देहरादून/नैनीताल
उत्तराखंड में पुलिस विभाग द्वारा हाल ही में, पुलिस सेवा नियमावली 2018(संशोधन सेवा नियमावली 2019) लागू की गई है। जिसको लेकर पुलिसकर्मियो में रोष है।
पुलिस कर्मियों का कहना है कि उच्च अधिकारियों द्वारा उप निरीक्षक से निरीक्षक व अन्य उच्च पदों पर अधिकारियों की पदोन्नति निश्चित समय पर केवल(D.P.C)के द्वारा वरिष्ठता के आधार पर होती है।
परंतु पुलिस विभाग की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले, पुलिस के सिपाहियों को पदोन्नति हेतु उपरोक्त मापदंड अपनाते हुए, कई अलग-अलग प्रक्रियाओं से गुजरने के साथ ही विभागीय परीक्षा भी देनी पड़ती है। पास होने के बाद 5 की किलोमीटर की दौड़ अलग से करनी पड़ती है। इन प्रक्रिया को पास करने व कर्मियों के सेवा अभिलेखों के परीक्षण के बाद पदोन्नति होती है। जिस कारण 25 से 30 वर्ष की संतोषजनक सेवा (सर्विस) करने के बाद भी सिपाहियों की पदोन्नति नहीं हो पाती है, अधिकांश पुलिसकर्मी सिपाही के पद पर भर्ती होते हैं और सिपाही के पद से ही बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
सेवा नियमावली से कर्मचारियों को काफी उम्मीद थी, परंतु उक्त नियमावली में भी कर्मचारियों के हिसाब काफी खामियां हैं, जबकि राज्य से सटे उत्तर प्रदेश में पुलिस से संबंधित जो सेवा नियमावली बनाई गई है वहां केवल वरिष्ठता पर आधारित है, परंतु उत्तराखंड राज्य में जो पुलिस से संबंधित सेवा नियमावली लागू की गई है, उसमें वरिष्ठता को नाममात्र का स्थान मिला है,जबकि कर्मचारी उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा नियमावली की भांति ही,उत्तराखंड पुलिस सेवा नियमावली की उम्मीद कर रहे थे,क्योंकि उत्तराखंड राज्य के अन्य विभागों में भी पदोन्नति में वरिष्ठता को ही वरीयता दी जाती है।
उत्तराखंड पुलिस सेवा नियमावली में अनेक ऐसे ही बिंदु है जो समान अवसर ना देने का उल्लंघन करते हैं,जो कि भारत के संविधान के अनुसार समानता के अधिकार का भी उल्लंघन है, जिस कारण पुलिस कर्मचारियों की रीट पर उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा मंगलवार को सुनवाई की गई जिसमे राज्य सरकार एवम पुलिस विभाग को जवाब दाखिल करने को कहा गया है।