देहरादून
राज्यपाल ले.जन.गुरमीत सिंह (से.नि.) ने उद्यान विभाग को उत्तराखंड की विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी में मधुमक्खी के बक्से लगाने के निर्देश दिए हैं।
उन्होंने कहा कि भूतपूर्व सैनिकों को भी मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया जाए। राज्य के पर्वतीय जिलों विशेषकर सीमांत क्षेत्रों में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। महिला स्वयं सहायता समूहो को भी इस कार्य से जोड़ा जाए।
राज्यपाल ने कहा कि विश्व धरोहर फूलों की घाटी में मधुमक्खी पालन की अपार संभावनाएं हैं। प्रकृति के इस वरदान और आशीर्वाद का लाभ समस्त उत्तराखंडवासियों को मिलना चाहिए। उत्तराखंड में उत्पादित शहद का स्वाद तथा गुणवत्ता पूरे विश्व में सबसे अलग तथा उच्च श्रेणी की है। राज्य के शहद को अंतरराष्ट्रीय बाजार में श्रेष्ठ ब्रांड के रूप में स्थापित करने की जरूरत है।
बुधवार को राजभवन में रखे गए मधुमक्खियों के बक्सों से शहद निकाला गया। इस वर्ष 5 बक्सों से लगभग 40 किलोग्राम शहद प्राप्त हुआ। उल्लेखनीय है कि राजभवन में उत्पादित शहद राज्यपाल द्वारा प्रतिवर्ष देशभर के अतिविशिष्ट महानुभावों को उत्तराखंड की ओर से उपहार स्वरूप भेंट किया जाता है। राजभवन में मेलीफेरा प्रजाति की मधुमक्खियां रखी गई है।
राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि), अपर सचिव श्रीमती स्वाति एस भदौरिया, निदेशक उद्यान डॉ एच एस बावेजा तथा उद्यान विभाग के समस्त वरिष्ठ अधिकारी इस दौरान उपस्थित थे। राज्यपाल ने अगले वर्ष मौन पालन बॉक्स की संख्या बढ़ाने के निर्देश दिए तथा वर्ष में एक बार राजभवन में मौन पालको के लिए कार्यशाला आयोजन के निर्देश भी दिए।
राज्यपाल ने कहा कि मौन पालन राज्य में किसानों की आमदनी दोगुना करने में सहायक है। भविष्य में उत्तराखंड शहद उत्पादन में विश्व भर में एक अलग पहचान बनाएगा। उत्तराखंड के शहद की एक अलग ब्रांड स्थापित होगी। प्रकृति ने सिर्फ उत्तराखंड को ही फूलों की घाटी जैसा अनुपम उपहार प्रदान किया है। पर्यटन की दृष्टि से आकर्षण का केंद्र होने के साथ-साथ यहां पर मधुमक्खी पालन को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि भूमि कम है तथा जोते छोटी है। यहां पर मधुमक्खी पालन आर्थिक समृद्धि का सबसे बड़ा माध्यम हो सकता है। मधुमक्खी पालन छोटे किसान तथा भूमिहीन लोग भी कर सकते हैं।
यह व्यवसाय खेती का प्रतियोगी भी नहीं है, बल्कि कृषि का सहायक है। राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखंड को प्रकृति ने औषधीय पौधों, एरोमेटिक पौधों, जैविक तथा प्राकृतिक खेती के रूप में अमूल्य उपहार दिए है। स्थानीय लोगों को इसका लाभ मिलना चाहिए। यह रिवर्स माइग्रेशन का सबसे बड़ा माध्यम बनेंगे। प्रकृति के इन अनमोल संसाधनों को लघु उद्यमों, एमएसएमई तथा प्रसंस्करण से जोड़कर अप्रत्याशित परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
इस अवसर पर उपस्थित निदेशक उद्यान डॉ एच एस बावेजा ने बताया कि उत्तराखंड में वर्ष 1938 में ही ज्योलीकोट में राजकीय मौन पालन केंद्र की स्थापना हो चुकी थी। वर्तमान में उत्तराखंड में 7020 मधुमक्खी पालक हैं जिनके द्वारा प्रतिवर्ष 12175 क्विंटल शहद का उत्पादन किया जाता है। राज्य में कुल 74221 मधुमक्खी के छत्ते वर्तमान में मौजूद है। उद्यान विभाग द्वारा मौन पालन में रुचि रखने वाले लोगों को प्रति वर्ष राज्य सेक्टर योजना के तहत 7 दिनों का प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किया जाता है। 2015 से अभी तक 11441 लोगों को मधुमक्खी पालन में प्रशिक्षित किया जा चुका है।