3 महिने के बच्चे के पेट में फसी बाली निकालने में एम्स की टीम कामयाब

देहरादून/ऋषिकेश

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में मरीजों को उपलब्ध कराई जा रही विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं और अनुभवी चिकित्सकों की टीम द्वारा संस्थान में न केवल जटिलतम शल्य क्रियाओं को अंजाम दिया जा रहा है, अपितु विशेषज्ञ के उम्दा प्रयासों से यहां आए दिन कई मरीजों को जीवनदान मिल रहा है। ताजे मामले में एम्स के बाल रोग विभाग ने एक तीन माह के अबोध शिशु के पेट में फंसी कान की बाली को बिना चीर फाड़ व जटिल सर्जरी के विशेष तकनीक से बाहर निकालने में कामियाबी हासिल की है। इस प्रक्रिया के बाद बच्चा पूर्णरूप से स्वस्थ है और उसे एम्स अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।

एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफसर रवि कांत ने एन्डोस्काॅपी दूरबीन विधि अपनाकर बच्चे की जान बचाने में कामियाबी हासिल करने वाली चिकित्सीय टीम को इस सफलता के लिए बधाई दी है। निदेशक एम्स प्रो. रवि कांत ने बताया कि 3 माह के शिशु के पेट में फंसी हैंगिग इयर रिंग को बिना ऑपरेशन के बाहर निकालना अत्यंत जटिल और हाई रिस्की कार्य था। बावजूद इसके संस्थान के चिकित्सकों को अपने अनुभव से इस जटिल कार्य में सफलता प्राप्त की और बच्चे को नया जीवन प्रदान किया। उन्होंने बताया कि रायपुर, देहरादून की एक महिला अपने 3 माह की नन्हीं बच्ची को लेकर एम्स ऋषिकेश पहुंची। महिला ने बताया कि उसके ढाई वर्षीय बेटे ने खेल-खेल में अपनी 3 माह की नन्हीं बहिन के मुहं में कान की बाली ( हैंगिग ईअर रिंग ) डाल दी है, जो बच्ची के पेट में फंस गई है। निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो. रवि कांत ने बताया कि जिस वक्त बच्ची को एम्स अस्पताल में लाया गया, उस समय उसकी हालत अत्यधिक नाजुक थी। एक्स-रे से पता चला कि वो रिंग बच्ची की पाॅयलोरस आंत में फंस गई है।
केस की जटिलता को देखते हुए तत्काल शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डा. नवनीत कुमार बट ने हाई रिस्क लेते हुए बच्ची को बचाने के लिए प्रयास शुरू किए। डा. बट ने बताया कि पेट के पाॅयलोरस में फंसी यह रिंग लगभग 3.5 सेमी लंबी और 2.5 सेमी चौड़ी थी। जिसमें डेढ़ सेमी. लम्बा एक स्क्रू भी लगा था। बताया कि बच्ची को बचाना आवश्यक था, मगर महज 3 महीने की उम्र होने की वजह से उसके पेट की सर्जरी नहीं की जा सकती थी। ऐसे में बच्ची को बेहोश कर आधुनिक उच्चस्तरीय मेडिकल तकनीक अपनाने का ही एकमात्र विकल्प बचा था। लिहाजा उन्होंने बच्ची को बेहोश कर दूरबीन एण्डोस्काेपी विधि से रिंग को बाहर निकालने का निर्णय लिया। उन्होंने बताया कि इतनी कम उम्र के मरीज में इस विधि का इस्तेमाल करना भी अत्यधिक खतरनाक होता है। उन्होंने बताया कि बावजूद इसे बेहद हाईरिस्क स्थिति में बच्ची के पेट की पाॅयलोरस में फंसी रिंग को बड़ी ही सूझबूझ से निकालने की प्रक्रिया शुरू की गई और टीम बच्ची को बचाने में सफल रही। उन्होंने बताया कि अब बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ है, अस्पताल में दो दिन एडमिट रखने के बाद सामान्य हालत को देखते हुए उसे डिस्चार्ज कर दिया गया है। बच्ची को सकुशल अस्पताल से लौटते वक्त उसके माता-पिता ने एम्स के चिकित्सकों के बेहतर प्रयास पर उनका आभार जताया।
शिशु रोग विभागाध्यक्ष डा. नवनीत कुमार बट ने इसी माह तीन दिसम्बर को भी सुभाषनगर, हरिद्वार के डेढ़ साल के एक बच्चे की भी एण्डोस्काेपी विधि से जान बचाई गई थी, उस केस में बच्चे ने खेल-खेल में ढाई सेमी. साईज की एक बटन बैट्री निगल ली थी, जो बच्चे की खाने की नली एस्कोफागस में 2 दिनों से फंसी रही। बैट्री में नौसादर और एसिड होने की वजह से भोजन नली में गहरे घाव बन चुके थे और बच्चे के मुहं से लगातार लार टपकने लगी थी। उन्होंने बताया उपचार के बाद उक्त मरीज भी पूर्णरूप से स्वस्थ है।

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