देहरादून
शारदीय नवरात्र में जौ का विशेष महत्व क्यों है
इम्युनिटी ओर खून साफ भी होता है जौ के उपयोग से
नवरात्र की तैयारियां हर घर में जोर-शोर से हुई। नवरात्र के पहले दिन घट स्थापना होती है। पूजा में हर चीज का अपना एक अलग महत्व होता है। नवरात्र की पूजा में मुख्य रूप से लौंग, इलाइची, कपूर और गाय के घी और आम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। इन सभी चीजों का अपना महत्व होता है। नवरात्र की पूजा में सबसे जरूरी मानी जाती है जौ। मां दुर्गा की आराधना में जौ का प्रयोग अनिवार्य होता है। शास्त्रों में जौ की तुलना स्वर्ण से की गई है, इसलिए नवरात्र की पूजा में जौ रखने से घर में सुख समृद्धि आती है।
आइए जानने का प्रयास करते हैं शारदीय नवरात्र में जौ का क्या महत्व,मान्यताएं है और कुछ अन्य खास बातें…
शारदीय नवरात्र के पहले दिन मिट्टी के बर्तन में जौ बोए जाते हैं। जौ के धार्मिक महत्व के साथ ही यह सेहत पर भी अच्छा प्रभाव डालती है। इम्युनिटी को मजबूत करती है। जौ के ज्वारे का रस पीने से खून साफ होता है।
नवरात्र में जौ को लेकर विशेष प्रकार की मान्यता है कि नवरात्रि में जौ को उगाने से भविष्य के बारे में संकेत मिलते हैं। माना जाता है कि बोया हुआ जौ 2 से 3 दिन में ही अंकुरित हो जाता है और ऐसा नहीं होता है तो यह भविष्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। नवरात्र में जौ को बोने के लिए स्वच्छ मिट्टी का प्रयोग करना चाहिए।
जौ को बोने के पीछे यह मान्यता है कि जौ को अन्न ब्रह्मा का रूप माना गया है और हमें अन्न का सम्मान करना चाहिए। पौराणिक काल से हवन में जौ की आहुति देने की परंपरा चली आ रही है। इसके अलावा पूजा पाठ में भी जौ को प्रयोग होता है और माना जाता है कि ऐसा करने से आपके घर में धन धान्य की कमी नहीं होती है।
नवरात्र के दिनों में बोये गए जौ के रंग से भी शुभ-अशुभ संकेत भी मिलते हैं। ज्योतिषियों की मानें तो यदि जौ के ऊपर का आधा हिस्सा हरा हो और नीचे से आधा हिस्सा पीला तो इससे आने वाले साल का पता चलता है। यानी कि इस रंग की जौ होने का आशय है कि आने वाले साल में आधा समय अच्छा होगा और आधा समय परेशानियों और दिक्कतों से भरा होगा। इसके अलावा अगर जौ का रंग हरा हो या फिर सफेद हो गया हो, तो इसका अर्थ होता है कि आने वाला साल काफी अच्छा जाएगा। यही नहीं देवी भगवती की कृपा से आपके जीवन में अपार खुशियां और समृद्धि का वास होगा।