देहरादून
कहते हैं कि ऊपर वाले कि मर्जी के बगैर पत्ता भी नही हिल सकता वो जो चाहता है वही होता है, लेकिन देहरादून के बालावाला शमशेरगढ़ व मूल निवासी टिहरी जिले के कीर्तिनगर विकासखंड के न्यूली गांव के प्रखर चमोली ने यह साबित किया कि ईश्वर जो भी करे पर मैं वह सबकुछ कर सकता हूं जो दूसरे सामान्य लोग कर सकते हैं। प्रखर पैदाइश से ही न सुन सकता है और न बोल सकता है। किसी भी माँ बाप के लिये इससे ज़्यादा दुखदायी कुछ नही हो सकता था। इसके बाद भी उसके पिता राकेश चमोली और मां ने इस चुनौती को स्वीकार किया। उसका लालन पालन और पढ़ाई वैसे ही कराई जैसे दूसरे सामान्य बेटे की। पिता का बेटे के प्रति लगाव देखिए कि उसको स्कूल में रखने के साथ खुद भी संकेत में बोलने वाली भाषा पढ़ी। शायद बेटे ने इसी बात की लाज रखते हुए पढ़ाई के साथ खेल में ऐसा नाम कमाया की राज्य सरकार को उसे सम्मानित करने के लिए चुना है।
इस निर्णय से प्रखर के परिजन ओर प्रखर काफी उत्साहित दिखाई देते हैं। साल 3 दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस पर राज्य सरकार प्रखर को बैडमिंटन में देश व विदेश में शानदार प्रदर्शन के लिए सम्मानित करने जा रही है। इस सम्मान ने प्रदेश और देहरादुन के बालावाला के साथ न्यूली गांव का नाम भी रोशन कर दिया। बालावाला के लोग बच्चे की इस प्रतिभा को देख आश्चर्यचकित ओर गदगद भी है।