देहरादून बार एसोसिएशन के बैनर पर सड़क पर उतरे सैकड़ों अधिवक्ताओं ने किया अपनी मांगो के समर्थन में सचिवालय पर प्रदर्शन

देहरादून

मंगलवार को देहरादून बार एसोसिएशन द्वारा अधिवक्ताओं की मांगों के समर्थन में मुख्यमंत्री को ज्ञापन देने के लिए सचिवालय कूच किया गया। जिसमे सैकड़ों अधिवक्ताओं ने तेज धूप में कचहरी से चलकर मार्च करते हुए सचिवालय पहुंचकर ज्ञापन सौंपा।

अधिकारियों के माध्यम से भेजे गए ज्ञापन का मजमून कुछ इस प्रकार है….

माननीय मुख्यमंत्री,

उत्तराखण्ड सरकार

देहरादून।

विषयः- पंजीकरण अधिनियम 1908 की व्यवस्था को परिवर्तित करने एवं वसीयत पंजीकरण, विवाह एवं तलाक पंजीकरण की नई नियमावली (यू.सी.सी. अधिनियम के अनुसार) के आधार पर विभिन्न कॉमन सर्विस सेन्टर में पंजीकरण की अनुमति दिये जाने एवं भविष्य में विक्रय पत्र, अनुबन्ध पत्र, दान पत्र आदि हस्तान्तरण विलेखों के पंजीकरण की नई व्यवस्था को पंजीकरण अधिनियम 1908 के विपरीत लागू किये जाने के संदर्भ में।

मान्यवर,

प्रदेश के विभिन्न बार एसोसिएशन के साथ किये गये विमर्श एवं विभिन्न बार एसोसिएशन के सदस्यगण द्वारा पंजीकरण अधिनियम 1908 की व्यवस्था के परिवर्तन को लेकर व्यक्त की गयी चिन्ता के क्रम में उत्तराखण्ड की विभिन्न बार एसोसिएशन ने नवीन व्यवस्था के सम्बन्ध में आम सभा में एसोसिएशन के सदस्यगणों द्वारा नवीन व्यवस्था की चर्चा में, नवीन व्यवस्था से होने वाली परेशानियों के सम्बन्ध में अवगत कराया गया जिसके आधार पर विभिन्न बार एसोसिएशन द्वारा नवीन व्यवस्था से आम जन को होने वाली परेशानियों एवं अव्यवहारिकता के सम्बन्ध में आपके समक्ष इस ज्ञापन के माध्यम से आम जन व अधिवक्ताओं के सम्मुख आने वाली परेशानियों को व्यक्त कर उन समस्याओ / परेशानियों का समाधान शीघ्र होने की आशा के साथ यह ज्ञापन आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।

👉1. भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1908 के अन्र्तगत पंजीकरण के लिए एक योग्य अधिकारी (उपनिबन्धक) जो कि विधि स्नातक होता है तथा राज्य सरकार द्वारा निर्धारित परीक्षा उत्तीर्ण करके उक्त पद पर आसिन होता हैकी निगरानी में दस्तावेज पंजीकरण की कार्यवाही किये जाने का प्रावधान वर्णित है, उक्त व्यवस्था 117 वर्षों से चली आ रही है। वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा यू.सी.सी., अधिनियम के अन्र्तगत निर्मित नियमावली के नियम 4 के उपखण्ड 3 के खण्ड क, ख, ग व घ में जिन पदेन व्यक्तियों को उपनिबन्ध के रुप में अधिकार दिए गये हैं वह पूर्व की व्यवस्था के सापेक्ष अत्यन्त गौण हैं। वर्तमान में जिन व्यक्तियों को उक्त अधिकार दिया जा रहा है उनका शैक्षिक स्तर भी विधि के ज्ञान को लेकर प्रश्न चिन्ह लगाता है। ऐसी स्थिति में हम अधिवक्ता समाज जो कि सदैव से जनमानस के हित की बात करते रहे हैं व विधिक ज्ञान के अभाव में नवीन नियमावली के तहत पदेन व्यक्तियों द्वारा किये जाने वाले पंजीकरण कार्य को लेकर अत्यन्त चिन्तित हैं। इस कारण माननीय महोदय के संज्ञान में सर्वप्रथम यह सुझाव प्रस्तुत किया जाना उचित समझते हैं कि पूर्व से चली आ रही उपनिबन्धक पदों की व्यवस्था को नई नियमावली के तहत पुनः बहाल किया जाना अत्यन्त आवश्यक है।

👉2. आपके संज्ञान में यह महत्वपूर्ण बिन्दु भी लाना आवश्यक है कि वर्तमान में पंजीकरण की व्यवस्था कॉमन सर्विस सेन्टर को प्रदान की गयी है। पूर्व से चली आ रही व्यवस्था में पंजीकरण कार्यवाही प्रशासन के कर्मचारियों एवं अधिकारियों के नियन्त्रण में, अधिवक्तागण के दिशा निर्देश व विशिष्ट योग्यतापूर्ण सेवाओं के माध्यम से की जाती रही है। कामन सर्विस सेन्टर की व्यवस्था प्रशासन के नियन्त्रण से बाहर है। ऐसी स्थिति में भविष्य में आम जन के साथ धोखधड़ी होने एवं जबरन दस्तावेज निष्पादित व पंजीकरण कराने की सम्भावनाएं अत्यधिक बढ़ जायेगीं क्योंकि उक्त दस्तावेज निष्पादन व पंजीकरण कार्यवाही में अधिवक्तागण की भूमिका भी विशेषज्ञ के रुप में नगन्य ही रह जाएगी। यू.सी.सी के तहत निर्मित नई नियमावली के निर्माण के समय उपरोक्त महत्वपूर्ण बिन्दुओं को नजरअन्दाज कर उपनिबन्धक के पदों पर विभिन्न पदेन व्यक्तियों को एक तरफा अधिकार प्रदान कर दिये गये हैं। इस कारण माननीय महोदय के संज्ञान में 2000 सुझाव प्रस्तुत किया जाना उचित समझते हैं कि पूर्व से चली आ रही उपनिबन्धक पदों की व्यवस्था एवं राज्य सरकार के नियन्त्रण के अधीन निर्धारित पंजीकरण कार्यालयों में ही पंजीकरण कार्यवाही को पुनः बहाल किया जाना अत्यन्त आवश्यक है।

👉3. अधिवक्ता समाज सदैव से ही सरकार व आम जन के बीच पुल का कार्य करता चला आ रहा है। जहां एक ओर आम जन तक सरकार के मन्तव्य को अधिवक्ता समाज अपने प्रयासो से पहुंचाता है वहीं जनता को होने वाली परेशानियों को भी अधिवक्ता समाज ही सदैव से सरकार को अवगत कराता रहा है। पूर्व से चली आ रही पंजीकरण व्यवस्था जो कि क्लैक्ट्रेट परिसर में ही समाहित होती है में अधिवक्ता समाज अपनी भागीदारी करता रहा है जिससे आमजन के साथ सरकार की नीतियों का भली प्रकार संचालन व पालन होता रहता है किन्तु कामन सर्विस सेन्टर जो कि क्लैक्ट्रेट परिसर में निर्मित नहीं है और न ही उन पर जिला प्रशासन का कोई नियन्त्रण सम्भव है, ऐसे सेन्टर निरकुंश होने की स्थिति में उनके द्वारा पंजीकरण कार्यवाही निष्पादित किये जाने से अत्यधिक व गंभीर दुष्परिणाम का सामना आम जन व राज्य सरकार की नीति पर पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में माननीय महोदय के संज्ञान में यह सुझाव प्रस्तुत किया जाना उचित समझते हैं कि पूर्व से चली आ रही उपनिबन्धक पदों की व्यवस्था एवं राज्य सरकार के नियन्त्रण के अधीन निर्धारित पंजीकरण कार्यालयों में ही पंजीकरण कार्यवाही को पुनः बहाल किया जाना अत्यन्त आवश्यक है।

👉4. बार एसोसिएशन द्वारा किये गये चिन्तन में यह बिन्दु भी अत्यन्त गंभीरता से विचार में आया है कि वर्तमान में यू.सी.सी. के अन्र्तगत बनाई गयी नियमावली के माध्यम से वास्तव में पूर्व से चली आ रही शासन नियन्त्रण व उपनिबन्धक की जिम्मेदारी को अत्यधिक लचीला कर दिया गया है.. किसी भी दस्तावेज के पंजीकरण की गंभीरता को देखते हुए पूर्व से चली आ रही व्यवस्था जिसमें राज्य सरकार के नियन्त्रणाधीन उत्तीर्ण परीक्षा के बाद उपनिबन्धक को पंजीकरण की जिम्मेदारी दी गयी है जो कि राज्य सरकार के के द्वितीय श्रेणी के अधिकारी कहलाते हैं और उनको राज्य स्तर पर विभिन्न समय में मजिस्ट्रेट के अधिकार भी प्रदान किये जाते हैं इसके विपरीत वर्तमान यू.सी.सी. के अर्न्तगत बनायी गयी नियमावली में अधिकारियों के स्थान पर कर्मचारियों को पंजीकरण के अधिकार प्रदान कर दिये गये हैं उक्त कर्मचारियों पर प्रशासन व शासन का कोई सीधा नियन्त्रण नहीं है। ऐसी स्थिति में आपके संज्ञान में यह सुझाव प्रस्तुत किया जाना उचित समझते हैं कि पूर्व से चली आ रही उपनिबन्धक पदों की व्यवस्था एवं राज्य सरकार के नियन्त्रण के अधीन निर्धारित पंजीकरण कार्यालयों में ही पंजीकरण कार्यवाही को पुनः बहाल किया जाना अत्यन्त आवश्यक है जिससे आम जन में उनके दस्तावेजों के माध्यम से प्रदत्त अधिकारों व प्राप्त अधिकारों की सुरक्षा का भाव बना रहे व आम जन में व्यापत भय व असुरक्षा की भावना समाप्त हो सके व सरकार की नीति पर विश्वास कायम हो सके।

👉5. आपके संज्ञान में यह बिन्दु लाना भी आवश्यक है कि विगत कुछ वर्षों में पंजीकरण व्यवस्था में कुछ एक व्यक्तियों द्वारा अत्यन्त नियमों के बावजूद पंजीकरण कार्यालय में दस्तावेजों को बदलने की घटनाएं प्रकाश में आयी हैं जो कि आपके संज्ञान में आने पर आपके द्वारा की गयी सख्त कार्यवाही के बाद ही आम जन के समक्ष आ सकी है। वर्तमान में यू.सी.सी. के तहत बनायी गई नियमावली से उक्त घटनाओं के बढ़ जाने का अंदेशा बना हुआ है क्योंकि कामन सर्विस सेन्टर में जो व्यक्ति उक्त सेन्टर का संचालन कर रहे हैं उनकी कोई जवाबदेही राज्य सरकार के प्रति नहीं है और ऐसे सेन्टर में उपस्थित होकर पंजीकरण कराने वाले आम जन के साथ धोखघड़ी होने का अंदेशा व संशय आम जन में और बढ़ गया है क्योंकि ऐसे सेन्टर में राज्य सरकार का कोई अधिकारी दस्तावेज के पंजीकरण से पूर्व उसकी जांच एवं देय स्टाम्प एवं विक्रेता को अदा की जाने वाली धनराशि के भुगतान के सम्बन्ध में उपस्थित नहीं, रहेगा। ऐसी स्थिति में आम जन के साथ धोखाधड़ी की संभावना अत्यन्त बढ़ जाएगी। माननीय महोदय के संज्ञान में यह सुझाव प्रस्तुत किया जीना उचित समझते हैं कि पूर्व से चली आ रही उपनिबन्धकपदों की व्यवस्था एवं राज्य सरकार के नियन्त्रण के अधीन निर्धारित पंजीकरण कार्यालयों में ही पंजीकरण कार्यवाही को पुनः बहाल किया जाना अत्यन्त आवश्यक है जिससे आम जन में उनके दस्तावेजों के माध्यम से प्रदत्त अधिकारों व प्राप्त अधिकारों की सुरक्षा का भाव बना रहे व आम जन में व्यापत भय व असुरक्षा की भावना समाप्त हो सके व सरकार की नीति पर विश्वास कायम हो सके।

👉6. एक अत्यन्त महत्वपूर्ण वैधानिक बिन्दु भी आपके संज्ञान में लाना है कि यू सी.सी. के उत्तराखण्ड में दिनांक 27.01.2025 को लागू होने पर हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, उ. प्र. जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम में उत्तराधिकार (सामान्य विरासत क्रम एवं वसीयत द्वारा विरासत) के सम्बन्ध में दिये गये प्रावधान यू.सी.सी. की धारा 390 के अन्र्तगत समाप्त हो गये हैं तथा अब सम्पूर्ण प्रदेश में एकमात्र विरासत क्रम यू.सी.सी. के भाग 2 अध्याय 1 की धारा 49 से 60 व अध्याय 2 से अध्याय 5 की धारा 61 से 358 अन्र्तगत वर्णित प्रावधानों के अन्र्तगत प्रभावी हो गया है। उपरोक्त परिवर्तित प्रावधानों के सम्बन्ध में तहसील स्तर पर एवं राजस्व न्यायालयों तथा जिला जज न्यायालय स्तर पर कोई दिशा निर्देश प्राप्त नहीं हुये हैं जिसको लेकर हम अधिवक्तागण, न्यायिक अधिकारीगण व वादकारियों तथा जनमानस में अत्यधिक परेशानी व संशय की स्थिति बनी हुयी हैं। राज्य सरकार द्वारा उपरोक्त सम्बन्ध में उक्त नियमावली के लागू किये जाने से पूर्व यू.सी.सी के उक्त प्रावधान प्रभावी हो गयी हैं किन्तु उनका प्रचार व प्रसार न होने कारण उक्त नियमावली के अनुसार कार्यवाही की जानी सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में यू.सी.सी. के अर्न्तगत बनायी गयी नियमावली को जनहित में स्थगित करते हुए सर्वप्रथम नियमवाली पर सभी स्तर पर गोष्ठी व चर्चा करायी जानी व नियमावली में अव्यवहारिक नियमों को निर्षित कर व नियमवाली का पुर्न निर्माण कर एवं सर्वमान्य होने की स्थिति में ही उसको प्रभावी किया जाना उचित होगा। उक्त कारणों से वर्तमान में यू.सी.सी. के अर्न्तगत बनायी गयी नियमावली कि स्थगित रखा जाना एवं अग्रिम आदेशों तक पूर्व सेभारतीय पंजीकरण अधिनियम के अर्न्तगत एवं भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, उ.प्र. जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम एवं हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अर्न्तगत चली आ रही व्यवस्था को यथावत रखा जाना जनहित में आवश्यक होगा।अतः आपसे अधिवक्ता समाज इस ज्ञापन के माध्यम से पुनः यह निवेदन करता है व अधिवक्ता समाज को पूर्ण आशा है कि विषय की गंभीरता को देखते हुए उपरोक्त महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर अतिशीघ्र निर्णय लेगें व आम जन व अधिवक्ता समाज के हित को देखते हुए यू.सी.सी. के अर्न्तगत बनायी गयी नियमावली से अव्यवहारिक नियमों को संशोधित कर उक्त वर्णित समस्याओं व संशय को दूर कर जनहित में नई संशोधित नियमावली का निर्माण शीघ्र अतिशीघ्र कराने की कृपा करेगें व तब तक पूर्व से चली आ रही व्यवस्था को यथावत रखने हेतु शासनादेश जारी कर हम अधिवक्ता समाज एवं आम जन को कृतार्थ करेगें।

प्रदर्शन के दौरान अध्यक्ष मनमोहन कंडवाल सचिन राजवीर सिंह बिष्ट उपाध्यक्ष भानु प्रताप सिसोदिया सीमा चड्ढा,सहसचिव कपिल अरोड़ा,कोषाध्यक्ष ललित भंडारी के साथ सुभाष परमार दीपक त्यागी आराधना चतुर्वेदी अविष्कार सिंह रावत रमन वर्मा आरती रावत और सैकड़ों की संख्या में अधिवक्ता मौजूद थे।

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