देहरादून
आने वाले समय में भयभीत होने से बेहतर अभी सजग हों,ये कुदरत का इशारा है,इसे समझना जरूरी:रवींद्र जुग रान ,आप नेता चमोली जिलें के जोशीमठ के रैणी क्षेत्र में ग्लेशियर टूटने से आई भीषण जलप्रलय से पूरा प्रदेश स्तब्ध है। इसकी जद में आए तपोवन विष्णू गंगा प्रोजेक्ट में कार्य कर रहे कई श्रमिक अभी भी सैलाब में बहने की वजह से लापता है ।रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान , कुछ श्रमिकों के शव रेसक्यू टीम बरामद कर चुकी है।लेकिन अभी भी 200 के लगभग मजदूर लापता हैं जिनकी खोज में रेस्क्यू टीम लगातार लगी है। अब तक रेस्क्यू टीम ने 12 लोगों को बचा लिया जबकि 26 शव बरामद किए हैं । आम आदमी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष विनोद कपरवाण भी आपदा के समय से लगातार आपदा क्षेेत्र में ही मौजूद हैं। आज हमारे उपाध्यक्ष शिशुपाल रावत और युवा मोर्चा के अध्यक्ष दिग मोहन नेगी अपने कुछ लोगों के साथ आज मौके पर पहुंच रहे जहां आम आदमी पार्टी का हर कार्यकर्ता,पदाधिकारी आपदा पीड़ितों को हरसंभव मदद के लिए प्रतिबद्ध है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी लगातार उत्तराखंड आपदा पीड़ितों को हरसंभव मदद के लिए तैयार हैं और उन्होंने आप कार्यकर्ताओं से अपील करते हुए कहा,पीड़ितों को हरसंभव मदद के लिए आप कार्यकर्ता तैयार रहें हो जितना हो सके उनकी मदद करें । इसके अलावा, आप प्रभारी,आप अध्यक्ष समेत सभी आप पदाधिकारी घटना से जुड़ी हर जानकारी पर नजर बनाए हुए है। आम आदमी पार्टी आपदा की भेंट चढ़ चुके मृतकों को श्रद्धांजलि देते हुए ,उनके परिवार को इस दुख की घड़ी में दर्द को सहने की शक्ति मिले ऐसी प्राथना करती है । और सरकार से गुजारिश करती जल्द से जल्द लापता लोगों का पता लग सके, ताकि आशंकित परिवारों के सामने स्थिति क्लीयर हो सके ।
आप नेता रवींद्र जुग रान ने प्रेस वार्ता के दौरान कहा,अब समय आ गया जब ऐसे प्राकृतिक घटनाओं के प्रति संवेदनहीन होने के बजाय संवेदनशील होना बेहद जरूरी है।घटना होने के बाद वैज्ञानिक,विशेषज्ञ की टीम जरूर स्थल पर पहुंच कर जांच करे लेकिन समय समय पर ऐसे संवेदनशील स्पॉट पर विशेषज्ञ द्वारा जांच और नजर बनाना जरूरी है ताकि आने वाले किसी भी घटना के प्रति सजग हो सके । 2013 में आई भीषण आपदा में हजारों लोगों की जान गई तब थोड़ा इस बात की उम्मीद थी शायद अब सरकारें पर्यावरण ,जलवायु परिवर्तन,ग्लेशियर या वहां बनने वाली झीलों के प्रति सजग हो जाएगी। ऐसा नहीं कि विशेषज्ञ ने कुछ बताया ना हो,2014 चौहान रिपोर्ट,वाडिया के विशेषज्ञ डोभाल जी ने अपने शोध में आने वाले खतरों से आगाह जरूर करवाया । डॉ डोभाल ने ग्लेशियर के आस पास लगभग 40 झीलों का ज़िक्र किया था जो कभी भी किसी ज़लज़ले के तौर पर नुकसान कर सकते लेकिन शायद सरकारें इन 7 सालों में ,केदारनाथ आपदा के बाद इसके प्रति इतनी सजग नहीं दिखाई दी जितना सरकारों को केदारनाथ आपदा से सीखना था। एक बार चमोली के रैणी गांव की इस घटना से सबक लेने की जरूरत है और अब समय आ गया जब सरकारों को ऐसे संवेदनशील स्पॉटों को चिन्हित कर समय समय पर इसकी निगरानी के साथ आपदा से बचने के लिए आवश्यक कदम उठाने पड़ेंगे क्योंकि उत्तराखंड एक पहाड़ी प्रदेश है और यहां पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करना हो या,नदियों की अविरल धाराओं को रोक कर डैम बनाकर प्रकृति के साथ खिलवाड़ का नतीजा है ऐसे जलप्रलय। अभी भी समय है अगर अभी भी सरकारें नहीं चेती तो आने वाले समय में अगर केदारनाथ आपदा,या चमोली के रैणी गांव की घटना या कोई और ग्लेशियर एक साथ ,ऐसे ही नुकसान दें तो ये आप और हम बेहतर जानते हैं हमारे अधिकांश शहर,कस्बे और बड़ी तादात में जनसंख्या इन्हीं नदियों के किनारे रहते है जो अब ऐसी आपदा को नहीं झेल पाएंगे और ऐसी कोई घटना घटती है तो उत्तराखंड से लेकर उत्तरप्रदेश तक बड़ी तबाही के साथ बड़ी मात्रा में जान माल का नुक़सान कर सकती है जिसकी कल्पना मात्र से सिर्फ भय लगता है । अब समय आ गया ऐसे भय से आने वाले समय में बचने के लिए अभी भयभीत होना जरूरी ताकि इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जाए।
इसके अलावा आप नेता रवींद्र जुग रान ने कहा, ये समय ऋषिगंगा में आई आपदा से निपटने के लिए सभी राजनैतिक दलों के सामुहिक प्रयास और सहयोग का है। इसपर आरोप प्रत्यारोप के बजाय सभी दलों और उनके कार्यकर्ताओं को आपदा पीडितों की हरसंभव मदद करनी चाहिए। जब समय होगा तब सरकार से इसपर भी सवाल पूछे जाएंगे लेकिन ये सही वक्त नहीं है । इसके अलावा आप नेता ने कहा,राज्य का आपदा प्रबंधन विभाग अतिमहत्वपूर्ण विभागों में से एक है लेकिन इसके हालात कुछ ज्यादा बेहतर नहीं जबकि ये आपदा प्रदेश है यहां के लोग समय समय पर आपदा से जूझते रहते हैं । आपदा प्रबंधन विभाग के हालात ये हैं कि मुख्यालय से लेकर लगभग सभी जनपदों में अधिकारी कर्मचारी अस्थाई हैं। इसके अलावा ,उच्च हिमालय में चल रहे सभी पावर प्रोजेक्ट्स की समीक्षा की जरूरत भी अब जरूरी है, ईको सैंसटिव जोन में चल रहे सभी पावर प्रोजेक्ट्स की विशेष समीक्षा की जानी चाहिए । उच्च हिमालय में जितने भी प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं ये देखना जरूरी है की उनको वन पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति आपत्ति प्रमाण पत्र मिला है की नहीं ।
आप नेता ने कहा, सरकारों को इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है कि क्या इस पर्यावरणीय इलाकों में मानकों ध्यान रखा गया है अथवा नहीं। केदारनाथ हैली सेवाओं की उड़ान हेतु संबंधित एजेंसियों से कलीयरैंस लिया गया है या नहीं। हैलिकॉप्टर की उड़ान से कारबन उत्सर्जन होता है यह खतरनाक है। उनकी भयंकर आवाज़ से जो घर्षण होता है उससे ग्लेशियर में दरार पड़ती है और कार्बन की परत जमने से बर्फ जम नहीं पाती। जैव विविधता व पशु-पक्षियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उच्च हिमालय में जनरेटर आदि से कार्बन उत्सर्जन होता है इसका ध्यान रखना जरूरी है। गंगा यमुना आदि नदियां का मलवा नदियों में नीतियों के विरुद्ध डम्प किया जा रहा है। ये तमाम वो बिंदु हैं जिन पर एक बार फिर समीक्षा की जरूरत है ताकि उत्तराखंड प्रदेश के वाशिंदे खुद को इस प्रदेश में असुरक्षित ना महसूस कर सके।