रेस्क्यू सोमवार तक के लिए स्थगित,उत्तरकाशी हिमस्खलन हादसें में अब तक 26 शव बरामद,3 ट्रेनीज लापता फिलहाल खराब मौसम के कारण रुका बचाव अभियान

देहरादून/उत्तरकाशी

 

उत्तराखंड के उत्तरकाशी हिमस्खलन में जान गंवाने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अब तक बरामद शवों की संख्या 26 हो गई है। बाकी 3 ट्रेनीज के लिए खोज और बचाव अभियान जारी है हालाकि खराब मौसम की वजह से 3 दिन तक अभियान को रोका गया है।

 

उत्तराखंड के उत्तरकाशी हिमस्खलन में जान गंवाने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। शुक्रवार सुबह तक 19 शव बरामद हुए थे लेकिन बाद में 4 और शवों की बरामदगी के बाद संख्या बढ़कर 26 हो गई है।

पोस्टमार्टम के बाद सभी शव उनके परिजनों को सौंप दिये गए।

जानकारी के अनुसार पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में बताया गया है की सभी की मौत दम घुटने से हुई है।

 

बताते चलें कि इससे पहले उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने भी जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि शुक्रवार को उन्नत हेलिकाप्टर से शवों को मताली हेलीपैड तक लाने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने ये भी बताया कि इस कार्य में 30 बचाव दल तैनात हैं।

उल्लेखनीय है कि यह हादसा मंगलवार 4 अक्टूबर को हुआ था। एनआईएम के पर्वतारोहियों का 41 सदस्यीय यह दल लौटते समय 17 हजार फुट की ऊंचाई पर हिमस्खलन की चपेट में आ गया था। इस आपदा में कुल 29 लोगों के लापता होने की बात कही जा रही थी जिसमें दो ट्रेनर और 27 ट्रेनी शामिल हैं। लापता लोगों की तलाश के लिए घटना के तुरंत बाद से ही लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।

 

रेस्क्यू के काम में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आइटीबीपी, एयरफोर्स और स्थानीय प्रशासन के साथ ही स्थानीय लोग भी मदद कर रहे हैं। रेस्क्यू के लिए 16,000 फीट की ऊंचाई पर एक उन्नत हेलीकॉप्टर लैंडिंग ग्राउंड तैयार किया गया है। मौसम खराब होने की वजह से उत्तरकाशी में पर्वतारोहण पर फिलहाल सोमवार तक के लिए रोक लगा दी गई है।

बताया जाता है कि उत्तरकाशी जिले में स्थित द्रौपदी का डांडा टू को फतह करना बेहद जटिल ही नहीं बल्कि चुनौतीपूर्ण भी है। इस चोटी को ट्रैक करने के लिए निम के उन प्रशिक्षणार्थियों को भेजा जाता है जो बेसिक कोर्स पूरा कर लेते हैं। एडवांस कोर्स में भी 25 दिनों तक विपरीत परिस्थितियों में रहने और कठिन परिस्थितियों में ढलने के बाद ही प्रशिक्षणार्थी इस चोटी की चढ़ाई के लिए निकलते हैं।

 

नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) में प्रिंसिपल रहे कर्नल अजय कोठियाल ने बताया कि द्रौपदी का डांडा टू चोटी को फतह करना खासा मुश्किल है।

 

उन्होंने कहा कि इस चोटी पर भेजने से पहले प्रशिक्षणार्थियों को 25 दिन तक कई दौर की कठिन ट्रेनिंग दी जाती है।

निम का एडवांस कोर्स 28 दिन का होता है जिसमें

बिना प्रशिक्षण और परिस्थितियों में ढ़ले इस चोटी को फतह करने के बारे में सोचना भी असंभव है। द्रौपदी का डांडा टू चोटी को क्लाइंब करने के लिए डोकरानी बामक ग्लेशियर को बेस कैंप बनाया जाता है और यहां से इस चोटी की तीन दिन की चढ़ाई शुरू होती है। द्रौपदी का डांडा टू चोटी को फतह करने के दौरान प्रशिक्षणार्थियों को नेविगेशन, कम्युनिकेशन में खासी मुश्किल आती है। उन्होंने बताया कि एडवांस कोर्स शुरू होने से पहले प्रशिक्षणार्थियों को बर्फ में बचाव के लिए इग्लू बनाने के साथ ही आग जलाने और खाना पकाने आदि का प्रशिक्षण भी दिया जाता है,1965 में निम की स्थापना से ही प्रशिक्षणार्थी इस चोटी को फतह कर रहे हैं लेकिन छिटपुट घटनाओं को छोड़कर कभी इस तरह की घटना नहीं घटी है।

 

कर्नल कोठियाल ने बताया कि द्रौपदी का डांडा टू चोटी 5006 मीटर पर ट्रैकिंग बेहद जटिल होती है। उन्होंने बताया कि इस दुघर्टना से बचाव के लिए निम के इंस्टैक्टर और प्रशिक्षणार्थी ही सबसे उपयुक्त हैं और जब भी कोई दल द्रौपदी का डांडा टू की चढ़ाई के लिए निकलता है तो बेस कैंप में एडवांस रेस्क्यू टीम की तैनाती की जाती है।

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