ में बेच दिए।

इस सौदे में लिखा गया था, “आवासीय कम्पाउंड क्षेत्र में पूर्व में विकृत किये गए 18 मकानों के लिए रास्ता, बिजली एवम पानी की व्यवस्था यथावत रहेगी.”

यहां ये बात काबिलेगौर है कि ये सौदा कॉलोनी के निवासियों को बिना बताए किया गया था।

दिल्ली निवासी नवीन सेठी ने साल 2007 में 50 लाख में अपना मकान सुरेंदर घई के ज़रिए खरीदा था। जिसकी रजिस्ट्री साल 2009 में कराई गई थी। यह मकान नवीन की मां 74 वर्षीय सतीश सेठी के नाम दर्ज है। साल 2016 में नवीन जब अपना मकान देखने पहुंचे तब उन्होंने देखा कि वहां पतंजलि की टीम मकानों का निरीक्षण कर रही है। पूछने पर पता चला कि बिल्डर ज़मीन बेचकर चला गया है। नवीन व अन्य निवासियों ने बिल्डर से बात करने की कई कोशिशें की लेकिन बिल्डर लापता हो गया।

नवीन कहते हैं कि हमने मकान इसलिए खरीदा था कि माताजी एवं बाबूजी अपने रिटायरमेंट के बाद अपना जीवन हरिद्वार की पावन धरती पर गुजार सकें। इसके लिए पिताजी ने अपने जीवन भर की रिटायरमेंट की सारी पूँजी इस कॉटेज को खरीदने में लगा दी।

वहॉं रहकर सोसायटी के पार्क, क्लब, पूल जैसी सुविधाओं का आनंद उठा सके पार्क, क्लब, पूल जैसी सुविधाओं का आनंद उठा सके,पैसा भी उसी हिसाब से दिया गया था। लेकिन हमें मिलने वाली सभी सुविधाएं पतंजलि को बेच दी गई। बिल्‍डर ने हमारे साथ धोखाधड़ी की और रातो रात वहां के निवासियों को जानकारी दिए बिना ही पूरी सोसायटी पतंजलि को बेच कर फ़रार हो गया। यहॉं के निवासियों ने बताया कि पतंजलि योगपीठ ने निर्माण कार्य के दौरान बचे सभी घरों को खंडहर में परिवर्तित कर दिया गया है। आज सारे घरों की हालत बहुत ही जर्जर है एवं रहने लायक नहीं हैं।

2017 में जब विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य शुरू हुआ, सभी मकानों की बिजली और पानी काट दी गई और धीरे- धीरे हमारे मकानों के सामने की सडकों की खुदाई चालू कर दी। मकानों के अंदर घुसने का रास्ता बंद हो गया। हमारे साथ ज़बरदस्ती की गई। ऐसे में कई लोग पतंजलि को मकान बेचकर चले गए अब यहां केवल सात मकान ही बचे हैं।

जब यहां के निवासियों ने अपने ये मकान पतंजलि को बेचने से इन्‍कार कर दिया तो पंतजलि ने मकानों के आसपास के क्षेत्र का स्‍तर उँचा उठा दिया ओर सभी मकानों को करीब 8 फीट गढढे में दबा दिया गया। ये सब कार्य लोकडाउन के दौरान किया गया। कॉलोनी के निवासी पिछले साल के लोकडाउन के दौरान अपने घरों को देखने जा नहीं सके ओर पतंजलि ने इस तरह से सभी घरों पर कब्‍जा जमा लिया।

यहां के निवासियों ने जब इसकी शिकायत पुलिस एवं तहसील स्‍तर पर की तो तहसीलदार एवं एसडीएम ने इसकी जॉंच करवाई ओर रिर्पोट में लिखा कि हॉं जमीन का स्‍तर उँचा उठाकर घरों को दबा दिया गया है एवं इन मकानों में अब कोई नहीं घुस सकता। एएसडीएम ने निवासियों को बताया कि वो पतंजलि के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते इसलिए सभी निवासियों को कोर्ट जाने की सलाह दी।

विश्‍वविद्यालय बनाने का कार्य हरिद्वार रूडकी विकास प्राधिकरण (एचआरडीए) के तहत आता है लेकिन ये पूरा विश्‍वविघालय बिना एचआरडीए की अप्रुवल के ही बना दिया गया। ये तथ्‍य आरटीआाई जॉच के दौरान सामने आया।

इस बाबत एचआरडीए ने लगभग 6,92,00,000/- लाख की पेन्‍ल्‍टी पतंजलि पर लगाई । ये पेन्‍ल्‍टी इसलिए लगाई कि उसे बिना बताए एवं बिना अप्रुवल के ये विश्‍वविघालय बनाया गया।

गीताजंलि रेजीडेन्‍सी के निवासियों ने जब एचआरडीए में शिकायत की गई तो उनकी तरफ से पतंजलि को पत्र लिखकर पूछा गया कि क्‍या निर्माण स्‍थल के अंदर किसी के घर हैं तो पंतजलि ने साफ मना कर दिया कि यहां कोई घर नहीं हैं ये पत्र आरटीआई के तहत प्राप्‍त किया गया। एचआरडीए ने भी निवासियों को कोर्ट जाने की सलाह दी।

यहां के निवासियों ने तहसीलदार, एसडीएम, हरिद्वार डीएम, एचआरडीए सचिव, मुख्‍यमंत्री, प्रधानमत्री, राष्‍ट्रपति सभी को इस बारे में शिकायत की लेकिन आज तक कहीं से भी इस मामले पर संज्ञान नहीं लिया गया है। आखिर में सभी निवासी रूडकी कोर्ट गए लेकिन स्‍टे के मामले में जहां जज को 15-30 दिन में फैसला लेना होता है वहां 6 महीने में आदेश दिया गया एवं स्‍टे के मामले को निरस्‍त कर दिया गया एवं मामले को एक सामान्‍य केस की तरह सुनने का आदेश दिया गया। जैसा कि पूरे भारतवर्ष में होता है सामान्‍य केस कोर्ट में 15-20 साल तक भी चल सकते हैं। ये भारत के लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था एवं कानून व्‍यवस्‍था का एक मजाक है। जहां लोगों को जबरदस्‍ती उनके घर खाली करवाए जातें हैं एवं पतंजलि जैसे बडे कारपोरेट की सरकार दवारा भी सहायता कर एक बसी- बसाई रेजीडेन्‍सियल सोसायटी का नेस्‍तनाबूद कर लोगों के घरों पर कब्‍जा कर लिया जाता हैं ।

बिल्डर व कॉन्ट्रैक्टर सुरेंदर घई से बात करने पर उन्होंने बताया कि यह मामला बहुत पुराना है। अब कम्पनी को बंद हुए दस साल से अधिक हो गया है। हम सब बिल्डर अलग हो गए हमारा इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.